अतृप्त और अशांत मन ही सब बुराइयों की जड़ है .....
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इस सृष्टि में दैवीय और आसुरी दोनों तरह की शक्तियाँ हैं, हमारा जैसा चिंतन होता है वैसी ही शक्ति हमारे ऊपर हावी हो जाती है| यह मेरा प्रत्यक्ष अनुभव है| जब हमारा मन अतृप्त और अशांत रहता है तब आसुरी शक्तियाँ हावी हो जाती हैं, और हमें अपना शिकार बना लेती हैं| जब हम परमात्मा का चिंतन करते हैं तब दैवीय शक्तियाँ हर संभव सहायता करती हैं| सार की बात यह है कि हमारा अतृप्त अशांत मन ही हमारी सब बुराइयों और सब पापों का कारण है| मन पर विजय कैसे पायें इसके लिए साधना करनी पड़ती है, गीता में और उपनिषदों में इसका स्पष्ट मार्गदर्शन है, जिनका हमें स्वाध्याय करना चाहिए| हमें संत-महात्माओं और विद्यावान मनीषियों का सत्संग भी करना चाहिए, और एकांत में भगवान का ध्यान भी करना चाहिए|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें निःस्पृह, वीतराग और स्थितप्रज्ञ होने का उपदेश देते हैं.....
"दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः| वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते||२:५६||
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दुःखों के प्राप्त होने से जिस का मन उद्विग्न अर्थात क्षुभित नहीं होता उसे अनुद्विग्नमना कहते हैं| सुखोंकी प्राप्ति हेतु जिस की स्पृहा/तृष्णा नष्ट हो गयी है, वह विगतस्पृह कहलाता है| आसक्ति भय और क्रोध जिसके नष्ट हो गये हैं वह वीतराग कहलाता है| ऐसे गुणोंसे युक्त जब कोई हो जाता है तब वह स्थितप्रज्ञ और मुनि कहलाता है|
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एक बार तो हमें भगवान से प्रार्थना कर किन्हीं अच्छे सिद्ध संत-महात्मा को खोजकर उनसे मार्गदर्शन लेना ही होगा| यदि हम निष्ठावान होंगे तो वैसे ही मार्गदर्शक मिल जायेंगे, अन्यथा यदि हमारे मन में छल-कपट होगा तो फिर ठग-गुरु ही मिलेंगे जो हमारा सब कुछ हर लेंगे| सद्गुरु या ठगगुरु का मिलना हमारे मन की सोच पर ही निर्भर है|
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हमारे मन की जो बुरी वासनाएँ हैं उन्हें ही इब्राहिमी मतों (यहूदी, इस्लाम व ईसाईयत) में शैतान का नाम दिया है| हिन्दू परम्परा में शैतान नाम की किसी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि हिन्दू मान्यता कहती है कि मनुष्य अज्ञान वश पाप करता है जो दुःखों की सृष्टि करते हैं| सार की बात यह है कि अपना भटका हुआ, अतृप्त अशांत मन ही शैतान है|
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वर्तमान में अधिकांश उच्च कोटि के साधक इसआसुरी तत्व से देश को बचाने में लगे है ! वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में असुरत्व प्रबल हो चूका है जिसके दुष्परिणाम धीरे धीरे विश्व जगत भुगत रहा है| अपना मन भगवान को दें, बस अपनी रक्षा का यही एकमात्र उपाय है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ फरवरी २०१९
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इस सृष्टि में दैवीय और आसुरी दोनों तरह की शक्तियाँ हैं, हमारा जैसा चिंतन होता है वैसी ही शक्ति हमारे ऊपर हावी हो जाती है| यह मेरा प्रत्यक्ष अनुभव है| जब हमारा मन अतृप्त और अशांत रहता है तब आसुरी शक्तियाँ हावी हो जाती हैं, और हमें अपना शिकार बना लेती हैं| जब हम परमात्मा का चिंतन करते हैं तब दैवीय शक्तियाँ हर संभव सहायता करती हैं| सार की बात यह है कि हमारा अतृप्त अशांत मन ही हमारी सब बुराइयों और सब पापों का कारण है| मन पर विजय कैसे पायें इसके लिए साधना करनी पड़ती है, गीता में और उपनिषदों में इसका स्पष्ट मार्गदर्शन है, जिनका हमें स्वाध्याय करना चाहिए| हमें संत-महात्माओं और विद्यावान मनीषियों का सत्संग भी करना चाहिए, और एकांत में भगवान का ध्यान भी करना चाहिए|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें निःस्पृह, वीतराग और स्थितप्रज्ञ होने का उपदेश देते हैं.....
"दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः| वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते||२:५६||
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दुःखों के प्राप्त होने से जिस का मन उद्विग्न अर्थात क्षुभित नहीं होता उसे अनुद्विग्नमना कहते हैं| सुखोंकी प्राप्ति हेतु जिस की स्पृहा/तृष्णा नष्ट हो गयी है, वह विगतस्पृह कहलाता है| आसक्ति भय और क्रोध जिसके नष्ट हो गये हैं वह वीतराग कहलाता है| ऐसे गुणोंसे युक्त जब कोई हो जाता है तब वह स्थितप्रज्ञ और मुनि कहलाता है|
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एक बार तो हमें भगवान से प्रार्थना कर किन्हीं अच्छे सिद्ध संत-महात्मा को खोजकर उनसे मार्गदर्शन लेना ही होगा| यदि हम निष्ठावान होंगे तो वैसे ही मार्गदर्शक मिल जायेंगे, अन्यथा यदि हमारे मन में छल-कपट होगा तो फिर ठग-गुरु ही मिलेंगे जो हमारा सब कुछ हर लेंगे| सद्गुरु या ठगगुरु का मिलना हमारे मन की सोच पर ही निर्भर है|
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हमारे मन की जो बुरी वासनाएँ हैं उन्हें ही इब्राहिमी मतों (यहूदी, इस्लाम व ईसाईयत) में शैतान का नाम दिया है| हिन्दू परम्परा में शैतान नाम की किसी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि हिन्दू मान्यता कहती है कि मनुष्य अज्ञान वश पाप करता है जो दुःखों की सृष्टि करते हैं| सार की बात यह है कि अपना भटका हुआ, अतृप्त अशांत मन ही शैतान है|
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वर्तमान में अधिकांश उच्च कोटि के साधक इसआसुरी तत्व से देश को बचाने में लगे है ! वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में असुरत्व प्रबल हो चूका है जिसके दुष्परिणाम धीरे धीरे विश्व जगत भुगत रहा है| अपना मन भगवान को दें, बस अपनी रक्षा का यही एकमात्र उपाय है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ फरवरी २०१९
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