Tuesday 25 October 2022

मेरी भावनाएँ ---

 मेरी भावनाएँ ---

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मेरा स्वधर्म है परमात्मा से परमप्रेम और उन्हें पाने की अभीप्सा। अन्य सब धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य और कर्तव्य-अकर्तव्य सबसे मैं अब परे हूँ। ये पंक्तियाँ मैं स्वयं की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए ही लिख रहा हूँ। मैंने जीवन में अनेक तपस्वी व विद्वान विरक्त संत-महात्माओं और मनीषियों का खूब सत्संग किया है। सभी से बहुत कुछ सीखा है। अनेक आध्यात्मिक अनुभूतियाँ भी प्राप्त की हैं। जीवन में स्वाध्याय भी अपनी बौद्धिक क्षमता की सीमा तक खूब किया है। पूरी तरह संतुष्ट हूँ।
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मेरी अपनी स्वयं की बहुत ही अधिक निजी समस्याएँ हैं, लेकिन मैं अपने धर्म पर दृढ़ व अडिग हूँ। अनेक बहुत अधिक महत्वपूर्ण बातें है जो गुरुकृपा से अब इस आयु में समझ में आ रही हैं। किसी को समझाना चाहूँ तो भी नहीं समझा सकता। लेकिन ज्ञान के प्रवाह को कोई नहीं रोक सकता। असत्य का अंधकार स्थायी नहीं है। जीवन एक सतत प्रवाह और प्रक्रिया है। मेरा भी एक संकल्प है जो निश्चित रूप से फलीभूत होगा। इस सृष्टि के सारे शरीर मेरे ही हैं। मैं ही सभी में व्यक्त हो रहा हूँ। भगवान शिव के सिर से जो गंगा जी प्रवाहित हो रही है, वह ज्ञान की ही गंगा है, जिसे कोई भी अवरुद्ध नहीं कर सकता। यह शरीर रहे या न रहे, मैं अजर अमर और शाश्वत हूँ। मैं स्वयं को सदा व्यक्त करता रहूँगा।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
८ अक्तूबर २०२२

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