Tuesday, 31 December 2024

एक क्षण के लिए भी परमात्मा की विस्मृति न हो ---

जीवन का आरंभ जहाँ से हुआ था उसे तो मैं नहीं बदल सकता, लेकिन जीवन के अंत को बदल सकता हूँ। वर्तमान का यह क्षण ही मेरी यात्रा है जिसका अंत सुखद हो। मेरे हृदय में किसी के प्रति घृणा या दुर्भावना न हो। शत्रुओं का संहार भी प्रेमपूर्वक बिना घृणा या बिना क्रोध के किया जाना चाहिए। कर्ता तो परमात्मा हैं, मैं तो निमित्त मात्र हूँ। मेरे माध्यम से हरेक कार्य परमात्मा द्वारा संपादित हो रहे हैं। यह भाव सदा बना रहे।

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मैं स्वयं ही स्वयं का शत्रु और स्वयं ही स्वयं का मित्र हूँ। भगवान को समय नहीं देना स्वयं के प्रति मेरी शत्रुता है, और भगवान का गहरा ध्यान स्वयं के साथ मित्रता है। शास्त्रों को सिर्फ पढ़कर, प्रवचनों को सिर्फ सुनकर, और सिर्फ परोपकार मात्र से किसी को भगवान नहीं मिलते। उनकी अनुभूति सिर्फ गहरे ध्यान में ही होती है। अतः मुझे ध्यान-साधना में गंभीरता से नित्य नियमित होना चाहिए।
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जीवन में मैं चाहे कितनी भी बार पराजित हुआ, लेकिन अब और पराजय मुझे अस्वीकार्य है। यदि मेरी निष्ठा, श्रद्धा और विश्वास सही है तो मैं कभी पराजित नहीं हो सकता। अहं इंद्रो न पराजिग्ये॥ मैं इन्द्र हूँ, जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता॥
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मेरा अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) मेरी आज्ञा मानने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि वे परमात्मा के आधीन हैं, जिनका नित्य निरंतर निवास मेरे हृदय में है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ दिसंबर २०२२

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