Tuesday, 25 October 2022

कस्मै देवाय हविषा विधेम? ---

 कस्मै देवाय हविषा विधेम? --- हम किन देवता को नमन करें? किन से प्रार्थना करें? किन के लिए यज्ञ करें व आहुतियाँ दें? वे कौन से देव हैं जो हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकें? हमें शांति प्रदान कर सकें? हमें ऊँचा उठाने में सहायता दे सके? ऐसे देव कौन है?

.
जिन्होनें मुझ में ही नहीं, पूरी सृष्टि में स्वयं को व्यक्त कर रखा है। उन्हीं पारब्रह्म परमात्मा का ध्यान और उनको समर्पण -- मेरी दृष्टि में समष्टि के कल्याण के लिए किया गया सबसे बड़ा यज्ञ है। समष्टि के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य जो कोई कर सकता है वह है - परमात्मा से परम प्रेम और उन को समर्पण। अपने अहं यानि मानित्व की आहुति अपने प्रियतम प्रभु को दें। जब अहं समाप्त हो जाता है, तब केवल परमात्मा ही बचते हैं। यही समष्टि की सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा यज्ञ है।
"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना॥४:२४॥" (गीता)
.
माता पिता की सेवा और सम्मान प्रथम यज्ञ है। उसके बिना अन्य यज्ञ सफल नहीं होते। वे लोग भाग्यशाली हैं जिन्हें माता पिता की सेवा का अवसर मिलता है। माता-पिता का तिरस्कार करने वाले से उसके पितृगण प्रसन्न नहीं होते। उसके घर में कोई सुख शांति नहीं होती और उसके सारे यज्ञ कर्म विफल होते हैं।
.
इस ग्रह पृथ्वी के देवता 'अग्नि' हैं। भूगर्भ में जो अग्नि है उसी के कारण पृथ्वी पर जीवन है। उस भूगर्भस्थ अग्नि के कारण ही हमें सब प्रकार के रत्न, धातुएँ और वनस्पति प्राप्त होती हैं। इसीलिए सृष्टि में इस पृथ्वी लोक पर जहाँ हमारा वर्तमान अस्तित्व है, वहाँ परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक "अग्नि" है। उस "अग्नि" में हम समष्टि के कल्याण के लिए कुछ विशिष्ट मन्त्रों के साथ आहुतियाँ देते हैं, वह भी यज्ञ का एक रूप है।
.
एक विशिष्ट विधि द्वारा प्राण में अपान, और अपान में प्राण कि आहुतियाँ देते हैं, वह भी यज्ञ का एक रूप है। फिर प्रणव का मानसिक जप करते हुए ज्योतिर्मय नाद ब्रह्म में लय होकर अपने अस्तित्व का अर्पण करते हैं, वह भी यज्ञ है।
परोपकार के लिए हम जो भी कार्य करते हैं वह भी यज्ञ की श्रेणी में आता है| भगवान की भक्ति भी एक यज्ञ है। परमात्मा की चर्चा "ज्ञान यज्ञ" है। अपने ह्रदय में परमात्मा को पाने की प्रचंड अग्नि प्रज्ज्वलित कर शिवभाव में स्थित होकर प्रणव की चेतना से युक्त होकर हर साँस में सोsहं-हंसः भाव से उस प्रचंड अग्नि में अपने अस्तित्व की आहुतियाँ देकर प्रभु की सर्वव्यापकता और अनंतता में विलीन हो जाना भी एक बहुत बड़ा यज्ञ है। अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का प्रभु में पूर्ण समर्पण कर उनके साथ एकाकार हो जाना ही यज्ञ कि परिणिति और सार्थकता है।
.
ॐ तत्सत् !! ॐ शिव शिव शिव !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अक्तूबर २०२२
.
पुनश्च : -- (प्रश्न) :--- हम क्या उपासना करें?
किस देवता की आराधना करें?
कौन सा पंथ/सिद्धान्त/मत/रिलीजन/मज़हब सर्वश्रेष्ठ है?
.
(उत्तर) :--- जिस उपासना से मन की चंचलता शांत हो, परमात्मा से प्रेम और समर्पण का भाव बढ़े, वही उपासना सार्थक है, अन्य सब निरर्थक हैं।
स्वभाविक रूप से भगवान का जो भी रूप हमें सब से अधिक प्रिय है, उसी की आराधना करें।
जो हमें इसी जीवन में भगवत्-प्राप्ति करा दे, वही पंथ/सिद्धांत/मत सर्वश्रेष्ठ है।
ध्यान या तो हम भगवान शिव का करते हैं, या भगवान विष्णु या उनके अवतारों का। अधिकांश योगी ज्योतिर्मय ब्रह्म के साथ साथ प्रणव का भी ध्यान करते हैं।
उपदेश हम किसी ब्रहमनिष्ठ श्रौत्रीय (जिसे श्रुतियों का ज्ञान हो) आचार्य से ही ग्रहण करें।
अंत में एक बात याद रखें कि बिना भक्ति (परमप्रेम) व सत्यनिष्ठा के कोई साधना सफल नहीं होती।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
३ अक्टूबर २०२२

No comments:

Post a Comment