Friday 22 February 2019

मेरे हृदय की घनीभूत पीड़ा और आनंद .....

मेरे हृदय की घनीभूत पीड़ा और आनंद .....
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मेरे हृदय की घनीभूत पीड़ा, और हृदय का घनीभूत आनंद दोनों का स्त्रोत एक ही है| दोनों में कोई अंतर नहीं है| परमात्मा से दूरी पीड़ा को जन्म देती है, और समीपता आनंद को| दोनों का स्त्रोत एक परमात्मा ही है| ऐसे ही दुःख-सुख, और शांति-अशांति है| इन सब का जन्म हमारे मन में ही होता है| पीड़ा आनंद को जन्म देती है, दुःख सुख को जन्म देता है और अशांति शांति को जन्म देती है| इन सब का एकमात्र स्त्रोत भी परमात्मा ही है| मैं अपने दुःख-सुख, अशांति-शांति और पीड़ा-आनंद आदि आदि सब कुछ बापस परमात्मा को ही समर्पित करता हूँ, क्योंकि ये सब एक आवरण हैं जो मुझे स्वयं से ही दूर करते हैं| मुझे ये सब नहीं चाहियें| मेरे लिए "मैं" स्वयं ही स्वयं हूँ, यह देह, मन और बुद्धि नहीं|
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हम कुछ भी लिखते हैं, उसके पीछे एक पीड़ा है जो व्यक्त हो रही है| यदि पीड़ा नहीं होगी तो कुछ भी नहीं लिखा जाएगा| आनंद की स्थिति में तो कोई शब्द-रचना ही नहीं होती| अपनी घनीभूत पीड़ा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारत के रामभक्त और कृष्णभक्त कवियों ने की है| हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद ने भी अपनी कविता "आंसू" में अपने हृदय की पीड़ा की बहुत ही श्रेष्ठ साहित्यिक अभिव्यक्ति की है|
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क्या मैं स्वयं से दूर हूँ ? इसका एक निश्चित उत्तर है "हाँ"| फिर मैं कौन हूँ?
इस पर विचार करता हूँ तो मुझे एक विराट अनंत श्वेत ज्योतिर्पुंज का आभास होता है जो इस भौतिक देह से बहुत ऊपर है| वे ही मेरे इष्ट देव "परमशिव" हैं| उन्हीं के साथ मैं एक हूँ| उन्हीं के ध्यान में हृदय को तृप्ति और संतुष्टि मिलती है| कई बार चेतना ब्रह्मरंध्र से बाहर निकल कर बापस इस देह में लौट आती है क्योंकि इस देह के साथ अभी और भी कई संस्कार जुड़े हुए हैं| जिस दिन वे संस्कार पूर्ण हो जायेंगे उस दिन यह देह शांत हो जायेगी, और चेतना परमशिव के साथ एक हो जायेगी|
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मेरा आनंद क्या है? मेरा आनंद परमशिव के ध्यान से उत्पन्न अनुभूतियाँ ही हैं| अन्यत्र कहीं भी कोई आनंद नहीं है, सिर्फ पीड़ा ही पीड़ाएँ हैं| मेरे पास स्वयं के शब्द नहीं हैं अपनी पीड़ा के ज्वालामयी शब्दों को व्यक्त करने के लिए| दूसरों के शब्द मैं उधार नहीं लेना चाहता|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ और मेरी ही निजात्मा हैं| आप सब को नमन! ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ फरवरी २०१९

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