Monday, 24 November 2025

भारत सदा विजयी रहेगा .....

 भारत सदा विजयी रहेगा .....

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मनुष्य जीवन में पूर्णता का सतत प्रयास, अपनी श्रेष्ठतम सम्भावनाओं की अभिव्यक्ति, परम तत्व की खोज, दिव्य अहैतुकी परम प्रेम, भक्ति, करुणा और परमात्मा को समर्पण ... यह भारत की सनातन संस्कृति और धर्म है| भारत सदा विजयी रहेगा|
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पुरातन काल से ही अनेक बार राक्षसी/आसुरी/पैशाचिक आक्रांताओं ने भारत की दैवीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया है, पर ईश्वर के अवतारों व अनेक मनीषियों ने इस पुण्य भूमि में जन्म लेकर धर्म व संस्कृति के पुनरोद्धार का पुनीत कार्य भी सदा किया है| भारत की प्राचीन शिक्षा-पद्धति, व कृषि-व्यवस्था को नष्ट कर, हमारे धर्म-ग्रन्थों को विकृत कर, झूठा इतिहास पढ़ाकर, देवालयों को ध्वस्त कर, बलात् धर्मांतरण, नर-संहार, दुराचार व राक्षसी आतंक के द्वारा असत्य और अंधकार की शक्तियों ने भारत को नष्ट करने का प्रयास किया, जो अभी भी चल रहा है| पर उन्हें सफलता नहीं मिलेगी| जैसे-जैसे मनुष्य की चेतना उन्नत होगी, मनुष्य की सोच भी ऊर्ध्वमुखी होगी, और उन्हें सुख-शांति व सुरक्षा सनातन-धर्म व भारत की संस्कृति में ही मिलेगी| परोपकार, सब के सुखी व निरोगी होने और समष्टि के कल्याण की कामना सनातन संस्कृति में ही है, अन्यत्र कहीं नहीं|
ॐ तत्सत् |
कृपा शंकर
२५ नवंबर २०२०

Sunday, 23 November 2025

सांस तो स्वयं महासागर ले रहा है, सांसें लेने का मेरा भ्रम मिथ्या है ---

एक बार अनुभूति हुई कि सामने एक महासागर आ गया है, तो बिना किसी झिझक के मैंने उसमें छलांग लगा दी और जितनी अधिक गहराइयों में जा सकता था उतनी गहराइयों में चला गया। फिर सांस लेने की इच्छा हुई तो पाया कि सांस तो स्वयं महासागर ले रहा है, सांसें लेने का मेरा भ्रम मिथ्या है। फिर भी पृथकता का यह मिथ्या बोध क्यों? यही तो जगत की ज्वालाओं का मूल है।

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“शिवो भूत्वा शिवं यजेत्” --- जीवन में हम क्या बनना चाहते हैं, और क्या प्राप्त करना चाहते हैं? यह सब की अपनी अपनी सोच है। इस जीवन के अपने अनुभवों और विचारों के अनुसार इस जीवन में मैं जो कुछ भी प्राप्त करना चाहता हूँ, वह तो शिवभाव में मैं स्वयं हूँ। स्वयं से परे अन्य कुछ है ही नहीं। हे प्रभु, स्वयं को मुझमें व्यक्त करो। २३ नवंबर २०२४

Saturday, 22 November 2025

भगवान से बड़ा छलिया और कोई नहीं है .....

 भगवान से बड़ा छलिया और कोई नहीं है .....

हमने भगवान के साथ बहुत अधिक छल किया होगा तभी तो वे भी हमारे साथ छल ही कर रहे हैं| उनसे बड़ा छलिया और कोई नहीं है| सर्वत्र होकर भी वे समक्ष नहीं हैं, इस से बड़ा छल और क्या हो सकता है?
चलो, तुम्हारी मर्जी ! तुम चाहे जैसा करो, पर तुम्हारे बिना हम अब और नहीं रह सकते| इसी क्षण तुम्हें व्यक्त होना ही होगा| कोई अनुनय-विनय हम नहीं करेंगे क्योंकि तुम्हारे साथ एकरूपता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| तुम्हारे बिना बड़ी भयंकर पीड़ा हो रही है, यह बहुत बड़ी विपत्ती है| अब तो रक्षा करो| इतनी निष्ठुरता से स्वयं से विमुख क्यों कर रहे हो? तुम्हारे से विमुखता ही हमारे सब दुखों कष्टों का कारण है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ गुरु ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१९

'अहिंसा परमो धर्म' ....

 'अहिंसा परमो धर्म' ..... यह महाभारत का वाक्य है जिसे समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि हिंसा क्या है| एक वीतराग व्यक्ति ही अहिंसक हो सकता है, सामान्य सांसारिक व्यक्ति तो कभी भी नहीं| मनुष्य का राग-द्वेष, अहंकार और लोभ ही हिंसा है|

जिन्होनें काम, क्रोध, लोभ, राग-द्वेष और अहंकार रूपी सारे अरियों (शत्रुओं) का समूल नाश किया है, उन सभी अरिहंतों को मैं प्रणाम करता हूँ चाहे वे किसी भी मत-मतांतर के हों, और इस ब्रह्मांड में कहीं भी रहते हों| उन्हें बारंबार प्रणाम है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ गुरु ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१९

Friday, 21 November 2025

बड़ी कुटिलता से भारत में हिंदुओं को धर्म-निरपेक्षता के नाम पर द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाया गया है|

 बड़ी कुटिलता से भारत में हिंदुओं को धर्म-निरपेक्षता के नाम पर द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाया गया है|

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सारी समानता की बातें झूठी हैं| सत्य-सनातन-हिन्दू-धर्म ही भारत की अस्मिता है, जिसके बिना भारत, भारत नहीं है| हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए ही पाकिस्तान का निर्माण किया गया, और भारत को धर्म-निरपेक्ष (अधर्म-सापेक्ष) व समाजवादी घोषित कर तथाकथित अल्पसंख्यक तुष्टीकरण किया जा रहा है| भारत का संविधान हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा का अधिकार अपने विद्यालयों में नहीं देता, हिंदुओं के सारे मंदिरों को सरकार ने अपने अधिकार में ले रखा है| मंदिरों के धन की सरकारी लूट हो रही है| यह धन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए लगना चाहिए था| हिंदू धर्म को भी इस्लाम व ईसाईयत के बराबर संवैधानिक अधिकार मिलने चाहियें|
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जो लोग स्वयं को राष्ट्रवादी कहते हैं, उन्हें अपनी संतानों के लिए अपनी धार्मिक शिक्षा की माँग करनी चाहिए| अल्पसंख्यकवाद और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ईसाईयत और इस्लाम को ही अनुचित संरक्षण दिया जा रहा है, और हिंदुओं को अनंत जातियों में बांटा जा रहा है| हिन्दू धर्म के अनुयायियों को भी अन्य मज़हबों व रिलीजनों के बराबर ही संवैधानिक अधिकार मिलने चाहियें|
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सनातन-धर्म और भारत पर जितने आक्रमण और मर्मांतक प्रहार हुए हैं, उन का दस-लाख-वाँ प्रहार भी किसी अन्य संस्कृति पर होता तो वह तुरंत नष्ट हो जाती| भारत का धर्म, सृष्टि का धर्म और कालजयी है| अधोमुखी होकर मनुष्य की चेतना ही पतित हो गई थी| जब मनुष्य की चेतना का उत्थान होगा तभी उन्हें सनातन धर्म का ज्ञान होगा|
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हम जीव नहीं, शिव हैं| परमप्रेम और करुणा हमारा स्वभाव है| हमारे जीवन का उद्देश्य ... अव्यक्त ब्रह्म को व्यक्त करना है| यही सनातन धर्म का सार है, बाकी सब उसी का विस्तार है| कृपा शंकर
२२ नवंबर २०२०

अंडमान के संरक्षित नार्थ सेंटिनल द्वीप पर जाने की अनुमति एक विदेशी पादरी को किसने दी ?

 अंडमान के संरक्षित नार्थ सेंटिनल द्वीप पर जाने की अनुमति एक विदेशी पादरी को किसने दी? किस के आदेश से वहाँ हेलिकोप्टर गया? यह एक आपराधिक कृत्य था जिसके लिए दोषी को सजा मिलनी चाहिए| यह द्वीप संरक्षित द्वीप है जिस के आसपास जाने की किसी को भी अनुमति नहीं है| भारत सरकार के एक वैज्ञानिक अनुसंधान जहाज द्वारा इस द्वीप के आसपास के भौगोलिक क्षेत्र में चालीस वर्ष पूर्व १९७८ में एक वैज्ञानिक भूगर्भीय सर्वे हुआ था| मैं भी उस जहाज पर था| वहां के निवासियों को दूरबीन से देखा था| वे नग्न रहते हैं, कोई कपड़ा नहीं पहिनते हैं| किसी भी बाहरी व्यक्ति को वहां नहीं आने देते, और स्वयं भी कहीं नहीं जाते| बाहर के विश्व से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है| वे लोग अभी भी पाषाण युग में रहते हैं| कोई उनकी बोली भी नहीं समझता| भारत सरकार ने उसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है, किसी को भी वहां जाने की अनुमति नहीं है| अतः इस विदेशी पादरी की हिम्मत कैसे हुई अवैध रूप से वहाँ जाने की? किस ने उसको बचाने के लिए हेलिकोप्टर वहां भेजा? यह वहाँ चर्च के प्रभाव को दिखाता है|

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अंडमान की ज़रावा जनजाति भी ऐसे ही रहती थी| जिनसे बड़ी कठिनाई से भारत सरकार के ही एक सिख पुलिस अधिकारी ने बड़े प्रेम से बड़ी मुश्किल से संपर्क किया था जो कई वर्षों में सफल हुआ| मैं चालीस वर्ष पूर्व उस अधिकारी से पोर्ट ब्लेयर में मिला भी था| अब वे जरावा जनजाति के लोग धीरे धीरे समाज के संपर्क में आ रहे हैं| जरावा जनजाति कभी बड़ी संख्या में थी| वे लोगों से मिलते जुलते भी थे| ब्रिटिश शासन के समय की बात है| एक दूधनाथ तिवारी नाम के भारतीय बंदी की मित्रता उनकी एक महिला से हो गयी और वह उसके साथ रहने भी लगा| जरावा जनजाति अंडमान पर ब्रिटिश अधिकार से बड़ी त्रस्त थी| एक बार उन्होंने योजना बनाई कि रात के समय धावा बोलकर सभी अंग्रेजों को मार देंगे| उनके पास सिर्फ तीर-कमान ही होते थे| दूधनाथ ने गद्दारी की और अँगरेज़ अधिकारियों को सारी बात बता दी| रात के समय जब जरावा जनजाति ने अपने नुकीले तीरों से हमला किया तब अँगरेज़ अधिकारी सतर्क थे और उन्होंने बंदूकों से फायर कर के सैंकड़ों जरावा लोगों को मार डाला| बचे-खुचे जरावा लोग एक दुर्गम क्षेत्र में चले गए और बाहरी विश्व से अपने सम्बन्ध तोड़ लिए|
२२ नवम्बर २०१८

“धार्याति सा धर्म:” ... धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है ---

 “धार्याति सा धर्म:” ... धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है| धर्म कभी भय और प्रलोभन पर आधारित नहीं होता| जहाँ सिर्फ भय और प्रलोभन है, वह धर्म नहीं, अधर्म है| भय या प्रलोभन के वशीभूत होकर किए गए कर्म कभी धार्मिक नहीं हो सकते, वे अधार्मिक ही होंगे| भारत में धर्म की व्याख्या अनेक ग्रन्थों में की गई है, लेकिन कणाद ऋषि द्वारा वैशेषिक सूत्रों में की गई परिभाषा ही सर्वमान्य और सर्वाधिक लोकप्रिय है ... "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:||"

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जिस से हमारे अभ्यूदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो, वही धर्म है| अभ्युदय का अर्थ है ... जिस से हमारा उत्तरोत्तर विकास हो| निःश्रेयस का अर्थ है ... कष्टों या दुखों का अभाव, कल्याण, मंगल, मुक्ति और मोक्ष| इस का अर्थ यही हुआ कि ... "जिस से हमारा उत्तरोत्तर विकास, कल्याण और मंगल हो, व सब तरह के दुःखों, कष्टों से मुक्ति मिले वही धर्म है|
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अभ्युदय और निःश्रेयस ये वे दो लक्ष्य हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए मनुष्य अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं| अभ्यूदय का सबसे बड़ा लक्ष्य है निज जीवन में ईश्वर की प्राप्ति, यानि निज जीवन में ईश्वर को व्यक्त करना| निःश्रेयस का सबसे बड़ा लक्ष्य है अनात्मबोध से मोक्ष यानि मुक्ति|
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मनुस्मृति में धर्म के लक्षण बताए गए हैं| बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में और महाभारत, व रामायण जैसे ग्रन्थों में धर्म की गहनतन और अति विस्तृत जानकारी है, जिसका स्वाध्याय जिज्ञासु को स्वयं करना होता है|
शब्द "ख" आकाश तत्व यानि परमात्मा को व्यक्त करने के लिए होता है| परमात्मा से समीपता ही सुख है, और परमात्मा से दूरी होना ही दुःख है| विषय-वासनाओं में कोई सुख नहीं है, यह सुख का आभासमात्र है जो अंततः दुःखों की ही सृष्टि करता है|
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जैसा मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में आया वह मेंने लिख दिया| इस से अधिक जानकारी के लिए जिज्ञासुओं को स्वयं स्वाध्याय और सत्संग करना होगा| अंत में यही कहूँगा कि सत्य-सनातन-धर्म ही धर्म है, अन्य सब पंथ, मज़हब और रिलीजन हैं|
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कृपा शंकर
२१ नवंबर २०२०

Thursday, 20 November 2025

जो हम स्वयं की दृष्टि में हैं, भगवान की दृष्टि में भी वही हैं। अतः निरंतर अपने शिव-स्वरूप में रहने की उपासना करें। यही हमारा स्वधर्म है।

 जो हम स्वयं की दृष्टि में हैं, भगवान की दृष्टि में भी वही हैं। अतः निरंतर अपने शिव-स्वरूप में रहने की उपासना करें। यही हमारा स्वधर्म है।

भगवान को हम वही दे सकते हैं, जो हम स्वयं हैं। जो हमारे पास नहीं है वह हम भगवान को नहीं दे सकते। हम भगवान को प्रेम नहीं दे सकते क्योंकि हम स्वयं प्रेममय नहीं हैं।
गीता के सांख्य योग में भगवान हमें -- "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" बनने का आदेश देते हैं --
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
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इसे और भी अधिक ठीक से समझने के किए भगवान का ध्यान करें। आचार्य शंकर व अन्य आचार्यों के भाष्य पढ़ें। इसका चिंतन, मनन, व निदिध्यासन करें। बनना तो पड़ेगा ही, इस जन्म में नहीं तो अनेक जन्मों के पश्चात। मंगलमय शुभ कामनाएँ !!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ नवम्बर २०२३
जो हम स्वयं की दृष्टि में हैं, भगवान की दृष्टि में भी वही हैं। अतः निरंतर अपने शिव-स्वरूप में रहने की उपासना करें। यही हमारा स्वधर्म है।
भगवान को हम वही दे सकते हैं, जो हम स्वयं हैं। जो हमारे पास नहीं है वह हम भगवान को नहीं दे सकते। हम भगवान को प्रेम नहीं दे सकते क्योंकि हम स्वयं प्रेममय नहीं हैं।
गीता के सांख्य योग में भगवान हमें -- "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" बनने का आदेश देते हैं --
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
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इसे और भी अधिक ठीक से समझने के किए भगवान का ध्यान करें। आचार्य शंकर व अन्य आचार्यों के भाष्य पढ़ें। इसका चिंतन, मनन, व निदिध्यासन करें। बनना तो पड़ेगा ही, इस जन्म में नहीं तो अनेक जन्मों के पश्चात। मंगलमय शुभ कामनाएँ !!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ नवम्बर २०२३

जो लोग फ्रांस में हुए आतंकवादी हमलों की निंदा कर रहे हैं, क्या उन्होंने भारत में हुए आतंकी हमलों की कभी निंदा की है ??? यदि नहीं तो यह उनका ढोंग और पाखण्ड है|

 सभी से एक प्रश्न .....

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जो लोग फ्रांस में हुए आतंकवादी हमलों की निंदा कर रहे हैं, क्या उन्होंने भारत में हुए आतंकी हमलों की कभी निंदा की है ??? यदि नहीं तो यह उनका ढोंग और पाखण्ड है|
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अमेरिका को तो आतंकवाद क्या होता है इसका पता ही तब चला जब स्वयं उसके ऊपर हमला हुआ|
"जब हम चीखे बार बार तब तुमने ध्यान दिया होता
बम्बई के विस्फोटो पर यदि तुमने कान दिया होता
लादेनो के बाप पाक को जो ना मान दिया होता
तो तेरा दिल भी खुश होता यूं खंडित मान नही होता
हंसता गाता अमरीका यूं लहूलुहान नही होता" .... (अनामिका मिश्रा की कविता)
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भारत में हुए आतंकी हमलों के लिए किसी ने भी पाकिस्तान की निंदा नहीं की है| भारत अभी तक दुनिया को सबूत दिखाता फिर रहा है| कोई भारत की नहीं सुन रहा है| सारे पश्चिमी देश अपना हित साध रहे हैं|
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पाकिस्तान के विरुद्ध ये कुछ नहीं बोलते जबकि वास्तव में पाकिस्तान ही आतंकवाद की फैक्ट्री है| पाकिस्तान में हाफिज सईद कई मदरसे चला रहा है जहाँ बच्चों के दिमाग में भारत के विरुद्ध जहर भर भर कर हर वर्ष हज़ारों ओसामा बिन लादेन तैयार किए जा रहे हैं|
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फिलहाल भारत युद्ध के पक्ष मे तो नही है पर हां किसी आतताई के सामने सर झुकाना भी किसी भारतीय को नही आता| दर्प से भरे सर को हम उतार भी सकते हैं ...हम युद्ध के पोषक नही है पर यदि द्वार पर यदि कोई आने का दु: साहस कर ही बैठे तो उसको नर्कलोक पहुंचाने का प्रबंध हम भारतवासी करना जानते है| ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे ...
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अब भारत को आतंकवाद को जड़मूल से ही नाश करना होगा| अब पूरे विश्व को एकजूट होकर वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद के कारणों की खोज कर उन्हें समाप्त करना ही होगा |
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फ़्रांस और रूस ने सीरिया और इराक में निर्दयता से इस्लामिक स्टेट की कमर तोड़ दी है, अब उसे समाप्त करने की कगार पर हैं| न तो कोई सबूत जुटाए, न मुकदमा चलाया, न दुनिया के स्वघोषित पुलिसमेन व न्यायाधीश अमेरिका की स्वीकृति ली, और न दुनिया के आगे हाथ जोड़े, सीधे ही आतंकवाद पर प्रहार कर दिया|
ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||
२० नवंबर २०१५

"परमात्मा से पृथकता का भ्रम" हमारी एकमात्र समस्या है ---

 "परमात्मा से पृथकता का भ्रम" हमारी एकमात्र समस्या है। अपने लिए हम स्वयं ही समस्या बन गये हैं। भगवान की कृपा अवश्य ही हमें मुक्त करेगी।

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(भजन) "मेरे श्यामल कृष्ण आओ, मेरे श्यामल कृष्ण आओ,
मेरे श्यामल कृष्ण आओ,
हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण,
श्यामल कृष्ण आओ, राधे कृष्ण आओ।
हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण, हे मेरे कृष्ण,
राधे-कृष्ण आओ, मेरे श्यामल कृष्ण आओ॥"
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परमात्मा को पाने की एक प्रबल अभीप्सा, भक्ति, स्वस्थ शरीर और मन, व लगन और ब्रह्मचर्य की आवश्यकता है। इसके लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन, सत्संग, कुसंग का त्याग, और नित्य नियमित अभ्यास चाहिए। इस मार्ग पर हठयोग व तंत्र भी साधना होगा। सबसे बड़ी आवश्यकता तो एक प्रबल अभीप्सा की है। अभीप्सा का अर्थ है -- भगवान को पाने की एक तड़प और अतृप्त प्यास। उसके बिना काम नहीं बनेगा। यह अभीप्सा आपमें है तो इस मार्ग पर आइये, अन्यथा नहीं। भगवान हमारी रक्षा करें।
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परमात्मा का मार्ग है 'परमप्रेम' यानि 'भक्ति'। जो विचार हमें किसी से भी नफरत यानि घृणा या द्वेष करना सिखाता है वह अधर्म यानि शैतान का राक्षसी मार्ग पाप है। न तो किसी से अत्यधिक राग यानि लगाव हो, न द्वेष, और न अहंकार। राग, द्वेष और अहंकार से मुक्ति 'वीतरागता' है जो हमें 'स्थितप्रज्ञ' बनाती है। अहंकार, लोभ और घृणा -- हिंसा की जननी हैं, इनसे मुक्ति अहिंसा है जो परमधर्म कहलाती है।
महादेव महादेव महादेव !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० नवंबर २०२५

"गोपी" शब्द का अर्थ ---

 "गोपी" शब्द का अर्थ .....

गोपी किसी महिला का नाम नहीं है| जिन का प्रेम गोपनीय यानि किसी भी प्रकार के दिखावे से रहित स्वाभाविक होता है, और जो परमात्मा के प्रेम में स्वयं प्रेममय हो जाए वह "गोपी" है| हर समय निरंतर परमात्मा का चिंतन ध्यान करने वाले गोपी कहलाते हैं| ऐसी भक्ति के प्राप्त होने पर मनुष्य न किसी वस्तु की इच्छा करता है, न द्वेष करता है, न आसक्त होता है, और न उसे विषय-भोगों में उत्साह होता है| नारद भक्ति सूत्रों के प्रथम अध्याय का इक्कीसवां सूत्र है ..... यथा व्रजगोपिकानाम् | नारद जी कहते हैं .... जैसी भक्ति व्रज के गोपिकाओं को प्राप्त हुई, वैसी ही भक्ति हम सब को प्राप्त हो|
२० नवंबर २०१९

Tuesday, 18 November 2025

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस :--- (१९ नवंबर)

 अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस :--- (१९ नवंबर)

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आज अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस (International Men's Day) था। महिला दिवस पर सैंकड़ों लेख लिखे जाते हैं, लेकिन पुरुष दिवस पर आज एक भी लेख नहीं देखा। संसार में जीवित रहने के लिए महिला और पुरुष दोनों का ही योगदान होता है। पुरुषों की भलाई, स्वास्थ्य, मानसिक विकास, और उनके सकारात्मक गुणों का भी बहुत अधिक महत्व है। पुरुष ही राष्ट्र, समाज और मातृशक्ति की रक्षा कर सकते हैं। पुरुषों को भी मधुमेह, हृदय रोग, प्रोस्टेट ग्रंथि के विकार, और अनेक तरह के तनाव आदि हो सकते हैं। उन्हें भी अच्छा व्यवहार, प्रेम और सद्भावना चाहिए; सिर्फ दोषारोपण ही नहीं। अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मुझे भी अधिकार है, इसीलिए यह लेख लिख रहा हूँ।
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इस संसार में सबसे अधिक कठिन कार्य है पुरुष होना। मैं अपना स्वयं का ही उदाहरण देता हूँ। मैंने अति अति विपरीत परिस्थितियों में भी अपने परिवार और समाज की रक्षा और उत्थान के लिए पता नहीं कितने कष्ट उठाये -- यह मैं ही जानता हूँ। मेरा सर्वप्रथम उद्देश्य था -- भौतिक दरिद्रता और गरीबी से मुक्ति। दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है। अति कठिन संघर्ष कर के भौतिक दरिद्रता से मुक्ति पाई तो पाया कि उससे भी अधिक कष्टदायक आध्यात्मिक दरिद्रता है। अब तो आध्यात्मिक दरिद्रता से भी मुक्त हूँ। सारी पीड़ाएँ, सारे कर्म और उनके फल भगवान को समर्पित कर दिये, इसी से जीवन में सुख-शांति है, व इसीलिए जीवित हूँ, अन्यथा अब तक यह जीवन लीला कभी की समाप्त हो गई होती।
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आध्यात्मिक दृष्टि से एक ही पुरुष हैं, वे हैं भगवान विष्णु और उनके अवतार। अन्य सब प्रकृति है। पुरुष का अर्थ है पुरी में शयन करने वाला। हमारी इस देह रूपी पूरी में वे ही शयन कर रहे हैं। गीता में भगवान कहते हैं --
"अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर॥८:४॥"
अर्थात् - हे देहधारियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन ! क्षरभाव अर्थात् नाशवान् पदार्थ को अधिभूत कहते हैं, पुरुष अर्थात् हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी अधिदैव हैं और इस देह में अन्तर्यामी रूप से मैं ही अधियज्ञ हूँ।
Matter consists of the forms that perish; Divinity is the Supreme Self; and He who inspires the spirit of sacrifice in man, O noblest of thy race, is I Myself, Who now stand in human form before thee.
"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥८:५॥"
अर्थात् - जो मनुष्य अन्तकालमें भी मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़कर जाता है, वह मेरे स्वरुप को ही प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नहीं है।
And whosoever, leaving the body, goes forth remembering Me alone, at the time of death, he attains My Being: there is no doubt about this.
"अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्॥८:८॥"
अर्थात् - हे पार्थ ! अभ्यासयोग से युक्त अन्यत्र न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ (साधक) परम दिव्य पुरुष को प्राप्त होता है।
With the mind not moving towards any other thing, made steadfast by the method of habitual meditation, and constantly meditating, one goes to the Supreme Person, the Resplendent, O Arjuna.
"प्रयाणकाले मनसाऽचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्॥८:१०॥"
अर्थात् - वह भक्तियुक्त मनुष्य अन्तसमयमें अचल मनसे और योगबलके द्वारा भृकुटीके मध्यमें प्राणोंको अच्छी तरहसे प्रविष्ट करके (शरीर छोड़नेपर) उस परम दिव्य पुरुषको ही प्राप्त होता है।
He who leaves the body with mind unmoved and filled with devotion, by the power of his meditation gathering between his eyebrows his whole vital energy, attains the Supreme.
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
अर्थात् - आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसारके परम आश्रय हैं। आप ही सबको जाननेवाले, जाननेयोग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप ! आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है।
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वेदों में १८ श्लोकों का पुरुष सूक्त है। हम उन्हीं परम पुरुष को प्राप्त हों। वे ही एकमात्र पुरुष हैं --
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतोवृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलम्॥
पुरुष एवेदम् सर्वं यद्भूतम् यच्च भव्यम्। उतामृतत्वस्येशानो यदह्नेनाऽतिरोहति॥
एतावानस्य महिमातो ज्यायांश्च पुरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
त्रिपादूर्ध्वं उदैत् पुरुषः पादोस्येहा पुनः। ततो विश्वं व्यक्रामच्छाशनान शने अभि॥
तस्माद्विराडजायत विराजो अधिपुरुषः। सहातो अत्यरिच्यत पश्चात् भूमिमतो पुरः॥
यत्पुरुषेन हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तो अस्यासीद्दाज्यम् ग्रीष्म इद्ध्म शरद्धविः॥
सप्तास्यासन्परिधयस्त्रि सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वानाः अबध्नन्पुरुषं पशुं॥
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यं। पशून्तांश्चक्रे वायव्यानारण्यान्ग्राम्याश्च ये॥
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे। छंदांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः॥
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्य कौ बाहू का उरू पादा उच्येते॥
ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्बाहू राजन्य: कृत:। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रोऽजायत॥
चंद्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। मुखादिंद्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत॥
नाभ्या आसीदंतरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत। पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन्॥
वेदाहमेतम् पुरुषम् महान्तम् आदित्यवर्णम् तमसस्तु पारे। सर्वाणि रूपाणि विचित्य धीरो नामानि कृत्वा भिवदन्यदास्ते॥
धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार शक्रफ्प्रविद्वान् प्रतिशश्चतस्र। तमेव विद्वान् अमृत इह भवति नान्यत्पन्था अयनाय विद्यते॥
यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचंत यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवा:॥
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हे परम पुराणपुरुष, इस जीवन को स्वीकार करो। और मेरे पास कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है वह आपको समर्पित है। ॐ शांति शांति शांति ॥ ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ नवंबर २०२२

Monday, 17 November 2025

मंत्रम् वा साधयामी, शरीरम् वा पातयामी ---

 मंत्रम् वा साधयामी, शरीरम् वा पातयामी ---

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आजकल हरेक व्यक्ति आशंकित है कि कुछ न कुछ होने वाला है। हर व्यक्ति इसके लिए तैयारी कर रहा है, लेकिन उसे पता नहीं है कि क्या होने वाला है। व्यक्ति दिन प्रतिदिन स्वार्थी होता जा रहा है, इंद्रिय सुखों को अधिकाधिक भोगना चाहता है। छल-कपट और झूठ का सामान्य होना -- एक आने वाले विनाश की निशानी है। पता नहीं कमी स्वयं की है या अन्य किन्हीं कारणों की। लेकिन भगवान के वचनों पर विश्वास नहीं किया इसी लिए हमें ये सब दुःख और पीड़ाएँ हैं।
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मुझे भगवान का स्पष्ट उपदेश और आदेश था कि --- "तुम्हारी एकमात्र समस्या -- ईश्वर की प्राप्ति है, अन्य कोई भी समस्या तुम्हारी नहीं है। सब समस्याएँ परमात्मा की हैं। अपनी चेतना को निरंतर कूटस्थ में रखो और हर समय परमात्मा का चिंतन करो।"
लेकिन मैं स्वयं निष्ठावान नहीं रह पाया। दूसरों को क्या दोष दूँ?
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कहते हैं कि - "जागो तब सबेरा"। जो हुआ सो हुआ, अब यह आगे न हो। हे प्रभु अब सब कुछ आपका है, मेरा कुछ भी नहीं। मेरी बुराई-भलाई, बुरा-अच्छा, गलत-सही -- सब कुछ आपको समर्पण। या तो मेरा समर्पण ही सिद्ध हो या फिर यह भौतिक शरीर ही नष्ट हो। अब तुम्हारे बिना यहाँ और नहीं रह सकते। तुम्हें इसी क्षण प्रकट होना ही होगा।
ॐ तत्सत् !!ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ नवंबर २०२२