Tuesday, 25 October 2022

श्रीकृष्ण समर्पण ---

 श्रीकृष्ण समर्पण ---

आज प्रातःकाल उठते ही स्वतः यह भाव मन में आया कि मैं मेरे इस जीवन में हुये अच्छे-बुरे सभी घटनाक्रमों को श्रीकृष्ण समर्पित करता हूँ। किसी ने मेरे साथ अच्छा या बुरा जैसा भी व्यवहार किया वह सब उन्होंने मेरे साथ नहीं, श्रीकृष्ण के साथ किया है। मेरे अपने भी अच्छे-बुरे सारे कर्म और उनके फल श्रीकृष्ण को समर्पित हैं। मेरा एकमात्र व्यवहार श्रीकृष्ण से है।
जो भी साधना मेरे माध्यम से होती है उसके कर्ता श्रीकृष्ण है। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। वे मेरे सामने हर समय शांभवी महामुद्रा में बिराजमान रहते हुए अपने परमशिव रूप का ध्यान कर रहे हैं। और कुछ भी नहीं चाहिए। यह जीवन उनके साथ इसी भाव में व्यतीत हो जायेगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अक्तूबर २०२२
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श्रीकृष्ण समर्पण ---
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(१) मुझ पर अनेक लोगों के उपकार हैं, मैं कभी भी उनको कृतज्ञता व्यक्त नहीं कर पाया।
(२) अनेक लोगों ने मुझ पर उपकार किया, लेकिन प्रत्युत्तर में मैंने उनके साथ अपकार ही किया। मैं सदा कृतघ्न ही रहा।
(३) अपनी नासमझी, बुद्धिहीनता, कुटिलता और भूलवश अनेक पापकर्म और हिमालय से भी बड़ी-बड़ी भूलें मुझसे हुईं।
(४) पता नहीं कोई पुण्यकर्म कभी किसी जीवन में किया भी या नहीं।
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पृथकता का बोध ही सबसे बड़ा पाप था, जिससे अन्य सब पाप हुए। अपने पाप-पुण्य, सारे संचित व प्रारब्ध कर्म, और स्वयं का सम्पूर्ण अस्तित्व -- सब कुछ श्रीकृष्ण समर्पण !!
मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। सब कुछ भगवान वासुदेव ही हैं। उनसे अन्य कुछ भी नहीं है। वे अनन्य और अनंत हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ सितंबर २०२२

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