Tuesday, 25 October 2022

भगवान से कुछ भी माँगना भगवान का अपमान है ---

 भगवान से कुछ भी माँगना भगवान का अपमान है ---

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भगवान -- एक कल्पवृक्ष की तरह हैं, जिसका काम सिर्फ देना है। कल्पवृक्ष कभी यह नहीं सोचता है कि आप बुरा मांग रहे हो या भला। जैसा भी आपका भाव है वही आपको मिल जाएगा। कभी भी उनसे यह मत कहो कि मेरे पास यह नहीं है, वह नहीं है। जिसके भी नहीं होने का भाव उनके समक्ष व्यक्त करोगे, वह सचमुच ही आपसे छीन लिया जाएगा। वे जब स्वयं ही अपने आप को देना चाहते हैं तब उनसे कुछ मांगना उन का अपमान नहीं तो और क्या है? माँगना तो भिखारियों का काम है। हम भिखारी नहीं, उनके अमृतपुत्र हैं। जो मांगने वालों की भीड़ है, वह भिखारियों की भीड़ है, वे विष मिले मधु की तरह हैं। उनका संग ज़हर है, उनका कुसंग तुरंत त्याग दो। भगवान पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जो कुछ भी भगवान का है, वह हम स्वयं हैं। ॐ ॐ ॐ !!
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भगवान से उनके अतिरिक्त और कुछ भी मत चाहो। सदा यह भाव रखो कि मैं उनकी अनंतता, उनका परमप्रेम, उनका आनंद, उनकी पूर्णता, उनका अमृतपुत्र और उनके साथ एक हूँ। गीता का जो चरम श्लोक है, उसका भी यही अर्थ है ---
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अक्तूबर २०२२
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पुनश्च : --- यह पूरा विश्व, यह पूरी सृष्टि, भगवान ने जो कुछ भी बनाया है, वह आपके लिए नहीं बनाया है। जो कुछ भी बनाया है, वह आप स्वयम् हो। आप परमात्मा की संपूर्णता हो, यह नश्वर देह नहीं। जो आप हैं वे ही भगवान हैं, जो भगवान हैं, वे ही आप हैं। ॐ ॐ ॐ !!
विष्णु सहस्त्रनाम का पहला शब्द ही "विश्व" है --
"विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः॥१॥"

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