कुछ अनुत्तरित प्रश्न ?? --
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विश्व में जितने भी Secular देश हैं, वे सब अपने अपने Religion/मजहब को संरक्षण देते हैं। ब्रिटेन की सरकार स्वयं को सेकुलर कहती है लेकिन वह Church of England को पूरा संरक्षण देती है। बिना Church of England की अनुमति के वहाँ पत्ता भी नहीं हिलता।
अमेरिका के लगभग सारे राष्ट्रपति Evangelist Church से थे और हैं। वहाँ की सरकारें स्वयं को Secular कहती हैं, लेकिन Evangelism को पूरा संरक्षण देती हैं।
यूरोप के सारे देश अपने बहुमत के चर्चों को पूरा आधिकारिक संरक्षण देते हैं। रूस जैसा देश जो कुछ समय पूर्व तक नास्तिक था, इस समय Russian Orthodox Chuch को पूरा संरक्षण दे रहा है। वहाँ के राष्ट्रपति पुतिन जब सत्ता में आए तब उन्होंने Christianity और Russian Orthodox Church की रक्षा का सार्वजनिक रूप से संकल्प लिया था।
जितने भी इस्लामिक देश है, वहाँ का सारा काम "बिस्मिल्ला ओ रहमानो रहीम" बोलकर होता है। अप्रत्यक्ष रूप से वहाँ का शासन मुल्ला-मौलवियों द्वारा संचालित है। तुर्की स्वयं को सेकुलर कहता है, लेकिन अपने आप को इस्लाम का मुख्य संरक्षक मानता है।
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केवल भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ हिंदुओं का बहुमत है लेकिन सन १९४७ से ही Secularizm के नाम पर हिन्दुत्व को सुव्यवस्थित रूप से नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। पाँच हिन्दू युवाओं से पूछ लो कि हिन्दू धर्म क्या है? कोई भी नहीं बता पाएगा, क्योंकि उन्हें धर्म की शिक्षा ही नहीं मिली है। भारत का संविधान -- मान्यता प्राप्त विद्यालयों में हिन्दू धर्म को पढ़ाने की अनुमति नहीं देता। गुरुकुलों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त नहीं है। लगभग सारे मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं, वहाँ का चढ़ावा जो हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में खर्च होना चाहिए, वह विधर्मियों के कल्याण के लिए खर्च होता है।
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हिंदुओं में आत्म-हीनता का भाव भर दिया गया है। सब आपस में एक-दूसरे को नीचा ही दिखाते रहते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए, पर क्यों हो रहा है? इसका क्या समाधान है?
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दूसरा मेरा प्रश्न है कि जब भारत के संविधान ने "अल्पसंख्यक", "बहुसंख्यक", "धर्मनिरपेक्ष", "सेकुलर", "समाजवाद", आदि शब्दों को परिभाषित ही नहीं किया है, तब क्यों इनके नाम पर शासन चलाया जा रहा है?
इंग्लैंड का तो कोई लिखित संविधान ही नहीं है, लेकिन क्यों वे भारत पर यह संविधान थोप गए? वर्तमान संविधान उनके India Indendence Act का ही copy/paste है जिसे बाबा साहब का लिखा संविधान बताया जा रहा है। कोई भी संविधान स्थायी नहीं होता, पर इसे धर्मग्रंथ बताया जा रहा है।
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सनातन धर्म यदि समाप्त हो गया तो यह सभ्यता भी समाप्त हो जाएगी। चारों ओर आतताइयों का बोलबाला हो जाएगा। ये इब्राहिमी मजहब (Abrahmic Religions), और मार्क्सवाद भी सब आपस में लड़ झगड़ कर नष्ट हो जाएंगे। विश्व की कुल जनसंख्या बहुत कम हो जाएगी। नई सृष्टि का जो नवनिर्माण होगा वह नव जागृत सनातन धर्म ही करेगा।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
११ अक्टूबर २०२२
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पुनश्च:-- एक बात और बताता हूँ जिस पर कभी चर्चा नहीं होती। जब आर्मेनिया और अज़रबेजान में लड़ाई हो रही थी, तब रूस निरपेक्ष रहा। अज़रबेजान तो एक शिया मुस्लिम देश है, और आर्मेनिया ईसाई। लेकिन आर्मेनिया का अपना स्वयं का "The Armenian Apostolic Church" है, जिसकी रूस के "Russian Orthodox Church" से नहीं बनती।
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