सौ बात की एक निर्विवाद बात :---
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भगवान "है", यहाँ यह "है" शब्द ही निर्विवाद शाश्वत सत्य है, अन्य सब मिथ्या है| भारत के सभी हिन्दू सम्प्रदायों में इस पर कोई मतभेद नहीं है|
सिर्फ "कौम-नष्ट" लोग ही भगवान को नहीं मानते| जिन जिन देशों में मार्क्सवादी यानी साम्यवादी कौम-नष्टों का शासन था वहाँ "भगवान है" यह बोलने मात्र पर ही व्यक्ति को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया जाता था| उसकी कहीं पर भी कोई सुनवाई नहीं होती थी| बेचारा या तो पूरी उम्र जेल में ही सड़ता या उसे पागलखाने में भेज कर सचमुच ही पागल बना दिया जाता| रूस में जब जोसफ स्टालिन का शासन था तब उसने पूरे पूर्व सोवियत संघ से ढूंढ ढूंढ कर ऐसे हज़ारों लोगों की ह्त्या करवा दी थी जो भगवान में आस्था रखते थे| रूस में जब ब्रेझनेव का शासन था उस समय तक वहाँ के सभी नागरिकों को यह वाक्य रटा दिया गया था कि हमारे अंतरिक्ष यात्री चन्द्रमा तक घूम कर आ गए हैं, कहीं पर भी कोई भगवान नहीं मिला, अतः भगवान नहीं है| इसके अलावा अन्य कुछ बोलने पर उन्हें पता था कि गिरफ्तार हो जायेंगे अतः कुछ भी नहीं बोलते थे| रूस में ऐसा जब घोर नास्तिक काल था ऐसे समय में मैं वहाँ रहा हूँ| ईश्वर-विहीन होने की उनकी पीड़ा को प्रत्यक्ष देखा है| कई बार कुछ मध्य एशिया के मुसलमान मिलते जो मेरे को भी मुसलमान समझते और एकांत में डरते डरते मुझ से धीरे से अभिवादन कर के कहते ... "सलाम-अलैकुम"| मैं भी उनको धीरे से बोल देता ... "मालेकुम-सलाम", तो वे बेचारे ऐसे खुश होते कि कुछ भी कह नहीं सकते थे|
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एक बहुत लम्बे अंतराल के पश्चात मुझे फिर कुछ "कौम-नष्ट" देशों में जाने का अवसर मिला| युक्रेन में एक बार एक बड़ी विदुषी वृद्धा तातार मुस्लिम महिला ने मुझे अपने घर पर भोजन के लिए निमंत्रित किया| उस दिन उसने बाजार से नए बर्तन खरीद कर मेरे लिए शाकाहारी खाना बनाया| पता नहीं कहाँ से और कैसे उस तातार मुस्लिम महिला को हिन्दू धर्म का जबरदस्त अध्ययन और ज्ञान था| उसने मुझे एकांत में ले जाकर स्पष्ट चेतावनी दे दी कि उस की बेटी के समक्ष मैं कोई धर्म की बात नहीं करूँ| उसने कहा कि उसकी बेटी "कौम-नष्ट" विचारधारा की हैं| धर्म की बात करने पर पता नहीं कहाँ व कब मुसीबत में डाल दे| उस तातार मुस्लिम महिला ने बताया कि वह चीन की जेलों में दस वर्ष तक राजनीतिक बंदी रही थी| वहाँ कई चीनी विद्वान् भी राजनीतिक बंदी थे| चीन की जेल में ही एक हिन्दू धर्म का चीनी विद्वान् भी था जिससे उसने हिन्दू धर्म के बारे में बहुत कुछ सीखा|
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युक्रेन में ही एक बार ऐसे ही एक तातार मुस्लिम इंजिनियर ने मुझ से मित्रता की और अपने घर खाने पर निमंत्रित किया| उस को और उसकी पत्नी को शाकाहारी खाना बनाना नहीं आता था अतः उन्होंने मेरे लिए खीर बनाई और ब्रेड सेंकी| वही शाकाहारी खाना वे मुझे खिला सके| उस व्यक्ति का भारत के इतिहास पर बहुत अच्छा अध्ययन था| अचानक वहाँ उसकी माँ आ गयी जो एक कट्टर मुसलमान थी| उसने हिन्दू और बौद्ध धर्म के प्रति बड़े अशोभनीय शब्दों का प्रयोग शुरू कर दिया| उस व्यक्ति ने अपनी माँ को यह कह कर चुप कर दिया कि घर में एक हिन्दू अतिथि है अतः वह अपनी मर्यादा में रहे, और उसे दूसरे कमरे में छोड़ कर आ गया| उसने मुझसे अपनी माँ के गलत व्यवहार के कारण क्षमा भी माँगी|
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"कौम-नष्ट" उत्तरी कोरिया में एक बार एक अधिकारी मुझ से बहस करने लगा| उसका कहना था कि हम "कौम-नष्ट" लोग भगवान को नहीं मानते, भारत के लोग मुर्ख है जो भगवान को मानते हैं| मैंने उस से पूछा कि मरने के बाद तुम्हारी क्या गति होती है? उसने कहा कि जैसे एक कुत्ता मरता है वैसे ही हम भी मर जायेंगे| आगे मैनें कोई बात नहीं की क्योंकि "कौम-नष्टों" से बात करने का कोई लाभ नहीं है|
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चीन में जब "कौम-नष्ट" शासन था तब भी, और उसके बाद भी जाने का अवसर मिला है| चीन की दीवार भी देखी है, चीन की दीवार पर घूमा भी हूँ और किसी की साइकिल माँग कर चीन की दीवार के साथ साथ साइकिल पर भी खूब घूमा हूँ| "कौम-नष्ट" चीन में तो किसी का साहस ही नहीं होता था भगवान के बारे में कुछ बात करने का|
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"कौम-नष्ट" लाटविया के लोगों में भी मैनें ईश्वर-विहीन जीवन की पीड़ा देखी है| अब तो पता नहीं वहाँ कैसी स्थिति है| "कौम-नष्ट" रोमानिया का ईश्वर-विहीन नारकीय जीवन भी देखा है| उसकी तो मैं बात ही नहीं करना चाहता|
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भारत में भी मेरे अनेक "कौम-नष्ट" मित्र रहे हैं पर वे अब सब सुधर कर घोर आस्तिक हो चुके हैं| मुझे स्वयं को भी जीवन में एक अति अल्प समय तक एक कट्टर "कौम-नष्ट" रहने का अनुभव है| वह जीवन का एक भटकाव था| हम भारत के लोग बड़े भाग्यशाली हैं जो ईश्वर की आराधना करने को स्वतंत्र हैं|
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सौ बात की एक ही बात है कि भगवान "है", और वह "है" ही सब कुछ है| यह "है" ही परम सत्य है| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० फरवरी २०१९
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भगवान "है", यहाँ यह "है" शब्द ही निर्विवाद शाश्वत सत्य है, अन्य सब मिथ्या है| भारत के सभी हिन्दू सम्प्रदायों में इस पर कोई मतभेद नहीं है|
सिर्फ "कौम-नष्ट" लोग ही भगवान को नहीं मानते| जिन जिन देशों में मार्क्सवादी यानी साम्यवादी कौम-नष्टों का शासन था वहाँ "भगवान है" यह बोलने मात्र पर ही व्यक्ति को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया जाता था| उसकी कहीं पर भी कोई सुनवाई नहीं होती थी| बेचारा या तो पूरी उम्र जेल में ही सड़ता या उसे पागलखाने में भेज कर सचमुच ही पागल बना दिया जाता| रूस में जब जोसफ स्टालिन का शासन था तब उसने पूरे पूर्व सोवियत संघ से ढूंढ ढूंढ कर ऐसे हज़ारों लोगों की ह्त्या करवा दी थी जो भगवान में आस्था रखते थे| रूस में जब ब्रेझनेव का शासन था उस समय तक वहाँ के सभी नागरिकों को यह वाक्य रटा दिया गया था कि हमारे अंतरिक्ष यात्री चन्द्रमा तक घूम कर आ गए हैं, कहीं पर भी कोई भगवान नहीं मिला, अतः भगवान नहीं है| इसके अलावा अन्य कुछ बोलने पर उन्हें पता था कि गिरफ्तार हो जायेंगे अतः कुछ भी नहीं बोलते थे| रूस में ऐसा जब घोर नास्तिक काल था ऐसे समय में मैं वहाँ रहा हूँ| ईश्वर-विहीन होने की उनकी पीड़ा को प्रत्यक्ष देखा है| कई बार कुछ मध्य एशिया के मुसलमान मिलते जो मेरे को भी मुसलमान समझते और एकांत में डरते डरते मुझ से धीरे से अभिवादन कर के कहते ... "सलाम-अलैकुम"| मैं भी उनको धीरे से बोल देता ... "मालेकुम-सलाम", तो वे बेचारे ऐसे खुश होते कि कुछ भी कह नहीं सकते थे|
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एक बहुत लम्बे अंतराल के पश्चात मुझे फिर कुछ "कौम-नष्ट" देशों में जाने का अवसर मिला| युक्रेन में एक बार एक बड़ी विदुषी वृद्धा तातार मुस्लिम महिला ने मुझे अपने घर पर भोजन के लिए निमंत्रित किया| उस दिन उसने बाजार से नए बर्तन खरीद कर मेरे लिए शाकाहारी खाना बनाया| पता नहीं कहाँ से और कैसे उस तातार मुस्लिम महिला को हिन्दू धर्म का जबरदस्त अध्ययन और ज्ञान था| उसने मुझे एकांत में ले जाकर स्पष्ट चेतावनी दे दी कि उस की बेटी के समक्ष मैं कोई धर्म की बात नहीं करूँ| उसने कहा कि उसकी बेटी "कौम-नष्ट" विचारधारा की हैं| धर्म की बात करने पर पता नहीं कहाँ व कब मुसीबत में डाल दे| उस तातार मुस्लिम महिला ने बताया कि वह चीन की जेलों में दस वर्ष तक राजनीतिक बंदी रही थी| वहाँ कई चीनी विद्वान् भी राजनीतिक बंदी थे| चीन की जेल में ही एक हिन्दू धर्म का चीनी विद्वान् भी था जिससे उसने हिन्दू धर्म के बारे में बहुत कुछ सीखा|
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युक्रेन में ही एक बार ऐसे ही एक तातार मुस्लिम इंजिनियर ने मुझ से मित्रता की और अपने घर खाने पर निमंत्रित किया| उस को और उसकी पत्नी को शाकाहारी खाना बनाना नहीं आता था अतः उन्होंने मेरे लिए खीर बनाई और ब्रेड सेंकी| वही शाकाहारी खाना वे मुझे खिला सके| उस व्यक्ति का भारत के इतिहास पर बहुत अच्छा अध्ययन था| अचानक वहाँ उसकी माँ आ गयी जो एक कट्टर मुसलमान थी| उसने हिन्दू और बौद्ध धर्म के प्रति बड़े अशोभनीय शब्दों का प्रयोग शुरू कर दिया| उस व्यक्ति ने अपनी माँ को यह कह कर चुप कर दिया कि घर में एक हिन्दू अतिथि है अतः वह अपनी मर्यादा में रहे, और उसे दूसरे कमरे में छोड़ कर आ गया| उसने मुझसे अपनी माँ के गलत व्यवहार के कारण क्षमा भी माँगी|
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"कौम-नष्ट" उत्तरी कोरिया में एक बार एक अधिकारी मुझ से बहस करने लगा| उसका कहना था कि हम "कौम-नष्ट" लोग भगवान को नहीं मानते, भारत के लोग मुर्ख है जो भगवान को मानते हैं| मैंने उस से पूछा कि मरने के बाद तुम्हारी क्या गति होती है? उसने कहा कि जैसे एक कुत्ता मरता है वैसे ही हम भी मर जायेंगे| आगे मैनें कोई बात नहीं की क्योंकि "कौम-नष्टों" से बात करने का कोई लाभ नहीं है|
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चीन में जब "कौम-नष्ट" शासन था तब भी, और उसके बाद भी जाने का अवसर मिला है| चीन की दीवार भी देखी है, चीन की दीवार पर घूमा भी हूँ और किसी की साइकिल माँग कर चीन की दीवार के साथ साथ साइकिल पर भी खूब घूमा हूँ| "कौम-नष्ट" चीन में तो किसी का साहस ही नहीं होता था भगवान के बारे में कुछ बात करने का|
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"कौम-नष्ट" लाटविया के लोगों में भी मैनें ईश्वर-विहीन जीवन की पीड़ा देखी है| अब तो पता नहीं वहाँ कैसी स्थिति है| "कौम-नष्ट" रोमानिया का ईश्वर-विहीन नारकीय जीवन भी देखा है| उसकी तो मैं बात ही नहीं करना चाहता|
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भारत में भी मेरे अनेक "कौम-नष्ट" मित्र रहे हैं पर वे अब सब सुधर कर घोर आस्तिक हो चुके हैं| मुझे स्वयं को भी जीवन में एक अति अल्प समय तक एक कट्टर "कौम-नष्ट" रहने का अनुभव है| वह जीवन का एक भटकाव था| हम भारत के लोग बड़े भाग्यशाली हैं जो ईश्वर की आराधना करने को स्वतंत्र हैं|
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सौ बात की एक ही बात है कि भगवान "है", और वह "है" ही सब कुछ है| यह "है" ही परम सत्य है| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० फरवरी २०१९
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