Friday 22 February 2019

अपानवायु में प्राणवायु का, और प्राणवायु में अपानवायु का हवन क्या होता है?

अपानवायु में प्राणवायु का, और प्राणवायु में अपानवायु का हवन क्या होता है? .
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
"अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे |
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ||४:२९||
भावार्थ : बहुत से मनुष्य अपान-वायु में प्राण-वायु का, उसी प्रकार प्राण-वायु में अपान-वायु का हवन करते हैं तथा अन्य मनुष्य प्राण-वायु और अपान-वायु की गति को रोक कर समाधि मे प्रवृत होते है|
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यह प्राण तत्व से सम्बंधित एक गोपनीय विषय है जिसकी विधि का गुरुपरम्परा से बाहर चर्चा करने का निषेध है| निषेधात्मक कारणों से मैं इस पर कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं कर सकता| इसका मुझे अधिकार नहीं है, पर जिज्ञासुओं से अनुरोध है कि इसे किसी अधिकृत ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से अवसर मिलने पर अवश्य सीखें| मैं अधिकृत नहीं हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
११ फरवरी २०१९
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पुनश्चः :---
रेचक क्रिया के माध्यम से, साधक सुषुम्ना में ऊपर रहने वाले प्राणवायु को लेकर इसे मेरुदण्ड के नीचे रहने वाले अपानवायु में अर्पित करते हैं, और पुन: पूरक करके वे अपानवायु को नीचे से ऊपर उठाते हैं और इसे ऊपर प्राणवायु में विलय कर देते हैं । इसका उल्लेख योगशास्त्रों में "केवली प्राणायाम" के रूप में किया गया है। इसके द्वारा, प्राण और अपान की गति स्वाभाविक रूप से और अपने आप रुक जाती है, इस से मन और सभी प्राण स्थिर होते हैं, फल स्वरूप अनंत सुख को प्रकट करते हुए ज्ञान के दीपक को प्रकाशित करते हैं। जब मन और प्राण इस तरह से स्थिर होते हैं, स्थुल वायु का प्रश्वास और निःश्वास , वाणी, शरीर, दृष्टि - यह सब भी स्थिर हो जाते हैं ।
~ स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि जी महाराज द्वारा श्रीमद्भगवत गीता के भाष्य के अंश से, अध्याय ४ श्लोक २९
*By rechak Kriya, sadhakas take the pranavayu residing above in the sushumna and offer it as oblation into the apanavayu residing at the bottom of the spine, and again by purak Kriya they lift the apanavayu from below and merge it into the pranavayu above.* This has been mentioned in the yogashastras as "kevali pranayam." By this, the movement of prana and apana stops naturally and on its own, stilling the mind and all prana, manifesting eternal happiness and illuminating the lamp of Knowledge. When the mind and prana are still in this way, the inhalation and exhalation of the physical airs, speech, body, sight - all of these things - also become still.
~Excerpts from Commentary of Shrimadbhagavat Gita by Swami SriYukteshvar Giri ji Maharaj , Ch. 4 Verse 29

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