कोई किसी का शत्रु या मित्र नहीं होता| सब अपने-अपने स्वार्थ देखते हैं| अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में तो यह शत-प्रतिशत सत्य है|
आजकल अर्मेनिया और अज़रबेजान में एक धर्मयुद्ध चल रहा है| जिसमें मुख्य भूमिका तुर्की की है| इसकी पृष्ठभूमि में जाते हैं| प्रथम विश्व युद्ध (२८ जुलाई १९१४ से ११ नवंबर १९१८) की समाप्ति ..... तुर्की की पराजय, और सल्तनत-ए-उस्मानिया (The Ottoman Empire) के विखंडन के साथ हुई थी| यह सल्तनत उस समय से पीछे लगभग ६०० वर्षों से विश्व का एक सबसे बड़ा साम्राज्य था, जिसके आधीन बुल्गारिया, मिश्र, हंगरी, जॉर्डन, लेबनान, इज़राइल, फिलिस्तीन, मसीडोनिया, रोमानिया, सीरिया, अरब का अधिकांश भाग, मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका के सारे समुद्र-तटीय देश थे| भारत पर भी जितने मुसलमान बादशाहों ने राज्य किया, वे मूल रूप से तुर्क ही थे और तुर्की के खलीफा सुल्तान को अपने लगान का एक भाग नियमित रूप से भेजते थे| वर्तमान सऊदी अरब भी तुर्की के आधीन था|
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प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त हुए एक सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं| तुर्की के वर्तमान राष्ट्रपति अर्दोआन चाहते हैं कि तुर्की अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त कर विश्व की एक महाशक्ति बने| इसके लिए उन्हें मुस्लिम देशों का समर्थन चाहिए जो उन्हें सिर्फ पाकिस्तान से मिला| तुर्की ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुसलमान देश अज़र्बेज़ान को भड़का कर अपने पुराने शत्रु आर्मेनिया से युद्ध करवा ही दिया| आर्मेनिया एक कट्टर ईसाई देश है जहाँ का आर्मेनियायी चर्च रूस के ओर्थोंडॉक्स चर्च से निकला है| अज़र्बेज़ान में सुन्नी सिर्फ १५% ही हैं, और शिया ८५%, पर सुन्नी तुर्की उनको भड़का कर अपनी ओर करने में सफल रहा है| अरब और तुर्क, हालाँकि कट्टर सुन्नी मुसलमान हैं पर एक-दूसरे से बहुत घृणा करते हैं|
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आश्चर्य इस बात का हो रहा है कि विश्व का सबसे बड़ा शिया देश ईरान, विश्व के दूसरे सबसे बड़े शिया देश अज़र्बेजान की सहायता न कर के उसके विरोध में ईसाई देश आर्मेनिया की सहायता कर रहा है, और आर्मेनिया को भारी मात्रा में युद्ध लड़ने के लिए सामान दे रहा है| रूस भी ईरान के माध्यम से आर्मेनिया को सहायता भेज रहा है|
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सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि इज़राइल, अज़र्बेज़ान की सहायता कर रहा है| चीन भी अज़र्बेज़ान की सहायता कर रहा है| यह दिखाता है कि कोई भी देश हो अपनी विदेश नीति अपने आर्थिक हितों को देख कर ही करता है|
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जब से यह सृष्टि बनी है तब से युद्ध होते रहे हैं, और होते रहेंगे| उन्हें कोई भी नहीं रोक पाया है| सभ्यताओं का उदय और अस्त ऐसे ही होता रहेगा|
कृपा शंकर
७ अक्तूबर २०२०
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