Tuesday, 31 December 2024

प्रतिकूलताओं में अनुकूलता ---

भगवान की कृपा ही हमारी अनुकूलता है। हमें उनका स्मरण हो रहा है -- यह उनकी बहुत बड़ी कृपा है, अन्यथा किसी भी साधक के लिए साधना हेतु परिस्थितियाँ कभी भी अनुकूल नहीं होतीं। प्रतिकूलताओं में ही सारी आध्यात्मिक साधनाओं का आरंभ करना पड़ता है। मन में भरी हुई अति सूक्ष्म वासनाएँ -- सबसे बड़ी बाधाएँ हैं, जो कभी पकड़ में नहीं आतीं। ये सूक्ष्म वासनाएँ ही चित्त की वृत्तियाँ हैं।

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हमारे चंचल प्राणों की चंचलता समाप्त होने पर हमारा मन भी शांत हो जाता है। मन के शांत होने पर परिस्थितियाँ भी अनुकूल हो जाती हैं। अन्यथा परिस्थितियाँ कभी भी अनुकूल नहीं होतीं।
प्राण स्वयं को स्थूल रूप से श्वास-प्रश्वास के रूप में व्यक्त करता है। इसीलिए हम ध्यान साधना का आरंभ साँसों पर ध्यान के द्वारा करते हैं। मंत्र जप भी प्राण शक्ति के द्वारा ही संभव हो सकता है। यथासंभव अधिकाधिक अभ्यास और वैराग्य के द्वारा भगवान का चिंतन निरंतर करते रहना चाहिए।
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पात्रतानुसार आगे का मार्ग-दर्शन स्वयं भगवान किसी न किसी रूप में करेंगे। यह उन का आश्वासन है। भगवान हमारा सिर्फ प्रेमभाव (भक्ति) ही देखते हैं। बिना प्रेम के हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ दिसंबर २०२३

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