ॐ नमः शिवाय विष्णु रूपाय शिव रूपाय विष्णवे। शिवस्य हृदयं विष्णु विष्णोश्च हृदयं शिवः॥
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
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प्रिय निजात्मागण, मेरी चेतना इस समय परमशिव की अनंतता और सम्पूर्ण सृष्टि से भी परे है। यह भौतिक देहरूपी वाहन -- लोकयात्रा के लिए मिला था। संसार मुझे इस वाहन के रूप में ही जानता है जिस की क्षमता और स्वास्थ्य का अब ह्रास होने लगा है, अतः परमशिव मुझे लौकिक चेतना से शनैः शनैःअपनी अनंत शाश्वतता की ओर मोड़ रहे हैं।
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मेरा स्वभाव आध्यात्मिक है, अतः बचा-खुचा सारा लौकिक जीवन परमशिव के स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में ही बीत जायेगा। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिस वीतरागता, स्थितप्रज्ञता, ब्राह्मी-स्थिति, अव्यभिचारिणी भक्ति, और समर्पण की बात की है, वही मेरा आदर्श है। इस समय परमशिव की कैवल्यावस्था की ओर अग्रसर हूँ।
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परमशिव स्वयं ही यह जीवन जी रहे हैं। इस जन्म से पूर्व भी वे ही मेरे साथ थे, इस जन्म के उपरांत भी वे ही मेरे साथ रहेंगे। वे ही माता-पिता, भाई-बहिन, सब संबंधियों, मित्रों और गुरु के रूप में आये। परमशिव रूप आप सब को नमन करता हूँ, जिन्होंने जीवन में मेरा साथ और अपना प्रेम दिया।
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ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ दिसंबर २०२४
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