Friday 2 February 2018

भगवान सबके ह्रदय में हैं, ढूँढने से वहीं मिलते हैं .....

भगवान सबके ह्रदय में हैं, ढूँढने से वहीं मिलते हैं .....
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भगवान सभी प्राणियों के हृदय में बिराजमान हैं, अपनी माया से इस देह रूपी यन्त्र पर आरूढ़ हो कर सभी प्राणियों को (उनके स्वभावके अनुसार) भ्रमण कराते रहते हैं| निज हृदय को छोड़कर हम भगवान को बाहर ढूँढ़ते हैं, पर अंततः उन्हें निज हृदय में ही पाते हैं| 
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जो इस हृदय में धड़क रहे हैं, जो इन फेफड़ों से साँस ले रहे हैं, जो इन आँखों से देख रहे हैं, जो इन पैरों से चल रहे हैं, जो इस मन से सोच रहे हैं, वे और कोई नहीं, मेरे प्रियतम ही हैं, वही यह मैं हूँ |
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भगवान कहते हैं ....
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति|
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया |१८:६१||
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
२४ जनवरी २०१८

3 comments:

  1. मैं जो कुछ भी भगवान के बारे में सोचता हूँ और लिखता हूँ, वह मेरा स्वयं के साथ ही एक सत्संग और मनोरंजन है| जीवन में इस मन ने बहुत अधिक भटकाया है| अब यह पूरी तरह भगवान में लग गया है, और निरंतर लगा रहे इसी उद्देश्य से लिखना होता रहता है| मैं किसी अन्य के लिए नहीं, स्वयं के लिए ही लिखता हूँ| किसी को अच्छा लगे तो ठीक है, नहीं लगे तो भी ठीक है| किसी को अच्छा नहीं लगे तो उनके पास मुझे Unfriend और Block करने का विकल्प है|
    सभी को सप्रेम सादर नमन! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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  2. जिन्हें परमात्मा से प्यार नहीं है ऐसे लोगों से मुझे भी कोई लेना देना नहीं है| उन से मैं किसी भी तरह का कोई संपर्क नहीं रखना चाहता| आजकल के ध्यान साधक, ध्यान साधना का इसलिए अभ्यास करते हैं कि इस से उन्हें तनाव से मुक्ति, अच्छा स्वास्थ्य और शांति मिलेगी| मेरा ऐसे साधकों से भी कोई लेना देना नहीं है, और न ही उन्हें सिखाने वाले योग गुरुओं से|
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    मेरा लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है, अन्य कुछ भी नहीं| यह शरीर रहे या न रहे, इस से भी कोई मतलब नहीं है| बस अंत समय में परमात्मा की चेतना में सचेतन देह-त्याग हो|
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    कुछ पाने की इच्छा नहीं है जब पूर्ण रूप से परमात्मा को समर्पित ही होना है| सिर्फ ऐसे ही लोगों का साथ चाहिए जिनके ह्रदय में परमात्मा को पाने की एक गहन अभीप्सा है|

    आगे का मार्गदर्शन मुझे गुरुकृपा से प्राप्त है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    २४ जनवरी २018

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  3. विष्णु पुराण के अनुसार "भगवान" शब्द का अर्थ .....
    "ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
    ज्ञानवैराग्योश्चैव षण्णाम् भग इतीरणा।।" –विष्णुपुराण ६ । ५ । ७४
    सम्पूर्ण ऐश्वर्य धर्म, यश, श्री, ज्ञान, तथा वैराग्य यह छः सम्यक् पूर्ण होने पर `भग` कहे जाते हैं और इन छः की जिसमें पूर्णता है, वह #भगवान है|

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