Wednesday 25 August 2021

भगवान की भक्ति कैसे करते हैं? क्या भक्ति भी कोई करने की चीज है? ---

 

भगवान की भक्ति कैसे करते हैं? क्या भक्ति भी कोई करने की चीज है? ---
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जहाँ तक मेरी समझ है, भक्ति कोई करने की चीज नहीं है। यह अपने प्रेम की ही एक गहनतम स्वभाविक अनुभूति और आंतरिक अभिव्यक्ति है। ध्यान-साधना में हम इस प्रेम को अनुभूत करते हुए उसका विस्तार सम्पूर्ण समष्टि में करते हैं। सर्वप्रथम हमें अपने प्रेम की अनुभूति होती है जिसमें हमें आनंद मिलता है। वह आनंद परमात्मा ही है। फिर प्राण और आकाश तत्वों की अनुभूतियाँ -- साधना में प्रगति के लक्षण हैं। ये भी परमात्मा के ही रूप हैं। प्राण-तत्व के हम साक्षी बनते हैं। यह प्राण-तत्व -- परमात्मा का मातृ-रूप है, जिसे हम पराशक्ति कहते हैं। आकाश-तत्व -- शिव है, जिस में हम स्वयं को विस्तृत और स्थिर करते हैं। उस से भी परे जो है, वह परमशिव है, जिसमें समर्पण कर उस से एकाकार होना ही हमारी साधना का परम लक्ष्य है।
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साकार और निराकार -- इन शब्दों से भ्रमित न हों, साकार और निराकार -- दोनों ही परमात्मा के रूप हैं। भगवान साकार भी हैं, और निराकार भी। वास्तव में निराकार तो कुछ भी नहीं है। सब कुछ साकार है। एक अत्यंत गोपनीय रहस्य की बात बता रहा हूँ। चाहे मैं कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें करूँ, लेकिन मुझे प्रेम, आनंद और उनसे भी परे की परम अनुभूतियाँ -- भगवान श्रीकृष्ण के साकार रूप से ही मिलती हैं। मुझे निमित्त-मात्र, एक दृष्टा या साक्षी बनाकर सारी साधना वे स्वयं ही करते हैं। त्रिभंग-मुद्रा या पद्मासन में वे कूटस्थ-चैतन्य में सदा समक्ष रहते हैं। वे स्वयं ही स्वयं को देखते रहते हैं, कर्ता और भोक्ता वे ही हैं। वे ही प्राण हैं, वे ही आकाश (चिदाकाश, दहराकाश, महाकाश, पराकाश) हैं, वे ही अग्नि हैं, वे ही परम-पुरुष वासुदेव हैं, वे ही विष्णु हैं, वे ही परमशिव हैं, और वे ही आनन्द व सर्वस्व हैं।
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भगवान श्रीकृष्ण परम तत्व हैं। उनकी प्रशंसा या महिमा का बखान करने की मुझमें कोई योग्यता नहीं है। मेरी योग्यता वे ही हैं। इससे अधिक कुछ कहने की मुझमें सामर्थ्य नहीं है। आचार्य मधुसुदन सरस्वती ने उनकी स्तुति इन शब्दों में की है --
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् | पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् ||
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् | कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
अर्थात् - जिनके करकमल वंशी से विभूषित हैं, जिनकी नवीन मेघ की सी आभा है, जिनके पीत वस्त्र हैं, अरुण बिम्बफल के समान अधरोष्ठ हैं, पूर्ण चन्द्र के सदृश्य सुन्दर मुख और कमल के से नयन हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी भी तत्व को मैं नहीं जानता॥
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वे हमारे हृदय में, हमारी चेतना में निरंतर रहें। ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
२५ अगस्त २०२१

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