Friday 22 February 2019

जहाँ विजय सुनिश्चित है वहाँ कायरता क्यों ? .....

जहाँ विजय सुनिश्चित है वहाँ कायरता क्यों ? .....
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भगवान श्रीकृष्ण सब गुरुओं के गुरु हैं| उनसे बड़ा गुरु न तो कोई हुआ है और न कोई होगा| वेदव्यास जी ने उनकी वन्दना "कृष्णं वन्दे जगतगुरुम्" कह कर की है| भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को सबसे पहिला उपदेश तो कायरता छोड़ने के लिए दिया है| जब तक मनुष्य के मन में कायरता है तब तक कोई भी दूसरा उपदेश काम नहीं करेगा| भगवान ने कहा .....
"क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते| क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप||२:३||
यह सबसे पहिला उपदेश ही नहीं, भगवान की प्रथम आज्ञा है| इस उपदेश को समझे बिना गीता को समझने का प्रयास ही व्यर्थ है|
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गीता के अंत में भी वे संजय के मुख से स्पष्ट कहलवा देते हैं .....
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||
इस से बड़ी बात दूसरी कोई हो ही नहीं सकती| यहाँ भगवान ने बड़ी से बड़ी बात कहलवा दी है|
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साथ साथ बड़े से बड़ा ज्ञान दे दिया है ....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||
भगवान यहाँ कहते हैं कि हे धनंजय, ईश्वर मुझपर प्रसन्न हों इस आशारूप आसक्ति को भी छोड़कर कर, योगमें स्थित होकर केवल ईश्वरके लिय कर्म कर| फलतृष्णारहित पुरुष द्वारा कर्म किये जाने पर अन्तःकरणकी शुद्धिसे उत्पन्न होनेवाली ज्ञानप्राप्ति तो सिद्धि है, और उससे विपरीत ज्ञानप्राप्तिका न होना असिद्धि है ऐसी सिद्धि और असिद्धिमें भी सम होकर अर्थात् दोनोंको तुल्य समझकर कर्म कर| यही जो सिद्धि और असिद्धिमें समत्व है इसीको योग कहते हैं| यह बड़े से बड़ा ज्ञान है| इस से बड़ा कोई ज्ञान नहीं है|
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मुक्ति का उपाय भी बता दिया है| अन्य भी सारे ज्ञान दे दिए हैं जो मनुष्य जीवन में आवश्यक हैं| भगवान के अधिकाँश उपदेशों का सार यही है कि साधक को परमात्मतत्त्व की प्राप्ति के लिये अपने में कायरता नहीं लानी चाहिये| कभी हताश न हों, मन में नित्य नया उत्साह रखो| सर्वत्र हमारे इष्ट ही हैं .....
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||
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अब और कुछ भी लिखना संभव नहीं है| मन तृप्त है, पूरी संतुष्टि है|
हे सच्चिदानंद, तुम्हारी जय हो| हर हर महादेव् !
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
.१६ फरवरी २०१९

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