Tuesday, 26 October 2021

आत्मा में तो अभीप्सा है, लेकिन मन और बुद्धि में नहीं ---

 आत्मा में तो अभीप्सा है, लेकिन मन और बुद्धि में नहीं ---

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परमात्मा से साक्षात्कार हर आत्मा चाहती है, लेकिन मन और बुद्धि विषय-वासनाओं में लिप्त है। इस विषय-वासना को वेदान्त-वासना में परिवर्तित कर के हम आत्माराम कैसे बनें? यह एक बहुत बड़ी ज्वलंत व्यवहारिक समस्या है।
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इसका उत्तर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े स्पष्ट रूप से दिया है जिसे पढ़कर बुद्धि वाह-वाह तो कर देती है, लेकिन अनुसरण नहीं करती। हर सदविचार से विद्रोह तो मन उसी समय कर देता है। उपनिषदों में सारा ज्ञान भरा पड़ा है, जिसे समझ कर हम उत्साहित तो हो जाते हैं, पर हमारे मन और बुद्धि उस दिशा में हमें बिलकुल भी नहीं बढ़ने देते।
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इसका समाधान क्या है? एकमात्र समाधान है -- हम अपने मन और बुद्धि को परमात्मा में प्रतिष्ठित करें। दूसरे शब्दों में परमात्मा को ही मन और बुद्धि पर शासन करने दें। इसके लिए भगवान से प्रार्थना भी करनी होगी और ऐसी आत्माओं से सत्संग भी करना होगा जो वास्तव में महान हैं। महान वो है जो महत्-तत्व यानि परमात्मा से जुड़ा है। भगवान का निरंतर स्मरण, और शरणागति द्वारा समर्पण का निरंतर प्रयास -- ये ही समाधान हैं, अन्य कुछ भी नहीं।
आप सब में अभिव्यक्त हो रहे परमात्मा को नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ अक्तूबर २०२१

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