श्रीकृष्ण समर्पण ...
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आजकल पिछले कुछ दिनों से एक विचित्र सी स्थिति हो गई है| इस से एक परम शांति भी मिल रही है और भगवान से एक दिव्य आश्वासन भी|
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अपने चारों ओर ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में हो रहे घटनाक्रम के प्रति मैं बहुत अधिक संवेदनशील हूँ| पूरी पृथ्वी का और पृथ्वी के हर भाग का मानचित्र मेरे मानस में है| इतना ही नहीं, पृथ्वी के हर भाग की जलवायू, और विश्व की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं आदि का भी काफी कुछ ज्ञान है| विश्व के बहुत सारे देशों का भ्रमण भी किया है, सभी महासागरों को जलयान से पार किया है, पृथ्वी की परिक्रमा भी की है, व प्रकृति का सौम्य और विकराल रूप भी देखा है| अपने निज जीवन के भूतकाल की अनेक बुरी-अच्छी स्मृतियाँ आती हैं| बहुत अधिक विचित्र अनुभव हैं, कई बातों की पीड़ा भी होती है| भारत और सनातन धर्म की वर्तमान दुःखद स्थिति की भी पीड़ा होती है|
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पर अब परिदृश्य परिवर्तित हो गया है| अच्छी-बुरी जो भी स्मृति आती है, वे सब अब भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित हो जाती हैं| जीवन का हरेक अच्छा-बुरा पक्ष, हर अनुभव, सब कुछ, पूरा जीवन ही श्रीकृष्ण को समर्पित है| बस एक यही भाव है जो जीवन के हर अभाव और कष्ट को दूर करता है| सारे अभाव व कष्ट, सारी अपूर्णता-पूर्णता, सारा अस्तित्व ... श्रीकृष्ण को समर्पित है| कुछ भी अपने लिए नहीं रखा है, सब कुछ भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है|
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गीता का यह चरम श्लोक बार-बार स्मृति में आमने आता है ...
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अब भगवान वासुदेव ही सर्वस्व हैं|
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||"
सारा जीवन उन्हें समर्पित है| मेरा कहने को कुछ भी नहीं है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अक्तूबर २०२०