पिछली दो-तीन शताब्दियों में पहली बार भारत इतनी बड़ी तेजी से भौतिक प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। यह बड़े हर्ष की बात है।
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भारत ने अब सेमी-कंडक्टर और वायुयान के इंजिन भारत में स्वयं बनाने का प्रयास आरंभ कर दिया है, यह एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम है।
अब तक मशीनों के व इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के सारे पुर्जे चीन से आयात होते हैं। हम उनके लिए चीन पर पूरी तरह निर्भर हैं। मुझे चार बार चीन जाने का अवसर मिला है। चीन में यह धारणा है कि भारत का काम चीन के बिना नहीं चल सकता। भारत में जब भी चीनी सामान के बहिष्कार की बात होती थी तब चीन में उसकी हँसी उड़ाई जाती थी। चीनी लोग कहते थे कि चीनी सामान के बिना भारत एक दिन भी नहीं रह सकता। यह बात अब तक शत-प्रतिशत सत्य थी। अब लगने लगा है कि हम आत्म-निर्भर हो सकते हैं।
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दूसरी सबसे बड़ी पीड़ादायक बात है कि हम अपने उच्च अध्ययन और पारस्परिक राष्ट्रीय संवाद के लिए अङ्ग्रेज़ी भाषा का प्रयोग करते हैं। यह हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान के विरुद्ध है। भारत में एक धारणा है कि उच्च अध्ययन और पारस्परिक संवाद केवल अङ्ग्रेज़ी भाषा में ही संभव है।
मुझे अनेक बार अनेक देशों में जाने और रहने का अवसर मिला है। इस से मेरी यह मानसिक धारणा तो ध्वस्त हो गयी कि अङ्ग्रेज़ी भाषा के बिना हम नहीं रह सकते। हम पूरी तरह से अपनी भाषा का प्रयोग करने में समर्थ हों, तभी वास्तविक रूप से हम स्वतंत्र होंगे।
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अङ्ग्रेज़ी भाषा का जो वर्तमान ज्ञान हमें है उसका पूरा लाभ उठायें, क्योंकि विश्व में अमेरिकी प्रभाव के कारण अंतराष्ट्रीय व्यापार की भाषा इस समय अङ्ग्रेज़ी है। जहां जहां भी अमेरिकी प्रभाव है वहाँ वहाँ अङ्ग्रेज़ी भाषा का वर्चस्व है, अन्यत्र कहीं भी नहीं।
आप सब को धन्यवाद। ॐ तत्सत्।
कृपा शंकर
५ सितंबर २०२५
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