"निज जीवन में ईश्वर की अभिव्यक्ति" ही "सनातन धर्म" है ---
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सनातन-धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन-धर्म है। सनातन-धर्म नित्य नवीन, नित्य सचेतन, और शाश्वत है। सनातन धर्म ही भारत की अस्मिता और पहिचान है। बिना सनातन धर्म के भारत, भारत नहीं है। भारत आज भी यदि जीवित है तो उन महापुरुषों के कारण है जिन्होंने निज जीवन में ईश्वर को व्यक्त किया।
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भारत में एक से एक बड़े बड़े चक्रवर्ती सम्राट हुए, महाराजा पृथु जैसे राजा हुए जिन्होंने पूरी पृथ्वी पर राज्य किया और जिनके कारण यह ग्रह "पृथ्वी" कहलाता है। भारत में इतना अन्न होता था कि सम्पूर्ण पृथ्वी के लोगों का भरण पोषण हो सकता था। एक छोटा मोटा गाँव भी हज़ारों लोगो को भोजन करा सकता था। लोग सोने कि थालियों में भोजन कर के थालियों को फेंक दिया करते थे। राजा लोग हज़ारों गायों के सींगों में सोना मंढा कर ब्राह्मणों को दान में दे दिया करते थे।
लेकिन हम ने कभी भी उन चक्रवर्ती राजाओं और सेठ-साहूकारों को आदर्श नहीं माना। हम आदर्श मानते हैं -- भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण को; क्योंकि उनके जीवन में परमात्मा अवतरित थे।
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इस पृथ्वी पर चंगेज़, तैमूर, माओ, स्टालिन, हिटलर, मुसोलिनी, अँगरेज़ शासकों, व मुग़ल शासकों जैसे क्रूर अत्याचारी और कुबलई जैसे बड़े बड़े सम्राट हुए। पर वे मानवता को क्या दे पाए? अनेकों बड़े बड़े अधर्म फैले और फैले हुए हैं, वे क्या भला कर पाए हैं? कुछ भी नहीं!
पृथ्वी पर कुछ भला होगा तो उन्हीं लोगों से होगा जिनके ह्रदय में परमात्मा है।
ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
८ अक्तूबर २०२२
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