साधना का पथ कठिन है .....
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देवता भी नहीं चाहते कि कोई जीवात्मा मुक्त हो| वे भी एक मुमुक्षु के मार्ग में निरंतर यथासंभव बाधाएँ उत्पन्न करते हैं| आसुरी शक्तियाँ तो चाहती ही हैं कि कैसे भी साधक भ्रष्ट हो और वे उसे अपने अधिकार में कर लें|
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लौकिक विघ्न दूर किये बिना धर्म का पालन असंभव है| आजकल घर-परिवारों और समाज का वातावरण इतना विषाक्त है कि नित्य नैमित्तिक कर्म करना और सदाचार का पालन करना अत्यंत कठिन होता जा रहा है| अतः ब्रह्मनिष्ठ सद् गुरू का आश्रय, निरंतर सत्संग, वैराग्य और अभ्यास अति आवश्यक है|
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बहुत दुर्लभ दृढ़ता वाला मुमुक्षु ही विघ्नों को लाँघ कर साक्षात्कार कर सकता है| परमात्मा ही करुणा कर के निरंतर प्रेरणा देते रहते हैं| नित्य नियमित उपासना आवश्यक है अन्यथा मुमुक्षुत्व ही लुप्त हो जाता है| साधना स्वयं के वश की नहीं है| अपने इष्ट देव को ही साधक, साध्य और साधना बनाना सर्वाधिक आसान है|
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ॐ ॐ ॐ | ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ |||
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देवता भी नहीं चाहते कि कोई जीवात्मा मुक्त हो| वे भी एक मुमुक्षु के मार्ग में निरंतर यथासंभव बाधाएँ उत्पन्न करते हैं| आसुरी शक्तियाँ तो चाहती ही हैं कि कैसे भी साधक भ्रष्ट हो और वे उसे अपने अधिकार में कर लें|
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लौकिक विघ्न दूर किये बिना धर्म का पालन असंभव है| आजकल घर-परिवारों और समाज का वातावरण इतना विषाक्त है कि नित्य नैमित्तिक कर्म करना और सदाचार का पालन करना अत्यंत कठिन होता जा रहा है| अतः ब्रह्मनिष्ठ सद् गुरू का आश्रय, निरंतर सत्संग, वैराग्य और अभ्यास अति आवश्यक है|
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बहुत दुर्लभ दृढ़ता वाला मुमुक्षु ही विघ्नों को लाँघ कर साक्षात्कार कर सकता है| परमात्मा ही करुणा कर के निरंतर प्रेरणा देते रहते हैं| नित्य नियमित उपासना आवश्यक है अन्यथा मुमुक्षुत्व ही लुप्त हो जाता है| साधना स्वयं के वश की नहीं है| अपने इष्ट देव को ही साधक, साध्य और साधना बनाना सर्वाधिक आसान है|
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ॐ ॐ ॐ | ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ |||
अपनी समस्याओं का जितना हम चिंतन करते हैं वे उतनी ही अधिक बढ़ती हैं|
ReplyDeleteअपनी चिन्ताएँ भगवान को समर्पित कर देना ही सबसे अच्छा है|
वास्तव में हमारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या परमात्मा को उपलब्ध होना ही है, बाकी सब उसी की समस्याएँ हैं|