Sunday, 31 July 2016

सब से बड़ी उपलब्धी, सब से बड़ी सेवा और सब से बड़ा कर्त्तव्य ....

सब से बड़ी उपलब्धी, सब से बड़ी सेवा और सब से बड़ा कर्त्तव्य .... परमात्मा की प्राप्ति है, जिसे हम आत्म-साक्षात्कार या परमात्मा को उपलब्ध होना भी कह सकते हैं| इस हेतु किया जाने वाला साधन सबसे बड़ा कर्तव्य व दायित्व है|
इस हेतु मार्गदर्शन कोई ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य ही कर सकता है जिसने परमात्मा को पा लिया हो|
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एक बार वह साधन मिल जाए तो अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता से लग जाना चाहिए| कोई समझौता नहीं, कोई भय नहीं, व कोई तथाकथित लोकलाज या अन्य किसी छोटे मोटे दायित्व की परवाह नहीं करनी चाहिए| सफलता उसी को मिलती है जो जान हथेली पर लेकर चलता है|
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इस बारे में मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अपनी विफलताओं और अनुभवों से सीखा है| मैं नहीं चाहता कि जो विफलताएँ मुझे मिलीं वे औरों को भी मिलें|
सबसे पहले परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम सत्संग द्वारा विकसित करना और फिर गुरु-प्रदत्त साधना में जी-जान से जुट जाना चाहिए|
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सभी का कल्याण हो| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

Saturday, 30 July 2016

वास्तविक गुरु कौन हैं ......

वास्तविक गुरु कौन हैं .........
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'गु' शब्द का अर्थ है --- अन्धकार, और 'रू' अर्थ है दूर करने वाला|
जो अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करते हैं वे ही गुरु हैं|
परमेष्टिगुरु (परम इष्ट आदिगुरू) परमेश्वर महादेव ही वास्तविक गुरु हैं| यदि वे ही कृपा करें तो एकमात्र सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती है| वे ही एक जड़बुद्धि व्यक्ति को दिव्य ज्ञानी बना सकते हैं| वे ही शिष्य की चेतना के अनुसार अनेक रूपों में आकर ज्ञान देते हैं|
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योगियों के कूटस्थ में वे सर्वदा प्रणवनाद और ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में बिराजते हैं| वे पंचमुखी महादेव ही हैं जो एक पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र (ज्योतिर्मय ब्रह्म) के रूप में योगियों को दर्शन देते हैं, जिसे भेदकर योगियों की चेतना उन्हीं की कृपा से उन्हीं में मिल जाती है|
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शिष्य को गुरु का निरंतर ध्यान सहस्त्रार में करना चाहिए| गुरु की कृपा से ही सुषुम्ना का द्वार खुलता है| गुरु की कृपा से ही नाद का श्रवण और ज्योति के दर्शन होते हैं| वे गुरु ही हैं जो मेरुदंड में प्राणऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाते हैं, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप श्वास-प्रश्वास चलती है|
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शैवागम और शाक्त्यागम के प्राचीन ग्रंथों में गुरुप्रणाम के कुछ सिद्ध मंत्र हैं जिनके उच्चारण मात्र से तप, जाप, योग क्रियाएँ सब कुछ सूक्ष्म रूप में एकसाथ संपन्न हो जाती हैं| अलग से किन्ही सांध्य क्रियाओं की आवश्यकता नहीं पड़ती| उन मन्त्रों की प्राप्ति भी गुरु कृपा से ही होती है|
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ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय|
ॐ परात्पर गुरवे नम:| ॐ परमेष्टि गुरवे नमः| ॐ नम:शिवाय|

Thursday, 14 July 2016

असली गुरु दक्षिणा क्या है ??? .....

असली गुरु दक्षिणा क्या है ??? .....
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सनातन धर्म की परम्परा है ..... गुरु दक्षिणा, जिसमें शिष्य गुरु का उपकार मानते हुए गुरु को स्वर्णमुद्रा, रौप्यमुद्रा (रुपया पैसा), अन्न-वस्त्र और पत्र-पुष्प अर्पित करता है|
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पर यह असली गुरु दक्षिणा नहीं है| ये तो सांसारिक वस्तुएं हैं जो यहीं रह जाती हैं| हालाँकि इस से शिष्य को अनेक लाभ मिलते हैं पर स्थायी लाभ कुछ नहीं मिलता|
अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में वास्तविक गुरु-दक्षिणा कुछ और है जिसे वही समझ सकता है जिसका अध्यात्म में तनिक प्रवेश है|
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हमारी सूक्ष्म देह में हमारे मस्तक के शीर्ष पर जो सहस्त्रार है, जहाँ सहस्त्र पंखुड़ियों वाला कमल पुष्प है, वह हमारी गुरु-सत्ता है| वह गुरु का स्थान है|
उस सहस्त्र दल कमल पर निरंतर गुरु का ध्यान ही असली गुरु-दक्षिणा है|
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गुरु-चरणों में मस्तक एक बार झुक गया तो वह कभी उठना नहीं चाहिए| वह सदा झुका ही रहे| यही मस्तक यानि शीश का दान है| इससे हमारे तन, मन, धन और सर्वस्व पर गुरु का अधिकार हो जाता है| तब जो कुछ भी हम करेंगे उसमें गुरु हमारे साथ सदैव रहते हैं| यही है गुरु चरणों में सम्पूर्ण समर्पण|
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तब हमारे अच्छे-बुरे सब कर्म भी गुरु चरणों में अर्पित हो जाते हैं| हम पर कोई संचित कर्म अवशिष्ट नहीं रहता| तब गुरु ही हमारी आध्यात्मिक साधना के कर्ता हो जाते हैं|
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साधना का सार भी यही है की गुरु को कर्ता बनाओ| साधना, साध्य, और साधक; दृष्टा, दृश्य और दृष्टी सब कुछ हमारे गुरु महाराज ही हैं| हमारी उपस्थिति तो वैसे ही है जैसे एक यज्ञ में यजमान की उपस्थिति| हम को तो सिर्फ समभाव में अधिष्ठित होना है|
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अपने गुरु को सहत्रार में सहस्त्रदल कमल पर प्रतिष्ठित कर लो| वे ही हमारे कूटस्थ में आसीन होकर समस्त साधना और लोक कार्य करेगे| वे ही फिर हमें सच्चिदानंद से एकाकार कर देंगे|
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और भी स्पष्ट शब्दों में .....असली और अंतिम गुरु दक्षिणा होगी स्वयं गुरु के समान हो जाना यानी ब्रह्म हो जाना !

यही है सच्ची और असली गुरुदक्षिणा|
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दुर्लभ दर्शन साध का, दुर्लभ गुरु उपदेश ।
दुर्लभ करबा कठिन है, दुर्लभ परस अलेख ॥
मन ताजी चेतन चढै, ल्यौ की करै लगाम ।
शब्द गुरु का ताजणा, कोई पहुँचै साधु सुजान ॥
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ॐ श्री गुरवे नमः ! ॐ तत्सत् !

माता पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करना पुत्र का परम कर्त्तव्य है......

माता पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करना पुत्र का परम कर्त्तव्य है......
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यदि किसी कारण से पिता का कोई कर्म जैसे दान, तपस्या, अध्ययन, देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण, समाजऋण और राष्ट्रऋण बाकी रह जाए तो एक पुत्र का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने पिता और पितृगण के अधूरे कार्य को पूरा करके उन्हें ऋणमुक्त करे| तभी एक सन्तान को पुत्र कहलाने की योग्यता मिलती है|
माता-पिता की कमियों और अपूर्णताओं को पूरा कर के ही एक पुत्र ..... पुत्र कहलाने का अधिकारी बनता है|
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माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं| पिता ही शिव हैं| और माता पिता दोनों मिलकर शिव और शिवानी यानि अर्धनारीश्वर के रूप हैं|
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किसी भी परिस्थिति में उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में आप उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार आपको नहीं है| आप उनका भूल से भी अपमान नहीं करोगे| उनका पूर्ण सम्मान करना आपका परम धर्म है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Saturday, 9 July 2016

जिसने भारतभूमि में जन्म लेकर भी सत्संग नहीं किया, भगवान से प्रेम नहीं किया और परोपकार नहीं किया, वह वास्तव में अभागा है|

जिसने भारतभूमि में जन्म लेकर भी सत्संग नहीं किया, भगवान से प्रेम नहीं किया और परोपकार नहीं किया, वह वास्तव में अभागा है|
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विश्व में भारत जी एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अहैतुकी परम प्रेम और पराभक्ति की अवधारणा है|
भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ समष्टि के कल्याण की कामना की जाती है|
भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ गुरु-शिष्य की परपरा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

परमात्मा के मार्ग पर चलने वाले पथिको के लिए .....

परमात्मा के मार्ग पर चलने वाले पथिको के लिए .....
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भगवान को समर्पित होने पर सबसे पहिले तो हम जाति विहीन हो जाते हैं, फिर वर्ण विहीन हो जाते हैं, घर से भी बेघर हो जाते हैं, देह की चेतना भी छुट जाती है और मोक्ष की कामना भी नष्ट हो जाती है|
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विवाह के बाद कन्या अपनी जाति, गौत्र और वर्ण सब अपने पति की जाति, गौत्र और वर्ण में मिला देती है| पति की इच्छा ही उसकी इच्छा हो जाती है| वैसे ही परमात्मा को समर्पित होने पर अपना कहने को कुछ भी नहीं बचता, सब कुछ उसी का हो जाता है| 'मैं' और 'मेरापन' भी समाप्त हो जाता है| सब कुछ 'वह' ही हो जाता है|
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भगवान् की जाति क्या है ?
भगवान् का वर्ण क्या है ?
भगवान् का घर कहाँ है ?
मैं कौन हैं ?
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इन सब प्रश्नों के उत्तर जिज्ञासु लोग सोचें| मेरे लिए तो ये सब महत्वहीन हैं| पर एक बात तो है कि जो कुछ भी परमात्मा का है ---- सर्वज्ञता, सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमता आदि आदि आदि उन सब पर हमारा भी जन्मसिद्ध अधिकार है| हम उनसे पृथक नहीं हैं|
जो भगवान की जाति है वह ही हमारी जाति है|
जो उनका घर है वह ही हमारा घर है|
जो उनकी इच्छा है वह ही हमारी इच्छा है|
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Thou and I art one.
Reveal Thyself unto me.
Make me one with Thee.
Make me a perfect child of Thee.
तुम महासागर हो तो मैं जल की एक बूँद हूँ जो तुम्हारे में मिलकर महासागर ही बन जाती है|
तुम एक प्रवाह हो तो मैं एक कण हूँ जो तुम्हारे में मिलकर विराट प्रवाह बन जाता है|
तुम अनंतता हो तो मैं भी अनंत हूँ|
तुम सर्वव्यापी हो तो मैं भी सदा तुम्हारे साथ हूँ|
जो तुम हो वह ही मैं हूँ| मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है|
जब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता तो तुम भी मेरे बिना नहीं रह सकते|
जितना प्रेम मेरे ह्रदय में तुम्हारे प्रति है, उससे अनंत गुणा प्रेम तो तुम मुझे करते हो|
तुमने मुझे प्रेममय बना दिया है|
जहाँ तुम हो वहीँ मैं हूँ, जहाँ मैं हूँ वहीँ तुम हो|
मैं तुम्हारा अमृतपुत्र हूँ, तुम और मैं एक हैं|
ॐ शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ शिव | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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(पुनश्चः :- यह ध्यान की एक अनुभूति है जो प्रायः सभी साधकों को होती है)

१९६५ में भारत पाक के मध्य हुआ दूसरा युद्ध -----

५० वर्ष पूर्व १९६५ में भारत पाक के मध्य हुआ दूसरा युद्ध -----
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(यह लेख मैंने २३ जून को लिखा था, उसी में थोड़ा सा संशोधन कर के दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ)
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भारत पाक के मध्य १९६५ के व १९७१ के युद्ध की मुझे बड़ी स्पष्ट स्मृतियाँ हैं| १९६२ में चीन से पराजित होने के कारण देश में निराशा व्याप्त थी पर १९६५ के इस युद्ध ने देश में व्याप्त उस निराशा को दूर कर दिया| उस समय देश में जो जोश जागृत हुआ उसकी अब सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है|
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सन १९६५ में देश में अनाज की बहुत कमी थी| राशन में अमेरिका से आयातित लाल रंग का गेंहूँ मिलता था जो अमेरिका में पशुओं को खिलाया जाता था| हम भारतीय लोग वह अनाज खाने को बाध्य थे| पाकिस्तान ने अमेरिका की सहायता से युद्ध की बहुत अच्छी तैयारियाँ कर रखी थीं| उसके पास अमेरिका से प्राप्त नवीनतम टैंक और युद्धक विमान थे| अन्य हथियार भी उसके पास श्रेष्ठतर थे|
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भारत-पाकिस्तान के मध्य अप्रैल १९६५ से सितम्बर १९६५ के बीच छोटी मोटी झड़पें कही न कहीं लगातार होती ही रहती थीं| युद्ध का आरम्भ पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के नाम से अपने सैनिको को घुसपैठियो के रूप मे भेज कर इस अपेक्षा से किया कि कश्मीर की जनता भारत के विरुद्ध विद्रोह कर देगी| अगस्त १९६५ में ३०,००० पाकिस्तानी सैनिको ने कश्मीर की स्थानीय जनता की वेषभूषा मे नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय कश्मीर मे प्रवेश किया| १ सितम्बर १९६५ को पाकिस्तान ने ग्रैंड स्लैम नामक एक अभियान के तहत सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण अखनूर, जम्मू नगर और कश्मीर को भारत से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण भूभाग पर अधिकार के लिये आक्रमण कर दिया| इस अभियान का उद्देश्य कश्मीर घाटी का शेष भारत से संपर्क तोडना था ताकि भारत की रसद और संचार व्यवस्था भंग कर दी जाय|
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भारत में उस समय सेना के पास गोला बारूद की बहुत कमी थी| १९६२ की पराजय की पीड़ा से देश उबरा भी नहीं था| पाकिस्तान के इस आक्रमण के लिये भारत तैयार नहीं था| पाकिस्तान को भारी संख्या मे सैनिकों और श्रेष्ठतर श्रेणी के टैंको का लाभ मिल रहा था| आरम्भ में भारत को भारी क्षति उठानी पड़ी| युद्ध के इस चरण मे पाकिस्तान बहुत बेहतर स्थिति मे था और पूरी तरह लग रहा था कि कश्मीर पर उसका अधिकार हो जायेगा|
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पाकिस्तान को रोकने के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने लाहौर पर हमले का आदेश दिया| पाकिस्तान के लिए यह एक अप्रत्याशित प्रत्याक्रमण था| इससे कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना का दबाव बहुत कम हो गया| पाकिस्तान ने भी लाहौर पर भारत का दबाव कम करने के लिये खेमकरण पर आक्रमण कर दिया|
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तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की अपील पर देशवासियों ने सप्ताह में एक समय भोजन करना बंद कर दिया और भोजन भी कम मात्रा में खाना आरम्भ कर दिया ताकि देश में भुखमरी ना हो| शास्त्री जी ने -- "जय जवान जय किसान" का नारा दिया और किसानों से अधिक अन्न उगाने की अपील की|
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इस लड़ाई मे भारतीय सेना के लगभग ३००० और पाकिस्तानी सेना के ३८०० जवान मारे जा चुके थे| भारत ने युद्ध मे ७१० वर्ग किलोमीटर इलाके पर और पाकिस्तान ने २१० वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया था। भारत के क्ब्जे मे सियालकोट, लाहौर और कश्मीर के उपजाऊ क्षेत्र थे, और पाकिस्तान के कब्जे मे सिंध और छंब के अनुपजाऊ इलाके थे|
इस युद्ध में आजादी के बाद पहली बार भारतीय वायु सेना (आईएएफ) एवं पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) के विमानों ने एक दुसरे का मुकाबला किया| नौ सेना ने जब तक युद्ध आरम्भ करने की तैयारी की, युद्ध विराम हो गया और कोई नौसैनिक युद्ध नहीं हो पाया|
पश्चिमी राजस्थान के कुछ क्षेत्रों पर पाकिस्तान ने बहुत भयानक बमबारी की थी| उस समय की अनेक स्मृतियाँ स्थानीय लोगों को है|
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इस युद्ध का लाभ यह हुआ कि भारत का स्वाभिमान बढ़ा| वह निराशा दूर हुई जो १९६२ की पराजय के पश्चात हुई थी| हानि यह हुई कि हमें हमारे प्रिय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को खोना पडा| युद्ध में हम जीते तो अवश्य पर दुर्भाग्य से वार्ता की टेबल पर हार गए और जीते हुए क्षेत्र पाकिस्तान को बापस लौटाने पड़े| आज तक यह भी रहस्य बना हुआ है कि शास्त्री जी की ह्त्या हुई थी या स्वाभाविक मौत| किन परिस्थितियों में ताशकंद समझौता हुआ यह भी रहस्य अभी तक बना हुआ है|
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पाकिस्तान में युद्ध का उन्माद पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने फैलाया था| पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक तानाशाह अय्यूब खान यह युद्ध नहीं चाहते थे पर भुट्टो ने उनके दिमाग में यह बात बैठा दी थी कि भारत को पराजित करने का यही सही समय है| पाकिस्तान को बड़ी निराशा हुई जब उसकी अपेक्षानुसार कश्मीर की जनता ने पाकिस्तान के पक्ष में भारत के विरुद्ध कोई विद्रोह नहीं किया, और भारत के प्रधान मंत्री का राजनीतिक नेतृत्व भी बड़ा अच्छा व सफल रहा| भारत की सेना ने बड़ी वीरता से युद्ध लड़ा| अमेरिका का अप्रत्यक्ष और पूर्ण समर्थन पाकिस्तान को था| अमेरिका को पाकिस्तान की योजना व सैन्य तैयारियों का पूरा पता था पर अमेरिका ने यह युद्ध रुकवाने का कोई प्रयास नहीं किया|
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देशवासियों के शौर्य, बलिदान और त्याग को हमें नहीं भूलना चाहिए|
जय भारत ! वन्दे मातरम् |

गुरु तत्व रूप में सर्वत्र व्याप्त है ....

गुरु तत्व रूप में सर्वत्र व्याप्त है ....
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जो नियमित ध्यान साधना करते हैं वे ही इसे ठीक से समझ सकते हैं|
तत्व रूप में गुरु रूप ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त हैं| उनकी सर्वव्यापक आभा सम्पूर्ण समष्टि में है, और सम्पूर्ण समष्टि उनकी ही आभा में समाहित है| सम्पूर्ण अस्तित्व उन्हीं का है, और वे ही सम्पूर्ण अस्तित्व हैं|
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उनकी उपस्थिति का आभास परमप्रेम और आनंद के साथ कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म और प्रणव नाद के रूप में होता है| वे सब तरह के नाम-रूपों से परे हैं| उन्हें सीमित नहीं किया जा सकता| वे निराकार और साकार दोनों हैं|
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मेरे लिए तो साकार रूप में वे मेरे समक्ष नित्य शाम्भवी मुद्रा में पद्मासन में मेरे सहस्त्रार में समाधिस्थ हैं| वे ही मेरे ध्येय हैं और मेरा समर्पण उन्हीं के प्रति है|
मेरे लिए वे ही परमशिव है, विष्णु हैं, नारायण हैं और जगन्माता हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||

साधना के मार्ग पर शत-प्रतिशत रहें .....

साधना के मार्ग पर शत-प्रतिशत रहें .....
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अपने ह्रदय में जो प्रचंड अग्नि जल रही है उसे दृढ़ निश्चय और सतत् प्रयास से निरंतर प्रज्ज्वलित रखिए|
आधे-अधूरे मन से किया गया कोई प्रयास सफल नहीं होगा|
साधना निश्चित रूप से सफल होगी, चाहे यह देह रहे या न रहे ...... इस दृढ़ निश्चय के साथ साधना करें, आधे अधूरे मन से नहीं|
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परमात्मा का स्मरण करते करते यदि मरना भी पड़े तो वह इस नारकीय सांसारिक जीवन जीने से तो अच्छा है|

ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

एक विचार .....

एक विचार .....
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भारत में समाज और राष्ट्र की अवधारणा दुर्भाग्य से लगभग चौदह-पंद्रह सौ वर्षों पूर्व क्षीण हो गयी थी| वह एक घोर अज्ञान व अन्धकार का युग था इसीलिए हमें पिछले एक हज़ार वर्षों में पराजित और विदेशी लुटेरों का शिकार होना पडा| इसका दोष हम दूसरों पर नहीं डाल सकते| यदि पर्वत शिखर से बहता हुआ जल नीचे खड्डों में आता है तो खड्डे पहाड़ से क्या शिकायत कर सकते है? स्वयं की रक्षा के लिए खड्डे को ही शिखर बनना पडेगा| निर्बल को सब सताते हैं| संगठित और सशक्त राष्ट्र की ओर आँख उठाकर देखने का साहस किसी में नहीं होता|
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भारत में जब तक राष्ट और समाज हित की अवधारणा थी, तब तक किसी का साहस नहीं हुआ भारत की ओर आँख उठाकर देखने का| बिना किसी पूर्वाग्रह के यदि हम इतिहास का अध्ययन और विश्लेषण करें तो पायेंगे कि हमारी ही कमी थी जिसके कारण हम गुलाम हुए| वे कारण अब भी अस्तित्व में हैं पर कुछ कुछ चेतना अब धीरे धीरे समाज में आ रही है|
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आप चाहे कितनी भी सद्भावना सब के लिए रखो पर हिंसक और दुष्ट प्राणियों के साथ नही रह सकते| ऐसे ही हमारे सारे कार्य यदि राष्ट्रहित में हों तो हमें प्रगति के शिखर पर जाने से कोई नहीं रोक सकता| इस बिंदु पर सब को स्वयं मंथन करना पड़ेगा|
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सब राष्ट्र अपना निज हित देखते हैं| कोई किसी का स्थायी शत्रु और मित्र नहीं होता| जो भावुकता में निर्णय लिए जाते हैं वे आत्म घातक होते हैं| वैसे ही यदि हम अपने लोभ लालच, जातिवाद और प्रांतवाद से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में कार्य करें तो हमें विकसित होने से कोई नहीं रोक सकता|
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भारत का वेदान्त दर्शन समष्टि के हित की बात करता है| यदि पूरा विश्व ही समष्टि के हित की सोचे तो यह सृष्टि ही स्वर्ग बन जाएगी पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि यह सृष्टि विपरीत गुणों से बनी है| सारा भौतिक जगत ही सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से निर्मित है| बुराई और भलाई दोनों ही विद्यमान रहेगी| हमें ही इस द्वंद्व से ऊपर उठना पडेगा|
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सभी निजात्मगण को नमन| सब का कल्याण हो|
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ॐ तत्सत ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||

मेरुदंड के चक्रों पर बीज मन्त्रों से मानसिक जप की विधि .....

मेरुदंड के चक्रों पर बीज मन्त्रों से मानसिक जप की विधि .....
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निम्न साधना-विधि गंभीर निष्ठावान योग मार्ग के साधकों के लिए है| अन्य इसका प्रयोग न करें| साधना काल में यम-नियमों का पालन अनिवार्य है, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी|
ऊनी कम्बल पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर शिवनेत्र होकर यानि दृष्टी भ्रूमध्य पर रखते हुए ध्यान आज्ञाचक्र पर रखें| मेरुदंड सदा उन्नत रहे, शरीर शिथिल और ठुड्डी भूमि के समानांतर रहे|
गुदा का तनिक संकुचन कर मूलाधार पर मानसिक जप करें -- "लं".
तनिक ऊपर उठाकर स्वाधिष्ठान पर -- "वं".
मणिपुर पर -- रं".
अनाहत पर -- "यं".
विशुद्धि पर -- "हं".
आज्ञा पर -- "ॐ".
सहस्त्रार पर कुछ अधिक जोर से -- "ॐ".
कुछ पल भर रुककर विपरीत क्रम से जाप करते हुए नीछे आइये| पल भर रुकिए और इस प्रक्रिया को सहज रूप से जितनी बार कर सकते हैं कीजिये|
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बीज मन्त्रों के जाप में कठिनाई हो तो इनके स्थान पर "ॐ" का जाप कर सकते हैं|
इस जाप के समय दृष्टी भ्रूमध्य पर ही रहे|
जाप के उपरांत शांत होकर बैठ जाइए और खूब देर तक ॐ की ध्वनि को सुनते रहें| खूब देर शांत होकर बैठें| इन बीज मन्त्रों के जाप से सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है|
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एक प्रयोग जो मैंने किया था और जिससे मुझे बहुत लाभ मिला वह यहाँ बता रहा हूँ| जब आपकी सांस भीतर जा रही हो उस समय मेरु दंड में सुषुम्ना नाडी में मूलाधार से ऊपर उठते हुए हर चक्र पर हनुमान जी का ध्यान करें| ऐसा भाव करें की श्री हनुमान जी की शक्ति आपकी सुषुम्ना नाडी में आरोहण कर रही है| जब सांस बाहर जा रही हो उस समय यह भाव करें कि सुषुम्ना के बाहर पीछे की ओर से श्री हनुमान जी की शक्ति अवरोहण कर रही है| सांस लेते समय पुनश्चः आरोहण, और सांस छोड़ते समय अवरोहण हो रहा है| साथ साथ उपरोक्त जाप भी चलता रहे| जाप को आज्ञा चक्र या सहस्त्रार पर ही पूर्ण करें|
हनुमान जी महावीर हैं, जब वे साधक के साथ हों तो कोई बाधा नहीं आ सकती|
पर आपका आचार-विचार शुद्ध हो अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी|
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सहस्त्रार और आज्ञा चक्र पर जो ज्योति (ज्योतिर्मय ब्रह्म) दिखाई देती है वही श्री गुरु के चरण हैं| उसमें समर्पण ही श्री गुरु-चरणों में समर्पण है|
आज्ञाचक्र ही योगियों का ह्रदय होता है, इस ह्रदय में निरंतर गुरु रूप में सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें| यह प्रयोग मैंने अजपा-जाप के साथ भी किया है और इस से बहुत लाभ मिला है| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह की कामना ना करें|
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साधना के मार्ग पर शत-प्रतिशत रहें| अपने ह्रदय में जो प्रचंड अग्नि जल रही है उसे दृढ़ निश्चय और सतत् प्रयास से निरंतर प्रज्ज्वलित रखिए| आधे-अधूरे मन से किया गया कोई प्रयास सफल नहीं होगा| साधना निश्चित रूप से सफल होगी, चाहे यह देह रहे या न रहे ...... इस दृढ़ निश्चय के साथ साधना करें, आधे अधूरे मन से नहीं| परमात्मा का स्मरण करते करते यदि मरना भी पड़े तो वह इस नारकीय सांसारिक जीवन जीने से तो अच्छा है|

ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

क्या भारत की उन्नति फिरंगियों की गुलामी से हुई है ? .....

क्या भारत की उन्नति फिरंगियों की गुलामी से हुई है ? .....
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भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अनेक प्रधानमंत्री विश्व बैंक के वेतन भोगी कर्मचारी रहे हैं| भारत के एक प्रसिद्ध प्रधानमंत्री स्वयं विश्व बैंक के वेतनभोगी कर्मचारी रहे थे | उनके सचिव और महत्वपूर्ण अधिकारी भी विश्व बैंक के कर्मचारी रह चुके थे| कई लोग अपनी सेवाएँ यहाँ (उपनिवेश भारत में) देकर बापस विश्व बैंक में चले गए|
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भारत के एक प्रसिद्ध प्रधान मंत्री को कैंब्रिज विश्वविद्यालय से PhD की डिग्री उनके इस शोध पर मिली कि भारत की प्रगति का कारण भारत पर अंग्रेजों का दो सौ वर्षों का शासन है| उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री होते हुए भी अंग्रेजों को भारत पर शासन करने के लिए इंग्लैंड में सार्वजनिक रूप से धन्यवाद दिया था| भारत के ये प्रधानमंत्री महोदय जो विदेशों में पढ़े-लिखे, अनेक विदेशी डिग्रियों से युक्त थे, अपनी स्मृति से कुछ भी नहीं बोल पाते थे| उनका भाषण पहले से तैयार होता जिसे जेब से निकाल कर पढ़ देते| हिंदी बोलना तो अपना अपमान समझते|
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उनकी इस शोध का विरोध जापान के नागासाकी विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर ने किया, जिन्होनें सिद्ध किया कि भारत और चीन का सन १८०० ई.में उत्पादन विश्व के सकल उत्पादन का ३८ और 31 प्रतिशत था, जो सन १९४७ ई.में 1 और 7 प्रतिशत रह गया|
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सन १९१७ ई.में एक रुपया ... तेरह डॉलर के बराबर था,
सन १९४७ ई.में एक रुपया ... एक डॉलर के बराबर हो गया,
सन १९६५ ई.में साढे चार रुपये का ... एक डॉलर हुआ,
सन १९७२ ई.में साढे सात रुपये का ... एक डॉलर हुआ,
सन २००४ ई.में तैंतीस रुपये का ... एक डॉलर हुआ,
और सन २०१४ ई.में भारत पर विश्व बैंक के प्रत्यक्ष शासन के बाद उनहत्तर रुपये का एक डॉलर हुआ|
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क्या भारत स्वतंत्र है? सभी राजनीतिक दलों का चुनावी खर्चा नेताओं और अधिकारियों के स्विट्ज़रलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका और सिंगापुर के बैंकों के गुप्त खातों में रखी काली कमाई से चलता है|

रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते......

रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते......
(शरीर रूपी रथ में जो सूक्ष्म आत्मा को देखता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता) ...
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रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते।
= शरीर रूपी रथ में जो सूक्ष्म आत्मा को देखता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता।

तन्त्र में-
पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले।
उत्थाय च पुनः पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते।। (तन्त्रराज तन्त्र)
= पिये और बार बार पिये जब तक जमीन पर न गिरे। उठ कर जो फिर से पीता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
यहां भूमि तत्त्व के मूलाधार में स्थित कुण्डलिनी के सहस्रार में उठ कर परमशिव के साथ विहार करने का वर्णन है, जिसका शंकराचार्य ने सौन्दर्य लहरी, श्लोक 9 में वर्णन किया है-
महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं,
स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुतमाकाशमुपरि,
मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि भित्त्वा कुलपथम्,
सहस्रारे पद्मे सह रहसि पत्या विहरसि।।
जो पराशक्ति (कुण्डलिनी) मूलाधार में पृथ्वी रूप में है, मणिपूर (संहार क्रम में, स्वाधिष्ठान के बदले) में क (जल) रूप में, स्वाधिष्ठान में अग्नि रूप में, हृदय (के अनाहत चक्र) में मरुत् रूप में, तथा उसके ऊपर (विशुद्धि चक्र में) आकाश रूप में, तथा भ्रूमध्य (के आज्ञा चक्र) में मन रूप से स्थित है, वह कुलपथ (बांस जैसे सुषुम्ना मार्ग) को भेदते हुये सहस्रार पद्म में पति (परमेश्वर) के साथ रह कर विहार करती है।
विहार के बाद कुण्डलिनी नीचे भूमि तत्त्व के मूलाधार में वापस आती है। बार बार उसे सहस्रार तक लाकर परमेश्वर से मिलन कराने पर पुनर्जन्म नहीं होता।

भगवान के साथ व्यापार ....

"Business" शब्द का सही अर्थ होता है .... वह कार्य जिसमें कोई स्वयं को व्यस्त रखता है| हिंदी में उसका अनुवाद "व्यापार" कुछ अटपटा सा लगता है|
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एक बार एक भारतीय साधू से किसी ने अमेरिका में पूछा .... Sir, What is your business ?
उस साधू का उत्तर था .... I have made it my business to find God.
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अमेरिका की पृष्ठभूमि में तो यह उत्तर सही था पर भारत में यह उत्तर गलत माना जाता|
अब जिज्ञासा यह उत्पन्न हो रही है कि क्या हम अपनी व्यक्तिगत उपासना यानि साधना को भी Business की श्रेणी में मान सकते हैं? क्या हमारी उपासना एक व्यापार है ?
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व्यवहारिक रूप से व्यापार तो कुछ लाभ पाने के लिए होता है| पर आध्यात्म में तो कुछ पाने के लिए हैं ही नहीं, यहाँ तो सब कुछ देना ही देना पड़ता है| यहाँ तो अपने अहंकार और राग-द्वेष को मिटाना यानि समर्पित करना पड़ता है|
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वास्तविक भक्ति तो अहैतुकी होती है| कुछ माँगना तो एक व्यापार है, प्रेम नहीं|
परम प्रेम ही भक्ति है, भक्ति में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है| जहाँ कोई माँग उत्पन्न हो गयी वहाँ तो व्यापार हो गया|
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हे अगम्य, अगोचर, अलक्ष्य, अपार, सर्वव्यापी प्रभु, हे परम शिव, हे नारायण, इस ह्रदय को तुमने अपना घर बना लिया है| जैसे तुम सर्वव्यापी हो, वैसे ही यह ह्रदय भी सर्वव्यापी हो गया है जिसमें समस्त सृष्टि समा गयी है| तुम अपरिभाष्य और अवर्णनीय हो|
तुम्हे भी नमन, और स्वयं को भी नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

क्या गरीबी और अशिक्षा मनुष्य को आतंकवादी बनाती हैं ? ..... क्या आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता ?

क्या गरीबी और अशिक्षा मनुष्य को आतंकवादी बनाती हैं ? .....
क्या आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता ?
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भारत के राजनेताओं ने हमें तोते की तरह यही रटाया है कि ....
(1) आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता|
(2) आतंकवाद की जड़ अशिक्षा और दरिद्रता है|
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लेकिन व्यवहारिक रूप से आँख खोलकर देखते हैं तो पाते हैं कि आतंकवादियों का मजहब भी होता है, और वे सभी धनवान घरों के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक होते हैं|
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सेक्युलरों, क्रूसेडरों और जेहादियों का लक्ष्य हैं हिन्दुओं का सर्वनाश करना|
हिन्दुओं का लक्ष्य है मुफ्त में बिजली-पानी और सस्ते में दाल व प्याज मिल जाए तो सता सेकुलरों को सौंप देना| मुफ्त में सब कुछ मिलने का आश्वासन यदि मिल जाए तो हम लोग भारत का शासन अंग्रेजों को भी सौंप देंगे|
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जेहादी यदि सत्ता में आ गए तो हिन्दुओं की वही दुर्गति होगी जो पकिस्तान व बंगलादेश में हुई है, और यजीदियों की इराक में हुई है|
गला रेत कर तडपा तडपा कर दूसरों को मारने का काम ये ही लोग करते हैं|
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भगवान हमारी रक्षा करें| ॐ ॐ ॐ ||

परमात्मा को अपने जीवन में अवतरित होने दो ......

परमात्मा को अपने जीवन में अवतरित होने दो ......
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अब तक तो परमात्मा हमारे जीवन में प्रवाहित हो रहे थे पर अब वे स्वयं अवतरित होना चाहते हैं |
एकमात्र बाधा है ..... हमारे अंतःकरण की अशुद्धता |
हमारे अंतःकरण में आसक्ति, भय और क्रोध रूपी तस्कर घुसे हुए हैं अतः वहाँ परमात्मा का प्रवेश नहीं हो पा रहा है | इन तस्करों से मुक्त होने के लिए उनसे सहायता मांगो | वे ही इनसे मुक्ति दिला सकते हैं |
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सब तरह के अवरोधों से मुक्त हमारा परम शांत और समर्पित साक्षी भाव हो |

भगवान सब गुरुओं के गुरु हैं | उनके प्रति जितना प्रेम और समर्पण होगा उसी अनुपात में मार्गदर्शन और सहायता मिलेगी | वे ही हमारी गति हैं, उनके सिवा हमारा अन्य कोई आधार नहीं है | निश्चित रूप से वे हम सब के जीवन में अवतरित होंगे |
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हम सही हैं जब तक हम स्वयं को शाश्वत सर्वव्यापक आत्मा मानते हैं | हम गलत हैं जब हम स्वयं को यह भौतिक देह मानते हैं | हम परमात्मा के साथ एक हैं और उनके अमृत पुत्र हैं |
परमात्मा को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | हम पापी नहीं हैं, स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है |
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सब तरह की मानसिक प्रेरणाओं से भी हमें ऊपर उठना पडेगा | भौतिक, प्राणिक और मानसिक अवस्थाओं में कहीं पर भी नहीं रुकना है | लक्ष्य हमारा परम शिवत्व है |
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एक भक्त था जो अपने गुरु की प्रतिमा के समक्ष बैठा उस पर पुष्प अर्पित कर रहा था | अचानक उसका ध्यान अंतर्मुखी हो गया और समाधिस्थ होकर उसने देखा कि समस्त ब्रह्मांड उसी के भीतर है | उसकी देह स्थिर थी पर उसकी चेतना अनंत के साथ एकाकार हो गई |
बाद में उसे लगा कि मैं पुष्प सही स्थान पर अर्पित नहीं कर रहा था क्योंकि समस्त ब्रह्मांड तो मेरी चेतना है, मैं यह देह नहीं अपितु पूर्ण समष्टि हूँ | मैं, मेरे गुरुदेव और परमात्मा सभी एक हैं | उसने बचे हुए पुष्प अपनी नश्वर देह के सिर पर ही चढ़ा दिए, और पुनः समाधिस्थ हो गया |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

भारत कहीं सोमालिया, सूडान, सीरिया, लेबनान, इराक, लीबिया और नाइजीरिया जैसा देश न बन जाए .....

भारत कहीं सोमालिया, सूडान, सीरिया, लेबनान, इराक, लीबिया और
नाइजीरिया जैसा देश न बन जाए .....
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इन देशों का बुरा हाल है| बांग्लादेश और पाकिस्तान भी उसी दिशा में बढ़ रहे हैं| मजहब के नाम पर चारों ओर मारकाट और आतंक फैला हुआ है|
कोई चाहे जितना भी कहे कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता पर ये सारा खून-खराबा मजहब के नाम पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए ही हो रहा है|
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बाँग्लादेश की राजधानी ढाका के डिप्लोमेटिक जोन के एक रेस्त्रां पर शुक्रवार रात इस्लामिक स्टेट (IS) के हमलों में मारी गई 19 साल की एक भारतीय लड़की कु.तारिषि जैन की आखिरी बातचीत सामने आई है जो इफ्तार के बाद अपने दोस्तों के साथ इफ्तार की दावत मनाने कैफे गई थी| उसने रात को करीब डेढ़ बजे घरवालों से बात की थी| उसने बताया था कि गोलीबारी हो रही है और चारों ओर चीख पुकार मची हुई है|
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''अल्लाह-हू-अकबर'' का नारा लगाते हुए रेस्त्रां में घुसे आतंकियों ने करीब 40 लोगों को बंधक बनाया और सबको क़ुरान की आयतें पढने को कहा| जो आयतें सुना पाए, ऐसे 18 लोगों को छोड़ दिया| बाद में 20 लोगों को धारदार हथियारों से मार डाला| मारे गए अधिकाँश लोग इटली और जापान के थे| हमले के 10 घंटे बाद 100 कमांडोज ने इस्लामिक स्टेट के 9 में से 6 आतंकियों को मार गिराया, एक को मौके से ही पकड़ लिया गया और दो की तलाश जारी है|
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बांग्लादेश देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने कहा है.... ''वे कैसे मुस्लिम हैं जो रमजान के पाक महीने में इंसानों की जान ले रहे हैं?''
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उस रात तारिषि ने फिरोजाबाद में अपने अंकल राकेश मोहन जैन से बात की थी| उसने कहा था, हेलो ! अंकल, मैं यहां दोस्तों के साथ रेस्त्रां में आई थी| लेकिन आतंकवादियों ने हमला कर दिया| हर तरफ चीख पुकार मची है| गोलियाँ चल रही हैं..... धमाके हो रहे हैं| जान बचाने के लिए मैं यहां टॉयलेट में आकर छुप गई हूं। समझ में नहीं आ रहा क्या हो गया..... क्या करूं..... |
इसके बाद परिवार ने कई बार फोन किया, लेकिन रिसीव नहीं हुआ। सुबह साढ़े 6 बजे फोन रिसीव हुआ, पर उधर से कोई जवाब नहीं आया|
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बांग्लादेश की सेना मृतकों के बारे में कोई जानकारी देती, इससे पहले ही इस्लामिक स्टेट की समाचार एजेंसी 'अमाक' ने रेस्त्रां के अंदर के चित्र जारी कर दिए और 20 लोगों की हत्या का दावा कर दिया|
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जिन लोगों को छोड़ दिया गया उन लोगों ने बताया कि शुक्रवार रात 8.45 बजे कई हथियारबंद लोग “अल्लाह-हू-अकबर" बोलते हुए तीन गुटों में रेस्त्रां में घुसे| चीफ शेफ सहित सभी को बंधक बना लिया गया| रेस्टोरेंट का मालिक सुमन रजा वहां से भागने में कामयाब रहा| कुछ आतंकी बांग्ला भाषा नहीं बोल रहे थे|
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आतंकी बांग्लादेश को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं| हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट (ISIS) के साथ ही अल-कायदा ने भी ली है| इसमें पकिस्तान का भी हाथ हो सकता है|
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अब इस्लामी स्टेट का आतंक भारत के द्वार पर आ पहुँचा है| भारतवासियों को अब सजग हो जाना चाहिए| सभी को, विशेष रूप से महिलाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेना चाहिए| किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि की सूचना प्रशासन और पुलिस को देते रहना चाहिए| धन्यवाद ! शुभ कामनाएँ |
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चेतावनी : ..... इस लेख पर कोई किसी भी तरह की अशोभनीय टिप्पणी न करे| ऐसा करने वाले को block कर दिया जाएगा|

पलटू सोइ सुहागनी, हीरा झलके माथ .....

पलटू सोइ सुहागनी, हीरा झलके माथ .....
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संत पलटूदास जी कह रहे हैं कि सुहागन वो ही है जिसके माथे पर हीरा झलक रहा है| अब यह प्रश्न उठता है कि सुहागन कौन है और माथे का हीरा क्या है ?
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वह हीरा है ब्रह्मज्योति का जो हमारे माथे पर कूटस्थ में देदीप्यमान है|
सुहागन है वह जीवात्मा जो परमात्मा के प्रति पूर्णतः समर्पित है|
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"मन मिहीन कर लीजिए, जब पिउ लागै हाथ .....
जब पिउ लागै हाथ, नीच ह्वै सब से रहना |
पच्छापच्छी त्याग उंच बानी नहिं कहना ||
मान-बड़ाई खोय खाक में जीते मिलना |
गारी कोउ दै जाय छिमा करि चुपके रहना ||
सबकी करै तारीफ, आपको छोटा जान |
पहिले हाथ उठाय सीस पर सबकी आनै ||
पलटू सोइ सुहागनी, हीरा झलकै माथ |
मन मिहीन कर लीजिए, जब पिउ लागै हाथ ||"
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परमात्मा को पाना है, तो उसी मात्रा में परमात्मा मिलेगा जिस अनुपात में हमारा मन सूक्ष्म होगा| सूक्ष्म यानी अहंकार के मिट जाने की दिशा में यात्रा|
जिस दिन मन पूरा शून्य हो जाता है, उसी से दिन हम परमात्मा हैं| फिर प्रेमी में और प्यारे में फर्क नहीं रह जाता, भक्त और भगवान में फर्क नहीं रह जाता|
फर्क एक शांत झीने से धुएँ के पर्दे का है, मगर हम अपने अंतर में कोलाहल रूपी बड़ा मोटा लोहे का पर्दा डाले हुए हैं, और उसमें बंदी बनकर चिल्लाते हैं कि भगवान तुम कहाँ हो| उस कोलाहल को शांत करना पड़ेगा|
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जब गंगाजल मिल सकता हो तो तुम क्यों किसी गंदी नाली का जल पीते हो?
नृत्य ही देखना हो अपने अंतर में तो मीरां का नृत्य देखो, भगवन नटराज का नृत्य देखो|
गीत ही सुनना हो तो किसी भक्त कवि का गीत सुनो|
जब तक मनुष्य अपने अहंकार अर्थात अपनी 'मैं' को नहीं त्यागता तब तक उसे परमात्मा कि प्राप्ति नहीं हो सकती|
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हमें सुहागन भी बनना है और माथे पर हीरा भी धारण करना है| हमारा सुहाग परमात्मा है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा उपहार .....

सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा उपहार .....
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सबसे बड़ी सेवा जो हम अपने स्वयं, परिवार, समाज, देश और विश्व की कर सकते हैं, और सबसे बड़ा उपहार जो हम किसी को दे सकते हैं, वह है ..... "आत्मसाक्षात्कार" |
"निरंतर प्रभु की चेतना में स्थिर रहें, यह बोध रखें कि हमारी आभा और स्पंदन पूरी सृष्टि और सभी प्राणियों की सामूहिक चेतना में व्याप्त हैं, और सब का कल्याण कर रहे हैं|"
"प्रभु की सर्वव्यापकता हमारी सर्वव्यापकता है, सभी प्राणियों और सृष्टि के साथ हम एक हैं| हमारा सम्पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम पूरी समष्टि का कल्याण कर रहा है| हम और प्रभु एक हैं|"
तेज पुंज को विलसना, मिल खेलैं इक ठाम ।
भर-भर पीवै राम रस, सेवा इसका नाम ॥
आपा गर्व गुमान तज, मद मत्सर अहंकार ।
गहै गरीबी बन्दगी, सेवा सिरजनहार ॥

शरणागति .....

शरणागति .....
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भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समस्त ज्ञान देकर अंत में परम गोपनीय से गोपनीय, और गूढ़तम से गूढ़ रहस्य बताते हैं कि सम्पूर्ण धर्मों के आश्रय का त्याग करके एक मेरी शरण में आ जा| मैं तुम्हें सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत कर|
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः " ||गीता 18/66||
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गीता का सार अठारहवाँ अध्याय है और अठारहवें अध्याय का भी सार उसका 66 वाँ श्लोक है| इस श्लोक में भगवान् ने सम्पूर्ण धर्मों का त्याग करके अपनी शरण में आने की आज्ञा दी है, जिसे अर्जुन ने ‘करिष्ये वचनं तव’ कहकर स्वीकार किया और अपने क्षात्र-धर्म के अनुसार युद्ध भी किया|
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यहाँ जिज्ञासा होती है कि सम्पूर्ण धर्मों का त्याग करने की जो बात भगवान् ने कही है, उसका तात्पर्य क्या है ?
दूसरी बात, जब अर्जुन ‘शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्’ (गीता 2/7) कहकर भगवान् की शरण हुए तो लगता है कि उस शरणागति में कुछ कमी रही होगी तभी उस कमी की पूर्ति अठारहवें अध्याय के 66वें श्लोक में हुई है|
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अब प्रश्न यह उठता है कि शरणागति क्या है ?
कैसे शरणागत हों ?
कैसे समर्पित हों ?
क्या सिर्फ हाथ जोड़कर सर झुकाने ही शरणागति प्राप्त हो सकती है ? मन तो पुनश्चः कुछ क्षणों में संसार की वासनाओं और अहंकार में डूब जाएगा| ऐसा क्या उपाय है जिससे स्थायी शरणागति प्राप्त हो?
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‘सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ..... भगवान् कहते हैं कि सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय, धर्म के निर्णय का विचार भी छोड़कर अर्थात् क्या करना है और क्या नहीं करना है, इसको छोड़कर केवल एक मेरी ही शरण में आ जा|
स्वयं भगवान् के शरणागत हो जाना ..... यह सम्पूर्ण साधनों का सार है| इसमें शरणागत भक्त को अपने लिये कुछ भी करना शेष नहीं रहता; जैसे ..... पतिव्रता स्त्री का अपना कोई काम नहीं रहता| वह अपने शरीर की सार-सँभाल भी पति के लिये ही करती है| वह घर, कुटुम्ब, वस्तु, पुत्र-पुत्री और अपने कहलाने वाले शरीर को भी अपना नहीं प्रत्युत पतिदेव का मानती है, पति के गोत्र में ही अपना गोत्र और जाति मिला देती है और पति के ही घर पर रहती है, उसी प्रकार शरणागत भक्त भी शरीर को लेकर माने जाने वाले गोत्र, जाति, नाम आदि को भगवान् के चरणों में समर्पित करके निश्चिन्त, निर्भय, निःशोक और निःशंक हो जाता है|
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हमारी जाति वही है जो परमात्मा की है| यह भी कह सकते हैं कि हमारी जाति अच्युत है| हमारा गौत्र और धर्म भी वही है जो परमात्मा का है| अपना कहने को हमारा कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी है वह परमात्मा का है|
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यह तभी संभव है जब हमारे ह्रदय में परमात्मा के प्रति अहैतुकी परम प्रेम यानि पूर्ण भक्ति हो| रामचरितमानस में कहा गया है ....
"बार बार बर माँगऊ हरषि देइ श्रीरंग|
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग||"
"अनपायनी" शब्द का अर्थ है ..... "शरणागति" |
महान तपस्वी, योगी, देवों के देव भगवान शिव भी झोली फैलाकर मांग रहे हैं, हे मेरे श्रीरंग, अर्थात श्री के साथ रमण करने वाले नारायण, मुझे भिक्षा दीजिए|
भगवान बोले, क्या दूं?
तपस्वी बने शिव बोले, आपके चरणों का सदा अनुपायन करता रहूँ| अर्थात आपके चरणों की शरणागति कभी न छूटे|
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ऐसी ही शरणागति की महिमा है देवता भी इससे अछूते नहीं हैं|
शरणागति का प्रसंग वेदों में, स्मृतियों में, पुराणों में, और मीमांसा में भी आयाहै|
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अर्जुन तब तक दुखी रहे, जब तक भगवान का प्रतिपादन तर्क- वितर्क से करते रहे| जब शरणागति की महिमा समझ ली तो बिलकुल शान्त हो गए, जैसे दूध के ऊपर पानी के छींटे देने से झाग बैठ जाती है|
तमाम सन्तों को शांति तभी मिली, जब वे शरणागत हुए|
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जहाँ तक मुझे मेरी सीमित अल्प बुद्धि से समझ में आया है,
शरणागति है ..... पूर्ण भक्ति के साथ गहन ध्यान साधना द्वारा अपने अहंकार यानि अपनी पृथकता के बोध को परमात्मा में समर्पित कर देना|
परमात्मा का वाचक ओंकार यानि ॐ है| ओंकार पर गुरु प्रदत्त विधि से ध्यान ..... ब्रह्मरन्ध्र में "ॐ" ध्वनि के सागर में स्वयं को विलीन कर देना है|
सारे उपनिषद् ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं| भगवान श्री कृष्ण ने गीता में --- प्रयाणकाल में भ्रूमध्य में ओंकार का स्मरण करते हुए देह त्याग करने की महिमा बताई है| मध्यकाल के संतों का सारा साहित्य इस साधना की महिमा से भरा पड़ा है|
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आप सभी निजात्मगण को शुभ कामनाएँ और और प्रेम ! आप सब में परमात्मा को प्रणाम !
ॐ गुरू ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! अयमात्मा ब्रह्म ! ॐ ॐ ॐ ||

साकार या निराकार ....

साकार या निराकार .....
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सब मित्रों का सादर मंगलमय अभिनंदन !
आजकल भगवान की साधना कम, और भगवान के नाम पर व्यापार अधिक हो रहा है| निराकार ब्रह्म की परिकल्पना सब के लिए सम्भव नहीं है अतः साकार साधना सार्थक है| हम भगवान के जिस भी रूप की उपासना करते हैं, उपास्य के गुण हम में निश्चित रूप से आते हैं|
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योगसुत्रों में भी कहा है कि किसी वीतराग पुरुष का चिंतन करने से हमारा चित्त भी वैसा ही हो जाता है| हम भगवान राम का ध्यान करेंगे तो भगवान राम के कुछ गुण हम में निश्चित रूप से आयेंगे| भगवान श्री कृष्ण, भगवन शिव, हनुमान जी, जगन्माता आदि जिस भी भगवान के या किसी महापुरुष के रूप को हम ध्यायेंगे हम भी वैसे ही बन जायेंगे| अतः हमारी क्या अभीप्सा है और स्वाभाविक रूप से हम क्या चाहते हैं, वैसी ही साधना करें|
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भगवान को अपना अहैतुकी परम प्रेम दें, उनके साथ व्यापार ना करें|
भगवान के साथ हम व्यापार कर रहे हैं इसीलिए सारे विवाद उत्पन्न हो रहे हैं|
कई हिन्दू आश्रमों में भगवान् श्री कृष्ण के साथ साथ ईसा मसीह की भी पूजा और आरती होती है| कुछ काली मंदिरों में माँ काली की प्रतिमा के साथ मदर टेरेसा के चित्र की भी पूजा होती है| विदेशी संस्थाएं भी धीरे धीरे हिन्दुओं के आस्था केन्द्रों पर अपना प्रभाव और अधिकार जमा रही हैं| यह एक व्यापार है या एक षड्यन्त्र ... जिसका निर्णय करने में मेरी सीमित बुद्धि असमर्थ है|
भगवान की साधना सिर्फ भगवान के प्रेम के लिए ही करें|
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साकार और निराकार में कोई भेद नहीं है| वास्तव में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| जो स्वयं को निराकार का साधक कहते हैं वे भी या तो भ्रूमध्य में प्रकाश का ध्यान करते हैं या किसी मंत्र का जप या ध्यान करते हैं| वह प्रकाश भी साकार है और मन्त्र भी साकार है| स्वयं को निराकार के साधक अपने गुरु के मूर्त रूप का ध्यान करते हैं, वह भी साकार है| किसी भाव का मन में आना ही उसे साकार बना देता है| अतः इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| धन्यवाद |

ॐ ॐ ॐ ||