(१) क्या भगवान भी किसी को पकड़ लेते हैं ?? ---
---------------------------------------
यह सत्य है कि भगवान भी कभी कभी हमें पकड़ लेते हैं। पर वे किसी को क्यों पकड़ते हैं, यह बुद्धि से परे की बात है। यह वही समझ सकता है जिसमें कूट कूट कर भक्तिभाव भरा होता है। भक्ति भी एक जन्म की उपलब्धि नहीं होती, अनेक जन्मों के पुण्योदय का परिणाम होता है। जब कभी अचानक ही बिना किसी प्रयास के स्वतः ही भगवान से परमप्रेम जागृत हो जाये, तब लगता है कि भगवान ने पकड़ लिया है।
.
आजकल कई बार भगवान ने मुझे भी पकड़ना आरंभ कर दिया है। अचानक ही कई बार प्रेममय होकर ध्यानस्थ हो जाता हूँ, आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। समझ में नहीं आता कि यह क्या हो रहा है। आसपास के लोग पूछते हैं कि आँखों में आँसू क्यों आ रहे हैं? उनको उत्तर यही देता हूँ कि बहुत तेज जुकाम लगी हुई है।
.
(२) भगवान अपना दिया सामान अब बापस ले रहे हैं ---
-----------------------------------------------
भगवान ने चार चीजें उधार में दी थीं -- मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार। इनका न तो मैंने कभी कोई भाड़ा चुकाया, और न ही मूलधन बापस किया। अतः भगवान ने भी अब परेशान होकर अपना सामान बापस लेना आरंभ कर दिया है। जितना शीघ्र वे अपना सामान बापस ले लें, उतना ही मेरे लिए अच्छा है। वे तो श्रीहरिः हैं, अपना नाम सार्थक करें। इस जीवन की सार्थकता तभी होगी जब भगवान अपना ये सामान बापस ले लेंगे।
.
आप सब कैसे हैं? आप सब सदा प्रसन्न रहो। मेरे पास अब कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी सामान है, वह भगवान से उधार लिया हुआ है, जो उन्हें बापस लौटाना है।
.
मेरा एकमात्र संबंध भी उन्हीं से है, क्योंकि उनका साथ शाश्वत है। इस जन्म से पूर्व भी वे मेरे साथ थे, और इस जन्म के उपरांत भी वे ही साथ रहेंगे। वे ही माँ-बाप, व सभी संबंधियों और मित्रों के रूप में आये, और उनके माध्यम से अपना प्रेम मुझे दिया। मेरा सर्वस्व उन्हें अर्पित है। जो कुछ भी है, वह वे ही हैं। पृथकता का बोध मिथ्या था, और मिथ्या ही है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०२१
No comments:
Post a Comment