माता पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करना पुत्र का परम कर्त्तव्य है......
.
यदि किसी कारण से पिता का कोई कर्म जैसे दान, तपस्या, अध्ययन, देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण, समाजऋण और राष्ट्रऋण बाकी रह जाए तो एक पुत्र का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने पिता और पितृगण के अधूरे कार्य को पूरा करके उन्हें ऋणमुक्त करे| तभी एक सन्तान को पुत्र कहलाने की योग्यता मिलती है|
माता-पिता की कमियों और अपूर्णताओं को पूरा कर के ही एक पुत्र ..... पुत्र कहलाने का अधिकारी बनता है|
.
माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं| पिता ही शिव हैं| और माता पिता दोनों मिलकर शिव और शिवानी यानि अर्धनारीश्वर के रूप हैं|
.
किसी भी परिस्थिति में उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में आप उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार आपको नहीं है| आप उनका भूल से भी अपमान नहीं करोगे| उनका पूर्ण सम्मान करना आपका परम धर्म है|
.
यदि किसी कारण से पिता का कोई कर्म जैसे दान, तपस्या, अध्ययन, देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण, समाजऋण और राष्ट्रऋण बाकी रह जाए तो एक पुत्र का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने पिता और पितृगण के अधूरे कार्य को पूरा करके उन्हें ऋणमुक्त करे| तभी एक सन्तान को पुत्र कहलाने की योग्यता मिलती है|
माता-पिता की कमियों और अपूर्णताओं को पूरा कर के ही एक पुत्र ..... पुत्र कहलाने का अधिकारी बनता है|
.
माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं| पिता ही शिव हैं| और माता पिता दोनों मिलकर शिव और शिवानी यानि अर्धनारीश्वर के रूप हैं|
.
किसी भी परिस्थिति में उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में आप उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार आपको नहीं है| आप उनका भूल से भी अपमान नहीं करोगे| उनका पूर्ण सम्मान करना आपका परम धर्म है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
No comments:
Post a Comment