अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए पूरे हिन्दू समाज को अपनी सोच में, और अपने बच्चों के विवाह की आयु में परिवर्तन करना ही पड़ेगा। बाकी सब अपने आप ही होगा।
हरेक युवती का विवाह १८ से २१ वर्ष की आयु तक में हो ही जाना चाहिए। और
हरेक युवक का विवाह १८ से २४ वर्ष की आयु तक में हो ही जाना चाहिए। दूसरा कोई उपाय नहीं है।
आजीविका का साधन (Career) विवाह के बाद भी बनता रहेगा। स्वयं का मकान भी बाद में बन जाएगा।
स्त्री और पुरुष दोनों में विपरीत लिंग के प्रति स्वभाविक जैविक आकर्षण (Natural Sexual attraction) १८ से २४ वर्ष तक की आयु में ही होता है। तब तक विवाह हो जाना चाहिए। कानूनी दृष्ट से भी यह मान्य है। लव-जिहाद, लिव-इन-रिलेशनशिप, अमर्यादित अनैतिक संबंध, आदि से अपने बच्चों की रक्षा हम तभी कर सकेंगे। इस समय तो हम पश्चिम की नकल कर, बच्चों को बूढ़ा बनाकर उनका विवाह कर रहे हैं। किसी भी जिले के किसी भी पारिवारिक न्यायालय में जाकर आप वर्तमान की भयावह वास्तविकता का आंकलन कर सकते हैं।
बाकी आपकी मर्जी। शुभ कामना।
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कृपा शंकर
३ सितम्बर २०२५
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