Tuesday, 31 December 2024

महत्व केवल "परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूतियों" का है ---

नदियों का प्रवाह महासागर की ओर होता है। लेकिन एक बार महासागर में मिलने के पश्चात नदियों का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है। फिर महासागर का ही अवशेष रहता है। जो जलराशि महासागर से मिल गई हैं, वह बापस नदियों में नहीं जाना चाहती।
आध्यात्मिक साधना में महत्व केवल "परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूतियों" का है जो प्रेम और आनंद के रूप में अनुभूत और व्यक्त हो रही हैं। जिस साधना से परमात्मा की अनुभूति होती है, और हम परमात्मा को उपलब्ध होते हैं, केवल वे ही सार्थक है। महत्व परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूतियों का ही है। भगवान को सदा अपने समक्ष रखो और उनमें स्वयं का विलय कर दो। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०२४

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