जिस की आज्ञा से यह सारी सृष्टि चल रही है, उसके साथ एक होकर ही हम असत्य और अंधकार की शक्तियों को पराभूत कर सकते हैं। बीच में कोई कामना नहीं आनी चाहिए।
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एक ही तड़प है मन में -- भगवान के निष्ठावान ज्ञानी भक्तों के दर्शन हों। परमात्मा में निजात्मा का विलय पूर्ण हो। हमारी अभीप्सा केवल परमात्मा को उपलब्ध होने की ही हो, उससे कम कुछ भी नहीं। यह मनुष्य जन्म तभी सार्थक होगा जब इसमें हम परमात्मा को उपलब्ध हो जायें। हमारा प्रथम लक्ष्य ईश्वर की उपलब्धि हो। ये सूर्य, चंद्र, तारे, वायु और सारी प्रकृति उनकी बात मानती है। जब हमारा अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) हमारी बात मानना आरंभ कर दे, तब यही मानिये कि ईश्वर भी मिलने ही वाले हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०२४
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