फरवरी १९७९ में मैंने ध्यान साधना के मार्ग पर चलना आरंभ किया था| उस समय तक मैं दिशाहीन था| कोई विशेष व्यवहारिक जानकारी नहीं थी| हालाँकि एक संस्कारी उच्च ब्राहमण परिवार में जन्म लेने के कारण अच्छे धार्मिक संस्कार और अनेक आगम ग्रन्थों का स्वाध्याय था| जैसे-जैसे साधना के मार्ग पर आगे बढ़ने लगा, वैसे-वैसे अज्ञान का आवरण हटता गया|
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अब इस समय मेरा अनुभव तो यह है कि ज्ञान हम सब में पहिले से ही है, लेकिन उस पर अज्ञान का एक आवरण पड़ा हुआ है| जैसे जैसे हमारी साधना आगे बढ़ती है वैसे वैसे वह अज्ञान का आवरण हटता जाता है| बीच-बीच में विक्षेप भी बहुत आते हैं| महत्वपूर्ण बात यह है कि हम आध्यात्म के मार्ग पर चल पड़े हैं| यह चलना ही महत्वपूर्ण है| साधना करते करते एक न एक दिन जब यह आवरण हट ही जाएगा तब हम पाएंगे कि हम परमात्मा के साथ एक हैं|
ॐ तत्सत् !! गुरु ॐ !! जय गुरु !!
6 फरवरी 2021
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