प्रश्न (१):--- भगवत्-प्राप्ति में सफलता कैसे प्राप्त हो?
प्रश्न (२):--- सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण कब व कैसे होगा?
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उत्तर (१):-- जिस तरह एक व्यापारी दिन-रात अपने धंधे के बारे में नफे-नुकसान की ही सोचता है, और उन्हीं लोगों से मिलता-जुलता है जो उसके धंधे में सहायक हों, --- उसी तरह जिन लोगों ने अपना धंधा ही परमात्मा की प्राप्ति को बना लिया है, वे दिन-रात सप्ताह में सातों दिन, और दिन में चौबीस घंटे --- सिर्फ परमात्मा का ही चिंतन करे; और उन्हीं लोगों से मेल-जोल रखें जो उनके धंधे में सहायक हों। बाकी अन्य सब का विष की तरह परित्याग कर दें। भगवान श्रीकृष्ण के वचनों में श्रद्धा और विश्वास रखें --
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
अर्थात् -- "जो अनन्य भक्त मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, मेरे में निरन्तर लगे हुए उन भक्तों का योगक्षेम (अप्राप्तकी प्राप्ति और प्राप्तकी रक्षा) मैं वहन करता हूँ।"
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यही एकमात्र मार्ग है परमात्मा की प्राप्ति का। हृदय में सत्यनिष्ठा, श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए। यह भगवत्-प्राप्ति ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। यही कल्याण का, और मोक्ष का एकमात्र मार्ग है। यही सत्य-सनातन-धर्म है।
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उत्तर (२):--- जिस दिन आधुनिक विज्ञान व निज अनुभव द्वारा मनुष्य की बुद्धि -- कर्मफलों, पुनर्जन्म व आत्मा की शाश्वतता को मान लेगी, उसी दिन से सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण आरंभ हो जाएगा। फिर भारत भी अखंड होगा और अपने परम वैभव को भी प्राप्त करेगा। कलियुगी पंथों का प्रभाव भी क्षीण होते होते लुप्त हो जाएगा।
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विशेष :-- परमात्मा से प्रेम (भक्ति) व अन्य संबन्धित विषयों पर अब तक अनेक बार लिख चुका हूँ। बार बार उसी बात को घूमा-फिरा कर लिखना समय की बर्बादी है।
जिन के हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम होगा, वे निश्चित रूप से रामायण, महाभारत और उपनिषदों आदि का स्वाध्याय, व सत्संग करेंगे।
जिन का मन और बुद्धि -- विषय-वासनाओं में लिप्त है, उनके भाग्य में भटकना ही लिखा है, वे भटकते ही रहेंगे। अनेक जन्मों तक कष्ट पाते-पाते वे भी एक न एक दिन सन्मार्ग पर आ ही जाएँगे।
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आप सब महान आत्माएँ हैं और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं।
आप सब को मेरा नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ अक्तूबर २०२१
सत्य-सनातन-धर्म की रक्षा भगवान करेंगे तो वे अपना माध्यम या निमित्त तो हमें ही बनाएँगे। अतः निज जीवन में परमात्मा को अपनी पूर्ण भक्ति, शरणागति और समर्पण द्वारा व्यक्त करें। यही हमारा स्वधर्म है। सब तरह की नास्तिक अवधारणाओं का एक बार त्याग कर दें। साथ-साथ सब तरह की सद्गुण-विकृतियों का भी त्याग कर दें। भगवान ने हमें विवेक दिया है, उस विवेक के प्रकाश में ही सारा कार्य करें।
ReplyDeleteॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ अक्तूबर २०२१