आत्म-ज्ञान के बिना जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने का कोई अन्य मार्ग संभव नहीं है। आत्म-ज्ञान ही एकमात्र मार्ग है जो हमें परमात्मा से संयुक्त कर सकता है ---
नान्य: पन्था ॥ जो मैं हूँ, जैसे मेरे संकल्प हैं, उन्हीं के अनुरूप सृष्टि मेरे चारों ओर सृष्ट हो रही है। मेरे व्यक्तिगत विचार महत्वहीन हैं, लेकिन मेरे अंतरतम संकल्पों की -- ऊर्जा, स्पंदन, और आवृतियाँ -- घनीभूत होकर इस सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण कर रही हैं। कोई कमी है तो वह मुझ में है, कहीं बाहर नहीं। मुझे मेरे स्वयं के संकल्पों की आवृतियों को ही घनीभूत और परिवर्तित करना होगा। अन्य कोई मार्ग नहीं है। श्रुति भगवती कहती है --
"वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमस: परस्तात् ।
तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय ॥"
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ सितंबर २०२५
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