परमात्मा के मार्ग में सहायक और बाधक तत्व :----
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प्रायः सभी मनीषियों ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किये हैं| हिंदी में तो अब तक सबसे अधिक लोकप्रिय यदि कोई ग्रन्थ हुआ है तो वह है संत तुलसीदास कृत "रामचरितमानस"| पिछलें छः सौ वर्षों में इस से अधिक लोकप्रियता किसी भी अन्य ग्रन्थ ने नहीं पायी है| इस में अनेक बार भगवान के प्रति प्रेम को ही सर्वोत्कृष्ट बताया गया है| मैं तो एक ही उद्धरण ले रहा हूँ.....
"कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभहि प्रिय जिमि दाम |
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ||"
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ऐसे ही सबसे बड़ा बाधक जिसे इस ग्रन्थ में बताया गया है, वह है.....
"सुख सम्पति परिवार बड़ाई | सब परिहरि करिहऊँ सेवकाई ||
ये सब रामभक्ति के बाधक | कहहिं संत तव पद अवराधक ||"
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रामचरितमानस की खूबी यह है कि एक सामान्य से सामान्य मनुष्य जो सिर्फ लिखना-पढ़ना ही जानता हो, वह भी इस ग्रन्थ को समझ सकता है| गहन से गहन आध्यात्मिक तत्वों को सरलतम भाषा में समझाया गया है| मैंने कई अनपढ़ लोगों को भी देखा है जो दूसरों के मुख से सुनकर भी इसके भावों को बहुत ही अच्छी तरह से समझ जाते हैं| यह ग्रन्थ पिछले छःसौ वर्षों के घोरतम विकट काल में हिन्दू धर्म का प्राण रहा है|
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परमात्मा के मार्ग में इन्द्रीय सुखों के प्रति आकर्षण ही सबसे अधिक बाधक है| भगवान ने हमें विवेक दिया है जिसका उपयोग हम इस बाधा को दूर करने में लगाएँ| हर व्यक्ति की समस्या अलग अलग होती है, समाधान भी अलग अलग है| एक ही समाधान सबके लिए नहीं हो सकता| अपनी समस्या का समाधान स्वयं करें| यदि समस्या हल नहीं होती है तो भगवान से प्रार्थना करें| सच्चे हृदय से की गयी प्रार्थना निश्चित रूप से सफल होती है|
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वेदांती साधुओं के मुख से मैनें "वेदान्त वासना" शब्द सुना जो मुझे बहुत प्रिय लगा है| वासना हो तो भगवान के प्रति ही हो| जो आत्म-तत्व के साधक हैं उन की वासना वेदान्त यानि आत्म-तत्व के प्रति ही हो| मेरे में जन्मजात संस्कार भक्ति और वेदान्त के प्रति है| मेरी सारी जिज्ञासाओं का समाधान गीता में हो जाता है| भगवान के प्रति प्रेम तो मेरा स्वभाव है| मेरा आनंद मेरे अपने इस स्वभाव में ही है, इस से बाहर नहीं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०१९
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प्रायः सभी मनीषियों ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किये हैं| हिंदी में तो अब तक सबसे अधिक लोकप्रिय यदि कोई ग्रन्थ हुआ है तो वह है संत तुलसीदास कृत "रामचरितमानस"| पिछलें छः सौ वर्षों में इस से अधिक लोकप्रियता किसी भी अन्य ग्रन्थ ने नहीं पायी है| इस में अनेक बार भगवान के प्रति प्रेम को ही सर्वोत्कृष्ट बताया गया है| मैं तो एक ही उद्धरण ले रहा हूँ.....
"कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभहि प्रिय जिमि दाम |
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ||"
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ऐसे ही सबसे बड़ा बाधक जिसे इस ग्रन्थ में बताया गया है, वह है.....
"सुख सम्पति परिवार बड़ाई | सब परिहरि करिहऊँ सेवकाई ||
ये सब रामभक्ति के बाधक | कहहिं संत तव पद अवराधक ||"
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रामचरितमानस की खूबी यह है कि एक सामान्य से सामान्य मनुष्य जो सिर्फ लिखना-पढ़ना ही जानता हो, वह भी इस ग्रन्थ को समझ सकता है| गहन से गहन आध्यात्मिक तत्वों को सरलतम भाषा में समझाया गया है| मैंने कई अनपढ़ लोगों को भी देखा है जो दूसरों के मुख से सुनकर भी इसके भावों को बहुत ही अच्छी तरह से समझ जाते हैं| यह ग्रन्थ पिछले छःसौ वर्षों के घोरतम विकट काल में हिन्दू धर्म का प्राण रहा है|
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परमात्मा के मार्ग में इन्द्रीय सुखों के प्रति आकर्षण ही सबसे अधिक बाधक है| भगवान ने हमें विवेक दिया है जिसका उपयोग हम इस बाधा को दूर करने में लगाएँ| हर व्यक्ति की समस्या अलग अलग होती है, समाधान भी अलग अलग है| एक ही समाधान सबके लिए नहीं हो सकता| अपनी समस्या का समाधान स्वयं करें| यदि समस्या हल नहीं होती है तो भगवान से प्रार्थना करें| सच्चे हृदय से की गयी प्रार्थना निश्चित रूप से सफल होती है|
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वेदांती साधुओं के मुख से मैनें "वेदान्त वासना" शब्द सुना जो मुझे बहुत प्रिय लगा है| वासना हो तो भगवान के प्रति ही हो| जो आत्म-तत्व के साधक हैं उन की वासना वेदान्त यानि आत्म-तत्व के प्रति ही हो| मेरे में जन्मजात संस्कार भक्ति और वेदान्त के प्रति है| मेरी सारी जिज्ञासाओं का समाधान गीता में हो जाता है| भगवान के प्रति प्रेम तो मेरा स्वभाव है| मेरा आनंद मेरे अपने इस स्वभाव में ही है, इस से बाहर नहीं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०१९
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