Wednesday, 10 September 2025

"हमारा एकमात्र व्यवहार परमात्मा से है।"

 "हमारा एकमात्र व्यवहार परमात्मा से है।"

युद्धभूमि में सामने शत्रु है तो, भगवान को कर्ता बनाकर बड़े प्रेम से उसका संहार/वध करो, लेकिन मन में घृणा या क्रोध न आने पाये। हमें निमित्त बनाकर भगवान ही उसे नष्ट कर रहे हैं।
मित्र है तो भगवान को ही कर्ता बनाकर उसे अपने हृदय का पूर्ण प्रेम दो। भगवान स्वयं ही सारे सगे-संबंधी, और शत्रु-मित्र के रूप में आते हैं। हमारा एकमात्र व्यवहार परमात्मा से ही है।
११ सितंबर २०२४

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