Friday 22 February 2019

ॐ तत् सत् ....

ॐ तत् सत् .... 
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भगवान से प्रार्थना करते हुए मैं आशा करता हूँ कि जिस विषय पर लिखने की मुझे अन्तःप्रेरणा मिली है, उसे व्यक्त कर पाऊँगा| यह मेरी एक अनुभूति है कि आत्म-तत्व, परमात्म-तत्व और गुरु-तत्व ... सब एक ही हैं, एक विशिष्ट स्तर पर इनमें कोई भेद नहीं है| आरम्भ में ये सब पृथक पृथक लगते हैं, पर जैसे जैसे ध्यान साधना की गहराई बढ़ती जाती है, इनमें कोई भेद नहीं रहता| सामान्य चेतना में मेरे गुरु मुझसे पृथक हैं. पर ध्यान की गहराई में वे मेरे साथ एक हैं| ऐसे ही सामान्य चेतना में भगवान मुझसे अलग हैं, पर ध्यान की गहराई में वे मेरे साथ एक हैं| कहीं पर भी कोई भेद नहीं रहता|
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अपनी बात को आधार देने के लिए मैं गीता का सहारा लेना चाहता हूँ| गीता में परमात्मा को "ॐ तत् सत्" इन तीन नामों से निर्देशित किया गया है|
"तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः| ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा||१७:२३||
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्| यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्||८:१३||"
"तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः| प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌||१७:२४||"
तदित्यनभिसन्दाय फलं यज्ञतपःक्रियाः| दानक्रियाश्चविविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः||१७:२५||
सद्भावे साधुभावे च सदित्यतत्प्रयुज्यते| प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते||१७:२६||
यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते| कर्म चैव तदर्थीयं सदित्यवाभिधीयते||१७:२७||
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्‌| असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह||१७:२८||
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"ॐ" "तत्" और "सत्" एक ही हैं पर इनकी अभिव्यक्ति पृथक पृथक है| हिन्दुओं के "ॐ तत् सत्" की नकल कर के ही ईसाईयत में "Father" "Son" and the "Holy Ghost" शब्दों का प्रयोग किया गया है| ये तीनों एक हैं पर इनकी भी अभिव्यक्ति अलग अलग हैं|
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संभवतः मैं अपने भावों को व्यक्त करने में कुछ कुछ अल्प मात्रा में सफल रहा हूँ| परमात्मा स्वयं ही विभिन्न आत्माओं के रूप में लीला करते हैं| स्वयं ही अपनी लीला में अज्ञान में गिरते हैं, और स्वयं ही गुरु रूप में स्वयं को ही मुक्त करने आते है, और स्वयं ही मुक्त होते हैं| गुरु भी वे ही हैं और शिष्य भी वे ही हैं| उनके अतिरिक्त अन्य किसी का कोई अस्तित्व नहीं है|
और भी स्पष्ट शब्दों में "आत्मा नित्यमुक्त है, सारे बंधन एक भ्रम हैं|"
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०१९

1 comment:

  1. गुरु और शिष्य .....
    दोनों एक ही हैं| दोनों में कोई अंतर नहीं है| जो गुरु है वो ही शिष्य है, और जो शिष्य है, वो ही गुरु है| दोनों में भेद हमारा अज्ञान है| भगवान स्वयं ही एक ओर तो गुरु बन कर बैठे हैं, और वे ही दूसरी ओर स्वयं चेला बन कर बैठे हैं|
    वाह ! क्या लीला है लीलापति की !!! नारायण ! नारायण ! नारायण !

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