Friday, 22 February 2019

हमारे सारे बहाने झूठे, और स्वयं को धोखा देने के साधन हैं.....

हमारे सारे बहाने झूठे, और स्वयं को धोखा देने के साधन हैं.....
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गुरु महाराज को कोई भी बहाना स्वीकार्य नहीं था| वे स्पष्ट कहते थे कि तुम्हारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या परमात्मा को प्राप्त करना है, दूसरी कोई समस्या तुम्हारी नहीं है| अन्य सारी समस्याएँ सृष्टिकर्ता परमात्मा की हैं| अपनी चेतना को सदा भ्रूमध्य में रखो और निरंतर परमात्मा का स्मरण करो| अपने हृदय का पूर्ण प्रेम परमात्मा को दो| यदि सफलता नहीं मिलती है तो दोष तुम्हारी निष्ठा के अभाव का है, अन्य कोई कारण नहीं है| तुन्हारी निष्ठा के अभाव के कारण ही समर्पण में पूर्णता नहीं आ रही है| स्वयं को पूर्ण रूप से पूरी निष्ठा से परमात्मा को समर्पित कर दो, कुछ भी अपने लिए बचाकर मत रखो| लक्ष्य सदा समक्ष रहे, इधर, उधर कहीं भी मत देखो, दृष्टी सिर्फ लक्ष्य परमात्मा पर ही रहे|
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भगवान श्रीकृष्ण भी यही कहते हैं ....
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च| मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्||८:७||"
लगभग यही बात जीसस क्राइस्ट ने कही है .... "Jesus said unto him, Thou shalt love the Lord thy God with all thy heart, and with all thy soul, and with all thy mind. This is the first and great commandment. And the second is like unto it, Thou shalt love thy neighbour as thyself. On these two commandments hang all the law and the prophets."
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भगवान भी "अनन्य भक्ति" और "अव्यभिचारिणी भक्ति" की बात कहते हैं जो बिना पूर्ण निष्ठा के फलीभूत नहीं होती ....
"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी| विवक्तदेशसेवित्वरतिर्जनसंसदि||१३:१०||
लगभग यही बात जीसस क्राइस्ट कहते हैं .... "But seek ye first the kingdom of God, and his righteousness; and all these things shall be added unto you." (Matthew 6:33 KJV)
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सारे वैदिक ऋषि सर्वप्रथम परमात्मा को प्राप्त करने का उपदेश देते हैं| हमने जन्म ही परमात्मा को प्राप्त करने के लिए लिया है, अन्य कोई उद्देश्य नहीं है|
यदि हम परमात्मा को प्रात नहीं कर पाते हैं तो ....."एकमात्र दोष हमारी निष्ठा के अभाव का है|" हमारे सारे बहाने झूठे हैं|
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चिंता की कोई बात नहीं है | भगवान का स्पष्ट आश्वासन है ....
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"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||"
"नेहाभिक्रम-नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पम् अप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्धय्-असिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
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गुरु महाराज तो यहाँ तक कह गए हैं कि ....."परमात्मा को प्राप्त करने की साधना का तुम्हें सिर्फ २५% ही करना है, तुम्हारे लिए २५% मैं स्वयं करूँगा, और बाकी का ५०% करुणा और प्रेमवश जगन्माता करेगी|
गुरु महाराज के इतने बड़े आश्वासन और आदेश के पश्चात भी यदि हम भगवान को प्राप्त नहीं कर पाये तो धिक्कार है हमारे पर| फिर तो हमारा जन्म लेना ही व्यर्थ है|
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हे गुरु महाराज, हे परमशिव, मेरा पूर्ण समर्पण स्वीकार करो| मैं जैसा भी हूँ, आपका ही हूँ, मेरे सारे गुण व दोष आपके ही हैं| मैं सदा आपका ही रहूँगा|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ फरवरी २०१९

1 comment:

  1. निष्ठावान साधक का सारा मार्गदर्शन, उस की रक्षा, और उस की सारी जिज्ञासाओं का समाधान स्वयं भगवान करते हैं| भावजगत में सम्पूर्ण समष्टि के साथ स्वयं को एकाकार करें, और शिवनेत्र होकर कूटस्थ में सर्वव्यापी सद्गुरु रूप परमशिव का ध्यान करें| हम यह देह नहीं बल्कि परमात्मा की अनंतता और उनका सम्पूर्ण प्रेम हैं|
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    ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! गुरु ॐ ! शिव शिव शिव शिव शिव शिव शिव शिव !!
    १४ फरवरी २०१९

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