जब तक शरीर में प्राण है तब तक मैं अपने धर्म पर दृढ़ रहूँ। स्वधर्म से क्षणमात्र के लिए भी न डिगूँ।
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मन में प्रश्न आता है कि वे कौन हैं जिनके कारण मेरे प्राणों का अस्तित्व है। कभी भगवती महाकाली की अनुभूतियाँ होती हैं, कभी श्रीहनुमान जी का विग्रह सामने आता है, और कभी वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण सामने बैठे दिखाई देते हैं। लेकिन इनमें भी तो प्राण है। वह प्राण-तत्व क्या है जिनके कारण भगवान के ये सभी रूप जीवंत हैं?
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कभी कभी अनुभूतियाँ होती हैं कि परमात्मा के संकल्प से ही प्राण और ऊर्जा -- इन दो मूल तत्वों की उत्पत्ति हुई, व सारी सृष्टि का निर्माण भी इन्हीं से हुआ है। सारी सृष्टि -- ऊर्जा और प्राण का ही विभिन्न मात्राओं और आवृतियों पर स्पंदन, प्रवाह, और गति है।
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जो भी हो, हे परमात्मा, आपका रहस्य जानने की अब और इच्छा नहीं है। आपका रहस्य -- रहस्य ही रहे। आपकी पूर्ण अभिव्यक्ति मुझ अकिंचन में हो। आप ही मेरे अस्तित्व हैं। जो आप हैं, वही मैं हूँ, और जो मैं हूँ, वही आप हैं। न तो अब और कुछ जानने को है, और न कुछ पाने को है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ अक्टूबर २०२२
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