मनुष्य का वास्तविक सौंदर्य उसके संस्कारों में है, शरीर में नहीं ---
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किसी भी समाज के लोगों के विचार और भावनाओं को समझ कर उस समाज के बारे में हम सब कुछ जान सकते हैं। मनुष्य का सौंदर्य उसके संस्कारों में है, शरीर में नहीं। किसी भी मनुष्य की चैतन्य आत्मा ही स्थायी रूप से हमें प्रभावित कर सकती है, उसका शारीरिक सौंदर्य नहीं। यदि हम अपने भीतर के सौंदर्य -- "परमात्मा" -- को जान लें तो सब कुछ जान लिया।
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भारत की आत्मा "धर्म" है, अधर्म नहीं। हम सब शाश्वत आत्मा हैं, जिसका सर्वोपरी धर्म है -- परमात्मा को जानना यानि भगवत्-प्राप्ति। यह भगवत्-प्राप्ति ही सत्य-सनातन-धर्म है। यही भारत की अस्मिता और प्राण है। सनातन-धर्म के बिना भारत पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
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भारत का वैचारिक और भावनात्मक पतन बहुत तेजी से हो रहा है। बचने के उपायों पर देश के वे प्रबुद्ध जन विचार करें जिन के हाथों में सत्ता है। भारत के लोग बहुत अधिक भोगी व स्वार्थी हो चुके हैं। हमारी त्याग-तपस्या की भावना निरंतर क्षीण होती जा रही है। हमारी पारिवारिक व्यवस्था लगभग नष्ट हो चुकी है। अपनी रक्षा तो हमें स्वयं को ही करनी होगी।
ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
२२ अक्तूबर २०२१
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