कोई सांसारिक अभिलाषा अब नहीं रही है ---
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जैसे जैसे भौतिक आयु बढ़ रही है वैसे-वैसे ही समय के साथ-साथ स्मरण शक्ति का क्षय होने लगा है, और यह शरीर रूपी वाहन भी बड़ी तेजी से कमजोर होता जा रहा है| आजकल हृदय को तृप्ति, शांति, व आनंद सिर्फ परमात्मा के स्मरण व ध्यान में ही मिलता है| अन्यत्र कहीं भी मन नहीं लगता| अन्य कहीं मन लगाने का प्रयत्न करते भी हैं तो बड़ी पीड़ा होती है| इसलिए इस दीपक में जितना भी तेल बचा है, यानि बची-खुची जो भी प्राण-ऊर्जा है, वह परमात्मा को समर्पित है| इस जीवन
का अवशिष्ट समय भी परमात्मा को ही समर्पित है| किसी भी तरह की कोई सांसारिक अभिलाषा अब नहीं रही है|
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परमात्मा की बड़ी कृपा है कि मन में और विचारों में किसी भी तरह का कोई संशय नहीं रहा है| कोई भी आध्यात्मिक रहस्य -- अब रहस्य नहीं है, विचारों में पूरी स्पष्टता है, और किसी भी तरह का कोई भ्रम नहीं है| सामने का मार्ग प्रकाशमय और बड़ा उज्ज्वल है, जिसमें किसी भी तरह की कोई बाधा या अवरोध नहीं है|
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सामने कूटस्थ सूर्यमण्डल में ज्योतिर्मय पुरुषोत्तम परमशिव भगवान नारायण स्वयं बिराजमान हैं| जो करना है वह वे ही करेंगे| जीवन उन को समर्पित है| अब सब उन्हीं का काम है जो वे जानें| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ फरवरी २०२१
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