भारत से तुर्की क्यों चिढ़ता और द्वेष रखता है? इसका कारण जैसा मुझे समझ में आया है, वैसा ही यहाँ लिख रहा हूँ|
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प्रथम विश्व युद्ध में गैलिपोली की अति भयंकर लड़ाई में तुर्की की पराजय के साथ ही सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman empire) का पतन हो गया था| इस से वह सल्तनत बिखर गई और उस के आधीन बुल्गारिया, मिश्र, हंगरी, जॉर्डन, लेबनान, इज़राइल, फिलिस्तीन, मसीडोनिया, रोमानिया, सीरिया, अरब का अधिकांश भाग, मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका के सारे समुद्र-तटीय देश इस सल्तनत से स्वतंत्र हो गए| इस युद्ध में ब्रिटेन की ओर से लड़ने वाले सारे सैनिक भारतीय थे जिनको श्रेय इसलिए नहीं मिला क्योंकि भारत उस समय अंग्रेजों के आधीन था| सारे अधिकारी अंग्रेज़ थे जिनमें भारतीय सैनिकों के बिना युद्ध करने का साहस नहीं था| विशुद्ध अंग्रेजी फौज ने हर जगह बुरी तरह मार खाई और उन्हें भारतीय सैनिकों द्वारा ही सदा बचाया गया| हर अंग्रेज़ सैनिक अधिकारी भारतीय सिपाहियों की सहायता के साथ ही लड़ना चाहता था क्योंकि भारतीय सिपाही अपने प्राणों की परवाह किए बिना युद्ध करते थे| तुर्की से भारतीय सिपाहियों की सहायता के बिना युद्ध जीतना असंभव था| यरूशलम को भी तुर्की से अंग्रेजों ने भारतीय सिपाहियों के द्वारा ही मुक्त कराया था|
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तुर्की के खलीफा की यह इच्छा थी कि वह अंग्रेजों को हराकर भारत पर अपना अधिकार करे| तुर्की की पराजय के पश्चात भारत में गांधी जी ने दुर्भाग्य से खलीफा को बापस सत्ता दिलाने के लिए खिलाफत आंदोलन आरंभ किया था| तुर्की के इतिहास में यह नहीं पढ़ाया जाता है कि उन्हें अंग्रेजों ने हराया था| उन्हें पढ़ाया जाता है कि ब्रिटिश-इंडिया की हिन्दुस्तानी फौज ने उन्हें हराया था| वहाँ का राष्ट्रपति अर्दोआन चाहता है कि भारत में गजवा-ए-हिन्द हो, अतः वह पाकिस्तान का समर्थन करता है| तुर्की को यह मलाल है कि वे अंग्रेजों से नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी सैनिकों से हारे थे|
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प्रथम विश्वयुद्ध में कुल मिलाकर ७४,१८७ भारतीय सैनिक मारे गए , और ६७,००० घायल हुए थे| जयपुर राज्य के ७,००० से अधिक सैनिक मारे गए जिनमें से अधिकांश शेखावाटी के थे| उनकी स्मृति में एक छोटा सा शिलालेख झुंझुनूं के जोरावर गढ़ के दरवाजे पर (सब्जी मंडी में) लगा है, जिसे ध्यान से देखने पर दिखाई देता है|
ॐ तत्सत् !!
८ अक्तूबर २०२०
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