भगवान कहाँ जा सकते हैं? कहाँ छिप सकते हैं?
भगवान न तो कहीं जा सकते हैं, और न ही कहीं छिप सकते हैं, क्योंकि समान भाव से सर्वस्व, सर्वत्र वे ही व्याप्त हैं| उनके पास न तो कहीं जाने की जगह है, और न कहीं छिपने की| जब हम उन्हीं के अंश और शाश्वत-आत्मा हैं, तो उनकी माया के आवरण और विक्षेप, जिन्होने हमें अज्ञान में डाल रखा है, अधिक समय तक टिकने वाले नहीं हैं| उन के प्रति प्रेम के समक्ष माया के आवरण और विक्षेप नहीं टिक सकते| वास्तव में हम उन से पृथक नहीं हैं| यह पृथकता का बोध ही माया है|
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प्रत्येक जीवात्मा का सनातन स्वधर्म है कि वह निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करे| निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति ही सनातन धर्म है| यही हमारा स्वधर्म है| हम कर्म करने के लिए स्वतंत्र हैं| लेकिन यह कर्ता भाव ही हमें कर्मफलों को भोगने को बाध्य करता है| जब तक कर्ताभाव है तब तक यह जन्म-मृत्यु का चक्र चलता रहेगा| इसे कोई नहीं रोक सकता| इस चक्र से मुक्त होने के लिए जीवन में भक्ति, वैराग्य और ज्ञान का होना परम आवश्यक है|
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हमारी सबसे बड़ी और एकमात्र समस्या है कि हमें भक्ति, वैराग्य और ज्ञान कैसे प्राप्त हों, क्योंकि ये ही हमें असत्य के अंधकार से बचा सकते हैं| लेकिन कोई जल्दी नहीं है| आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में, भगवान को आना ही पड़ेगा| जैसे कोई माता-पिता अपनी संतान के बिना नहीं रह सकते, वैसे ही भगवान भी हमारे बिना नहीं रह सकते|
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हमारी उन से एक ही प्रार्थना है कि हर नए जन्म के आरंभ से ही यानि जन्म से ही उनकी पूर्ण भक्ति, वैराग्य और ज्ञान, व उन्हें पाने की एक तीब्र अभीप्सा हो| ये तो उन्हें देनी ही पड़ेंगी| इन्हें मांगना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसके लिए वे मना नहीं कर सकते|
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सुख में, दुःख में, भाव में, अभाव में वे ही हमारे साथ हैं| हम जीवन में संघर्ष करते हैं अपनी दरिद्रता से मुक्ति के लिए| दरिद्रता सब से बड़ा पाप है| लेकिन आध्यात्मिक दरिद्रता उस से भी बड़ा पाप है| हमारी आध्यात्मिक दरिद्रता, भगवान की उपस्थिती से ही दूर हो सकती है|
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अभी इतना ही| आप सब निजात्मगण को नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ नवंबर २०२०
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