जीवन का मूल उद्देश्य है शिवत्व की प्राप्ति .....
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श्रुति भगवती का आदेश है ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’, अर्थात शिव बनकर शिव
की आराधना करो| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस पर
गहन चिंतन करें| शिवत्व का चिंतन कामनाओं/वासनाओं का शमन करता है|
जब
मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि
संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि कामनाओं पर विजय है| पूर्ण निष्काम भाव मनुष्य
का देवत्व है|
.
परमात्मा सदा मौन है| यही उसका स्वभाव है|
परमात्मा ने कभी अपना नाम नहीं बताया| उसके सारे नाम ज्ञानियों व् भक्तों
के रचे हुए हैं| यह परमात्मा का स्वभाव है जो हमारा भी स्वभाव होना चाहिए|
मौन ही सत्य और सबसे बड़ी तपस्या है| जो मौन की भाषा समझता है और जिसने मौन
को साध लिया वह ही मुनि है|
.
वास्तव में परमात्मा अपरिभाष्य और
अचिन्त्य है| उसके बारे में जो कुछ भी कहेंगे वह सत्य नहीं होगा| सिर्फ
श्रुतियाँ ही प्रमाण है, बाकि सब अनुमान| सबसे बड़ा प्रमाण तो आत्म
साक्षात्कार ही है|
.
सीमित व अशांत मन ही सारे प्रश्नों को जन्म
देता है| जब मन शांत व विस्तृत होता है तब सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते
हैं| चंचल प्राण ही मन है| प्राणों में जितनी स्थिरता आती है, मन उतना ही
शांत और विस्तृत होता है| प्राणों में स्थिरता आती है प्राणायाम,
प्रत्याहार, धारणा और ध्यान से| अशांत चित्त ही वासनाओं को जन्म देता है|
अहंकार एक अज्ञान है| ह्रदय में भक्ति (परम प्रेम) और शिवत्व की अभीप्सा भी
आवश्यक है|
.
शिवत्व एक अनुभूति है| उस अनुभूति को उपलब्ध होकर हम
स्वयं भी शिव बन जाते हैं| शिव है जो सब का कल्याण करे| हमारा भी अस्तित्व
समष्टि के लिए वरदान होगा| हमारा अस्तित्व भी सब का कल्याण करेगा| हम उस
शिवत्व को प्राप्त हों|
.
कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव के गहन
ध्यान से हम शिवत्व को उपलब्ध होते हैं| इससे किसी कामना की पूर्ति नहीं
अपितु कामनाओं का शमन होता है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और
समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता
है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता
है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है .... कामना और इच्छा की समाप्ति| जीवन
अति अल्प है, क्या हम इसे वासनाओं/कामनाओं की पूर्ती में ही नष्ट कर
देंगे?
.
जिनसे जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत
के कण कण में व्याप्त हैं, जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास
करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं| शिव शब्द
का अर्थ मंगल एवं कल्याण है| जो सबका मंगल और कल्याण करने वाले हैं, वे ही
शिव हैं|
.
ॐ नमः शम्भवाय च | मयोभवाय च | नमः शङ्कराय च | मयस्कराय च | नमः शिवाय च | शिवतराय च || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ जून २०१६
.
पुनश्चः --- पतंग उड़ता है और चाहता है कि वह उड़ता ही रहे और उड़ते उड़ते
आसमान को छू ले| पर वह नहीं जानता कि एक डोर से वह बंधा हुआ है जो उसे खींच
कर बापस भूमि पर ले आती है| असहाय है बेचारा ! और कर भी क्या सकता है?
वैसे ही जीव भी चाहता है शिवत्व को प्राप्त करना, यानि परमात्मा को समर्पित
होना| उसके लिए शरणागत भी होता है और साधना भी करता है पर अवचेतन में छिपी
कोई वासना अचानक प्रकट होती है और उसे चारों खाने चित गिरा देती है| पता
ही नहीं चलता कि अवचेतन में क्या क्या कहाँ कहाँ छिपा है| कोई Short Cut
यानि लघु मार्ग नहीं है जो इन वासनाओं से मुक्त कर दे| मार्ग एक ही है जो
उपासना और समर्पण का है जिससे शिवकृपा प्राप्त होती है| अन्य कोई मार्ग
मेरी दृष्टी में तो नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||
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श्रुति भगवती का आदेश है ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’, अर्थात शिव बनकर शिव
की आराधना करो| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस पर
गहन चिंतन करें| शिवत्व का चिंतन कामनाओं/वासनाओं का शमन करता है|
जब
मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि
संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि कामनाओं पर विजय है| पूर्ण निष्काम भाव मनुष्य
का देवत्व है|
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परमात्मा सदा मौन है| यही उसका स्वभाव है|
परमात्मा ने कभी अपना नाम नहीं बताया| उसके सारे नाम ज्ञानियों व् भक्तों
के रचे हुए हैं| यह परमात्मा का स्वभाव है जो हमारा भी स्वभाव होना चाहिए|
मौन ही सत्य और सबसे बड़ी तपस्या है| जो मौन की भाषा समझता है और जिसने मौन
को साध लिया वह ही मुनि है|
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वास्तव में परमात्मा अपरिभाष्य और
अचिन्त्य है| उसके बारे में जो कुछ भी कहेंगे वह सत्य नहीं होगा| सिर्फ
श्रुतियाँ ही प्रमाण है, बाकि सब अनुमान| सबसे बड़ा प्रमाण तो आत्म
साक्षात्कार ही है|
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सीमित व अशांत मन ही सारे प्रश्नों को जन्म
देता है| जब मन शांत व विस्तृत होता है तब सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते
हैं| चंचल प्राण ही मन है| प्राणों में जितनी स्थिरता आती है, मन उतना ही
शांत और विस्तृत होता है| प्राणों में स्थिरता आती है प्राणायाम,
प्रत्याहार, धारणा और ध्यान से| अशांत चित्त ही वासनाओं को जन्म देता है|
अहंकार एक अज्ञान है| ह्रदय में भक्ति (परम प्रेम) और शिवत्व की अभीप्सा भी
आवश्यक है|
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शिवत्व एक अनुभूति है| उस अनुभूति को उपलब्ध होकर हम
स्वयं भी शिव बन जाते हैं| शिव है जो सब का कल्याण करे| हमारा भी अस्तित्व
समष्टि के लिए वरदान होगा| हमारा अस्तित्व भी सब का कल्याण करेगा| हम उस
शिवत्व को प्राप्त हों|
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कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव के गहन
ध्यान से हम शिवत्व को उपलब्ध होते हैं| इससे किसी कामना की पूर्ति नहीं
अपितु कामनाओं का शमन होता है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और
समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता
है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता
है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है .... कामना और इच्छा की समाप्ति| जीवन
अति अल्प है, क्या हम इसे वासनाओं/कामनाओं की पूर्ती में ही नष्ट कर
देंगे?
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जिनसे जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत
के कण कण में व्याप्त हैं, जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास
करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं| शिव शब्द
का अर्थ मंगल एवं कल्याण है| जो सबका मंगल और कल्याण करने वाले हैं, वे ही
शिव हैं|
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ॐ नमः शम्भवाय च | मयोभवाय च | नमः शङ्कराय च | मयस्कराय च | नमः शिवाय च | शिवतराय च || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ जून २०१६
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पुनश्चः --- पतंग उड़ता है और चाहता है कि वह उड़ता ही रहे और उड़ते उड़ते
आसमान को छू ले| पर वह नहीं जानता कि एक डोर से वह बंधा हुआ है जो उसे खींच
कर बापस भूमि पर ले आती है| असहाय है बेचारा ! और कर भी क्या सकता है?
वैसे ही जीव भी चाहता है शिवत्व को प्राप्त करना, यानि परमात्मा को समर्पित
होना| उसके लिए शरणागत भी होता है और साधना भी करता है पर अवचेतन में छिपी
कोई वासना अचानक प्रकट होती है और उसे चारों खाने चित गिरा देती है| पता
ही नहीं चलता कि अवचेतन में क्या क्या कहाँ कहाँ छिपा है| कोई Short Cut
यानि लघु मार्ग नहीं है जो इन वासनाओं से मुक्त कर दे| मार्ग एक ही है जो
उपासना और समर्पण का है जिससे शिवकृपा प्राप्त होती है| अन्य कोई मार्ग
मेरी दृष्टी में तो नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||