Wednesday 25 August 2021

सारे प्रश्न, अशांत सीमित मन की उपज हैं ---

 

सारे प्रश्न, अशांत सीमित मन की उपज हैं| शांत और विस्तृत मन में कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता| सारी जिज्ञासाएँ स्वतः ही शांत हो जाती हैं| कई बार ऐसे कई संतों से मेरी भेंट हुई है जिनसे मिलने मात्र से मन इतना शांत हो जाता था कि सारे प्रश्न ही तिरोहित हो जाते थे| उनके समक्ष कोई प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता था|
वर्षों पहिले की बात है, जिज्ञासु वृत्ति उन दिनों उत्पन्न हुई ही थी, एक सिद्ध संत के बारे में पता चला जो मौन ही रहते थे, बात बहुत कम करते थे| मुझे उनसे बहुत कुछ पूछना था, अतः उनसे मिलने चला गया| आश्चर्य ! उनके पास बैठते ही मैं स्वयं को भी भूल गया| दिन छिपने पर उन्होने ही मुझे वहाँ से चले जाने को कहा| उन के पास से जाते ही मन फिर अशान्त हो गया और सारे प्रश्न याद आ गए| दूसरे दिन मैंने पंद्रह-बीस प्रश्न एक कागज पर लिखे और पक्का निश्चय कर के गया कि ये प्रश्न तो पूछने ही हैं| पर दूसरे दिन भी मेरा वही हाल हो गया, वह प्रश्नों वाला कागज हाथ में ही रह गया| तीसरे दिन फिर गया तो उन्होने चुपके से कह दिया कि सारे प्रश्न अशांत मन की उपज हैं। मन को शांत करोगे तो उत्तर अपने आप मिल जाएगा| फिर कभी उन से मिलना नहीं हुआ|
उन्हीं दिनों एक ऐसे महात्मा से भी मिलना हुआ कि बिना पूछे ही उन्होने एक ऐसी बात कही जी से सारे प्रश्नों के उत्तर एक साथ मिल गए|
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अब तक के मेरे अनुभवों का सार यही है कि हमारी सारी समस्याओं का समाधान, सारी जिज्ञासाओं व प्रश्नों के उत्तर, हमारा सुख, शांति, सुरक्षा और आनंद परमात्मा में ही है| जीवन का एक मात्र लक्ष्य परमात्मा को उपलब्ध होना है| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अगस्त २०२०

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