Sunday 9 September 2018

मेरी आयु और मेरा जन्मदिवस >>>>>

मेरी आयु और मेरा जन्मदिवस >>>>>
मैं एक शाश्वत आत्मा हूँ जिसकी आयु अनंतता है| अहं से बोध्य आत्मा कालचक्र और आयुगणना से परे नित्य है| पता नहीं मैनें अब तक कितनी देहों में जन्म लिया है और कितनी देहों में मृत्यु को प्राप्त हुआ हूँ| परमात्मा ने कृपा कर के मुझे पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ नहीं दीं और इस जन्म में भी भूलने की आदत डाल दी, अन्यथा निरंतर एक पीड़ा बनी रहती|
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वर्तमान में मैं जिस देह रुपी वाहन पर यह लोकयात्रा कर रहा हूँ, वह वाहन भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद अमावस्या को, और ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार ०३ सितम्बर को अपने वर्तमान लौकिक जीवन के ७० वर्ष पूरे कर लेगा|
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इस देह का जन्म ०३ सितम्बर १९४८ को राजस्थान के झूँझणु नाम के एक कस्बे के मुद्गल गौत्रीय गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था| (वर्तमान में इस कस्बे का नाम अपभ्रंस होकर झुंझुनूं हो गया है| इस कसबे को शताब्दियों पूर्व एक वीर योद्धा झुझार सिंह जाट ने बसाया था, क्योंकि यह स्थान अरावली की पहाड़ियों से लगा हुआ और मरुभूमि के मध्य में होने से युद्ध और किलेबंदी के लिए बहुत उपयुक्त था)| हमारे पूर्वज दो सौ वर्षों से भी बहुत पहिले हरियाणा के बावल नाम के कस्बे से यहाँ आकर बसे थे|
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विगत जीवनक्रम एक स्वप्न सा लगता है और अनंत कालखंड में यह समस्त जीवन एक स्वप्न मात्र बनकर ही रह जाएगा| परमात्मा की सर्वव्यापकता ही हमारा अस्तित्व है और उसका दिव्य प्रेम ही हमारा आनन्द| इस आनंद के साथ हमारा अस्तित्व सदा बना रहे, और हम तीव्र गति से "निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन" की ओर प्रगतिशील हों|
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आप सब दिव्यात्माओं को प्रणाम करता हूँ| आप सब मुझे आशीर्वाद दें कि मैं अपने मार्ग पर सतत चलता रहूँ और कभी भटकूँ नहीं| जय श्रीराम !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ सितम्बर २०१८

2 comments:

  1. इस देह की आयु ७० वर्ष की हो गयी है पर आज तक किसी भी जन्मदिवस पर मैनें ..... न तो केक काटी है, न मोमबत्ती बुझाई है, न हेप्पी बर्थ डे का गाना गाया है, न कभी कोई पार्टी की है, और न ही मिठाई बाँटी है| पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव न के बराबर था|

    हमारे परिवार ने मेरा जन्मदिवस सदा भारतीय तिथि के अनुसार भाद्रपद अमावस्या के दिन ही मनाया है| उस दिन एक शिवालय में जाकर शिव जी के दर्शन करते और परिवार के बड़े-बूढ़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते| बाद में एक हनुमान जी के मंदिर में जाकर ग्यारह या इक्कीस रुपयों का प्रसाद भी चढ़ाने लगे| बस यही हमारा हैप्पी बर्थ डे होता था| इस से अधिक कुछ नहीं हुआ और कुछ होगा भी नहीं|

    भाद्रपद अमावस्या को हमारे यहाँ के विश्वप्रसिद्ध राणीसती मंदिर का वार्षिकोत्सव होता है| उस दिन लाखों की भीड़ उमड़ती है| बड़ी चहल-पहल रहती है| इस दिन राणीसती मंदिर में जाकर दर्शन अवश्य करते हैं|

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  2. रामचरितमानस के उत्तरकांड में भगवान श्रीराम ने इस देह को भव सागर से तारने वाला जलयान, सदगुरु को कर्णधार यानि खेने वाला, और अनुकूल वायु को स्वयं का अनुग्रह बताया है| यह भी कहा है कि जो मनुष्य ऐसे साधन को पा कर भी भवसागर से न तरे वह कृतघ्न, मंदबुद्धि और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है|

    "नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो | सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ||
    करनधार सदगुरु दृढ़ नावा | दुर्लभ साज सुलभ करि पावा || ४३.४ ||
    (यह मनुष्य का शरीर भवसागर [से तारने] के लिये (जहाज) है| मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है| सदगुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार (खेनेवाले) हैं| इस प्रकार दुर्लभ (कठिनतासे मिलनेवाले) साधन सुलभ होकर (भगवत्कृपासे सहज ही) उसे प्राप्त हो गये हैं|)

    जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ |
    सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ||४४||
    (जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतध्न और मन्द-बुद्धि है और आत्महत्या करनेवाले की गति को प्राप्त होता है|)

    अतः भवसागर को पार करना और इस साधन का सदुपयोग करना भगवान श्रीराम का आदेश है|

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