Sunday 28 August 2016

मुझमें कभी कुटिलता का कण मात्र भी न हो .....

मुझमें कभी कुटिलता का कण मात्र भी न हो .....
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हे प्रभो, हे गुरुदेव, आपने सब कुछ दिया है, मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए|
इतने अधिक आशीर्वाद, इतना अधिक प्रेम ..... सब कुछ आपने इतना अधिक दिया है कि अब माँगने के लिए कुछ बचा भी नहीं है| आप मेरी दृष्टी में, और मैं सदा आपकी दृष्टी में निरंतर हूँ| मैं अतिधन्य हूँ|
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मेरे जीवन में कभी कोई अहंकार और कोई कुटिलता का कणमात्र भी न आये|
और बस आप तो सदा हैं ही, अतः कुछ भी और नहीं चाहिए| आपकी माया अत्यधिक विक्षेप उत्पन्न कर रही है अतः हे प्रभु मेरी लाज रखो|.
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"तुम मेरी राखो लाज हरि

तुम जानत सब अन्तर्यामी
करनी कछु ना करी
तुम मेरी राखो लाज हरि
अवगुन मोसे बिसरत नाहिं
पलछिन घरी घरी
सब प्रपंच की पोट बाँधि कै
अपने सीस धरी
तुम मेरी राखो लाज हरि
दारा सुत धन मोह लिये हौं
सुध-बुध सब बिसरी
सूर पतित को बेगि उबारो
अब मोरि नाव भरी
तुम मेरी राखो लाज हरि

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