Sunday, 4 June 2017

हमारे पतन का कारण और बचने के उपाय :--

हमारे पतन का कारण और बचने के उपाय :--
(स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी के सत्संग से संकलित और साभार संपादित लेख)
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हमारे पतन का कारण हमारे मनोविकार हैं जो राग-द्वेष, क्रोध, भय, शोक और अभिमान से उत्पन्न होते हैं| इनसे बचने का उपाय यही है कि हम अपनी इच्छाओं यानि कामनाओं का शमन करें और उनसे मुक्त हों| इसके लिए हमें जीवन की आवश्यकताओं को कम करना होगा| संग्रह उतना ही करें जितना अति आवश्यक हो, उससे अधिक नहीं| संतोष व संयम दोनों ही आवश्यक हैं| मन के संतोष से करोड़पति और दरिद्र का भेद नही रहता| तृष्णायुक्त धनवान.... दरिद्र से बुरा है, और तृष्णा-विरत निर्धन ....धनवान से अधिक सुखी तथा स्वस्थ है| मन में संतोष होगा तो उसमें विकार उत्पन्न होने का कारण ही नहीं रहेगा|
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विषयों पर निरंतर ध्यान से कामवासना उत्पन्न होती है, जिसकी पूर्ती न होने से क्रोध उत्पन्न होता है| क्रोध से मोह अर्थात् कर्तव्याकर्तव्य की अज्ञानता उत्पन्न होती है, जिस से मनुष्य बारंबार भूलें करता है, इसे ही स्मृतिनाश कहते हैं| स्मृतिनाश से बुद्धिनाश हो जाता है और फिर सर्वनाश निश्चित् है|
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आहार की शुद्धता से मन की शुद्धि होती है| मन की शुद्धि से बुद्धि संतुलित होती हैं, फिर स्मृति लाभ होता है और आत्मज्ञान प्राप्त होता है|
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मानसिक आरोग्य के लिए मनोनिग्रह का अभ्यास सर्वोपरि है| मनोनिग्रह द्वारा विषयासक्ति से निश्चित छुटकारा मिलता है| मनोनिग्रह सात्त्विक आचरणों से सुगमता पूर्वक साध्य होता है| सात्त्विक आचरणों की भूमिका का निर्माण संध्या-वन्दन, अग्निहोत्र, ध्यान, जप और दान आदि आदर्श प्रवृतियों से होता है|
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शरीर और मन का अन्योनाश्रय सम्बन्ध है| शारीरिक क्षीणता से जब मस्तिष्क कमजोर होता है तो अनिद्रा, अस्थिरता, भ्रम, अशान्ति, भय, घबराहट आदि लक्षण उत्पन्न होते है जो मानसिक उद्वेगोँ को बढ़ाते हैं| बाल्यकाल में ही वेदोक्त स्वस्थवृत का अभ्यास रहे तो रात-दिन परिश्रम करने पर भी शारीरिक क्षीणता नही होती और जीवन मेँ मानसिक आनन्द बना रहता है|
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छात्र जीवन आजकल कुछ विचित्र होता जा रहा है| शिक्षक गुरुओं के प्राचीन दायित्व से कतराते हैं और छात्रों का संग भी कुछ विकृत होता जा रहा है| इस कारण बहुत पहले से ही बालक या तरुण का मानसिक और शारीरिक विकास यथोचित नही हो पा रहा है| माता-पिता या अभिभावक को बालक के विकास की ओर विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता होती है ताकि उन से "प्रज्ञापराध" न हो|
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मानसिक स्वास्थ्य हमारे शारिरीक स्वास्थ्य की आधारशिला है| स्वस्थ मन के बिना स्वस्थ शरीर की कल्पना गलत है| वस्तुतः शरीर की प्रमुख संचालिका गति-शक्ति मन ही है| शरीर उसका आवरण मात्र है| भीतर के तत्त्व का सीधा और प्रत्यक्ष प्रभाव आवरण पर होता है| मन की स्थिति का प्रतिबिम्ब शरीर पर निश्चित पड़ता है| जिसका अन्तःकरण स्वस्थ होगा, उसका शरीर निश्चित ही स्वस्थ होगा| मन तो बीज है| बीज के अनुरूप ही वृक्ष और फल होता है|
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हमारा मन सदा स्वस्थ रहे, इसके लिए दैनिक जीवन में संयम-नियम, संतोष और मनोनिग्रह का अभ्यास निरन्तर करना चाहिए| इस अभ्यास का सर्वोत्तम साधन अध्यात्म-भावना पूर्वक परमात्मा की उपासना करना है| इसके लिए आपको कोई धन खर्च करना न पड़ेगा, बस थोड़ा ध्यान, थोड़ा स्मरण और थोड़ा अपनी ओर लोटने का प्रयत्न करना है| नारायण। नारायण|| नारायण|||
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(स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी के सत्संग से संकलित और साभार संपादित)

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