Sunday, 9 September 2018

प्रेम और उपासना .....

प्रेम और उपासना .....
भगवान से प्रेम और उनकी उपासना दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| भगवान को अपने पूर्ण प्रेम के साथ निरंतर अपने समीप अपनी चेतना में रखें, कभी उन को भूलें नहीं| यही उपासना है जिसका अर्थ है समीप बैठना|
योगमार्ग के साधक भगवान का ध्यान कूटस्थ मे यानि आज्ञाचक्र व उससे ऊपर ज्योति व नाद के रूप में करते हैं, भक्ति मार्ग के साधक हृदय में साकार रूप में| बस यही अंतर है|
परमात्मा का विस्मरण ही पाप है जो वासना रूपी अज्ञानता के कारण होता है| वासना के स्थान पर उपासना को प्रतिष्ठित करें| बिना प्रेम के एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते| प्रेम की पराकाष्ठा ही ज्ञान को जन्म देती है|
व्यर्थ की आलोचना और चर्चा से कोई लाभ नहीं है| कभी कोई बात समझ में नहीं आये तब परमात्मा के अपने प्रियतम नाम का जप करें और उन के मोहक रूप का ध्यान करें| भगवान स्वयं आगे का मार्ग दिखाएँगे और रक्षा भी करेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ अगस्त २०१८

1 comment:

  1. जब कोई प्रभुप्रेम में डूब जाता है तब उसे सुधरने की सलाह देना उसकी ह्त्या करने के बराबर है| वह तो प्रेमरूपी विष को पी चुका है जिसका कोई उपचार नहीं है| उसे बंधनों में बांधने का प्रयास निरर्थक है| उसे तो अपने प्रेमास्पद के अतिरिक्त अन्य कुछ भी दिखाई नहीं देता| उसे अपने स्वार्थ के लिए बापस सांसारिकता में बाँधने का प्रयास उसका गला घोटना है|

    ReplyDelete