Sunday 28 August 2016

विवाह की संस्था का सम्मान हो .............

विवाह की संस्था का सम्मान हो .............
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विवाह की संस्था एक पवित्र बंधन है जिसका पूर्ण सम्मान होना चाहिए| ऐसा सिर्फ एक धर्मनिष्ठ और सुसंस्कृत परिवार में ही संभव है| पर समाज में आ रही उन्मुक्तता से इस संस्था के अस्तित्व को ही खतरा होने लगा है| पहिले यह विकृति सिर्फ कुछ पुरुषों में ही थी पर आधुनिक शिक्षा, पश्चिमी प्रभाव, व कुछ वामपंथी प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष यानि सेकुलर लोगों के कारण देश की मातृशक्ति के एक बड़े भाग में भी विकृति आ गयी है| पहिले यह विकृति सिर्फ दिल्ली, मुंबई, जैसे महानगरों में ही थी पर अब तो सारे भारत में फैल गयी है|
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अधिकांशतः अब तक तो नारी को पूज्या ही माना जाता था, भोग्या नहीं| पर अब जैसी विकृति आ रही है उससे तो अगले एक दशक में ही विवाह की संस्था लगभग समाप्त हो जायेगी| नारी पूज्या के स्थान पर स्वयं भोग्या बनना चाहती है|
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मिथ्या दोषारोपण, कलह और असहाय बड़े-बूढ़ों पर अत्याचार अब अनेक आधुनिक प्रगतिशील महिलाऐं अपनी शान समझती हैं| महिला अत्याचार और दहेज़ के झूठे आरोप, घर में नित्य कलह, और पति को प्रताड़ित कर अलग रह कर भरण-पोषण के बढ़ा-चढ़ा कर किये गए दावे, अब समाज को खोखला कर रहे हैं| सारे कानून और प्रशासन भी इन महिलाओं का ही सहयोग करते है|
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लिव इन रिलेशनशिप, अपने लाभ के लिए विवाह करना, दहेज़ और महिला-अत्याचार के फर्जी मामले बनाकर मोटी रकम बसूलना आजकल सामान्य हो गया है|
छेड़खानी, बलात्कार आदि के आरोप किसी पर भी लगा देना अब शान की बात हो गयी है|
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आने वाला समय पुरुषों पर भारी पडेगा| इससे बचने का एक ही उपाय है कि विवाह की संस्था का पूर्ण सम्मान हो|
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युवकों को चाहिए कि वे विवाह से पूर्व किसी भी लड़की से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखें| सम्बन्ध की बात तो दूर है, उनकी और देखे तक भी नहीं| बहुत ही आवश्यक हो और टाला नहीं जा सके तभी उनसे कोई बात करे वह भी कम से कम शब्दों में| विवाह के बाद तो परनारी को छूना तो दूर, स्वपन में भी उसका चिंतन ना करें| विवाह भी बहत अधिक सोच-समझ कर अपने समकक्ष, अच्छे स्वभाव वाली संस्कारित लड़की से करें| तभी विवाह की संस्था बच सकती है|
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एक सुखी परिवार ही आध्यात्मिक हो सकता है|
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ॐ ॐ ॐ ||

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