परमात्मा के लिए अभीप्सा यानि एक अतृप्त प्यास, तड़प, और प्रचंड अग्नि सदा ह्रदय में प्रज्ज्वलित रहे ---
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हृदय में परमात्मा की उपस्थिति का निरंतर आभास रहे, यही उपासना है, यही सर्वोपरी साधना है। उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते। परमात्मा की प्राप्ति की तड़प में समस्त इच्छाएँ विलीन हों, और अवचेतन मन में छिपी सारी वासनाएँ नष्ट हों। जब भी समय मिले भ्रूमध्य से सहस्त्रार के मध्य में ब्रह्मरंध्र तक पूर्ण भक्ति के साथ ध्यान कीजिये। निष्ठा और साहस के साथ हर बाधा को पार करने में समर्थ हो जाएँगे। परमात्मा से सिर्फ परमात्मा के पूर्ण प्रेम के लिए ही प्रार्थना करें। अन्य प्रार्थनाएँ व्यर्थ और महत्वहीन हैं। परमात्मा की शक्ति सदा हमारे साथ है। उससे जुड़कर ही हमारे सभी शिव-संकल्प पूर्ण हो सकते हैं, अन्यथा नहीं।
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
२२ अक्तूबर २०२१
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