परमात्मा से कम हमें कुछ भी नहीं चाहिए >>>>>
---------------------------------------------
अंतर्रात्मा की घोर व्याकुलता और तड़फ ...... वास्तव में परमात्मा के लिए ही होती है | हमारा अहंकार ही हमें परमात्मा से दूर ले जाता है | हमारी अंतर्रात्मा जो हमारा वास्तविक अस्तित्व है को आनंद सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के ध्यान में ही आता है | हमारी खिन्नता का कारण अहंकारवश अन्य विषयों की ओर चले जाना है | वास्तविक सुख, शांति, सुरक्षा और आनंद सिर्फ और सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं |
.
जितनी दीर्घ अवधी तक गहराई के साथ हम ध्यान करेंगे, उसी अनुपात में उतनी ही आध्यात्मिक प्रगति होगी | मात्र पुस्तकों के अध्ययन से संतुष्टि नहीं मिल सकती | पुस्तकों को पढने से प्रेरणा मिलती है, यही उनका एकमात्र लाभ है |
.
जिसे उपलब्ध होने के लिए ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जल रही है, चैतन्य में जिसके अभाव में ही यह सारी तड़प और वेदना है, वह परमात्मा ही है | जानने और समझने योग्य भी एक ही विषय है, जिसे जानने के पश्चात सब कुछ जाना जा सकता है, जिसे जानने पर हम सर्वविद् हो सकते हैं, जिसे पाने पर परम शान्ति, परम संतोष व संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, वह है ... परमात्मा |
.
जिससे इस सृष्टि का उद्भव, स्थिति और संहार यानि लय होता है .... वह परमात्मा ही है | वह परमात्मा ही है जो सभी रूपों में व्यक्त हो रहा है | जो कुछ भी दिखाई दे रहा है या जो कुछ भी है, वह परमात्मा ही है | परमात्मा से भिन्न कुछ भी नहीं है | इसकी अनुभूति गहन ध्यान में ही होती है, बुद्धि से नहीं | परमात्मा अनुभव गम्य है, बुद्धि गम्य नहीं |
.
सारी पूर्णता, समस्त अनंतता और सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा ही है | उस परमात्मा को हम चैतन्य रूप में प्राप्त हों, उसके साथ एक हों | उस परमात्मा से कम हमें कुछ भी नहीं चाहिए |
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३१ अगस्त २०१६
---------------------------------------------
अंतर्रात्मा की घोर व्याकुलता और तड़फ ...... वास्तव में परमात्मा के लिए ही होती है | हमारा अहंकार ही हमें परमात्मा से दूर ले जाता है | हमारी अंतर्रात्मा जो हमारा वास्तविक अस्तित्व है को आनंद सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के ध्यान में ही आता है | हमारी खिन्नता का कारण अहंकारवश अन्य विषयों की ओर चले जाना है | वास्तविक सुख, शांति, सुरक्षा और आनंद सिर्फ और सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं |
.
जितनी दीर्घ अवधी तक गहराई के साथ हम ध्यान करेंगे, उसी अनुपात में उतनी ही आध्यात्मिक प्रगति होगी | मात्र पुस्तकों के अध्ययन से संतुष्टि नहीं मिल सकती | पुस्तकों को पढने से प्रेरणा मिलती है, यही उनका एकमात्र लाभ है |
.
जिसे उपलब्ध होने के लिए ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जल रही है, चैतन्य में जिसके अभाव में ही यह सारी तड़प और वेदना है, वह परमात्मा ही है | जानने और समझने योग्य भी एक ही विषय है, जिसे जानने के पश्चात सब कुछ जाना जा सकता है, जिसे जानने पर हम सर्वविद् हो सकते हैं, जिसे पाने पर परम शान्ति, परम संतोष व संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, वह है ... परमात्मा |
.
जिससे इस सृष्टि का उद्भव, स्थिति और संहार यानि लय होता है .... वह परमात्मा ही है | वह परमात्मा ही है जो सभी रूपों में व्यक्त हो रहा है | जो कुछ भी दिखाई दे रहा है या जो कुछ भी है, वह परमात्मा ही है | परमात्मा से भिन्न कुछ भी नहीं है | इसकी अनुभूति गहन ध्यान में ही होती है, बुद्धि से नहीं | परमात्मा अनुभव गम्य है, बुद्धि गम्य नहीं |
.
सारी पूर्णता, समस्त अनंतता और सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा ही है | उस परमात्मा को हम चैतन्य रूप में प्राप्त हों, उसके साथ एक हों | उस परमात्मा से कम हमें कुछ भी नहीं चाहिए |
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३१ अगस्त २०१६
No comments:
Post a Comment