हमारा 'लोभ' और 'अहंकार' -- हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं; हमारी 'भक्ति' और 'सत्यनिष्ठा' -- हमारे सबसे बड़े मित्र हैं --- (यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण और गंभीर लेख है)







हमारा 'लोभ' और 'अहंकार' -- हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं; हमारी 'भक्ति' और 'सत्यनिष्ठा' -- हमारे सबसे बड़े मित्र हैं --- (यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण और गंभीर लेख है)
असत्य और अंधकार की आसुरी/राक्षसी शक्तियों से सनातन-धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए हमें -- आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, मानसिक, आर्थिक, व भौतिक -- हरेक दृष्टिकोण से सशक्त व संगठित होना होगा।
आत्मा का धर्म है -- परमात्मा की अभीप्सा, पूर्ण प्रेम और पूर्ण समर्पण।
पूर्ण समर्पण ---
ब्राह्मण समाज के समारोहों में सर्वप्रथम और सर्वाधिक सम्मान -- "कर्मकांडी ब्राह्मणों" का होना चाहिए। इसके निम्न कारण हैं --
मेरी पूर्ण हृदय से भगवान से प्रार्थना है कि भारत में सत्य-धर्मनिष्ठ क्षत्रिय राजाओं का धर्मपरायण राज्य पुनश्च स्थापित हो ---
आध्यात्म में समस्त अनर्थों का मूल आसुरी भाव है; इस से कैसे बचें? ---
हे परमशिव, आप मुझे कितना भी दर्द और पीड़ा दो, लेकिन कभी भी अपने प्रेम से वंचित नहीं कर सकते। संसार में यदि कष्ट कम हैं तो आप मुझे घोर नर्क में डाल सकते हो, लेकिन आप कभी मेरा साथ नहीं छोड़ सकते। जहाँ भी आपने मुझे रखा है, वहाँ किसी भी तरह के असत्य का अंधकार हो ही नहीं सकता। मैं आपका परमप्रेम, आपकी अनंत विराटता, और प्रकाशों का प्रकाश, ज्योतियों की ज्योति - ज्योतिषाम्ज्योति हूँ; यह नश्वर देह नहीं।
कल स्वामी विवेकानंद के ऊपर अनेक लेख लिखे गए थे। लेकिन कुछ बातों का लोग उल्लेख नहीं करते।
बड़ी से बड़ी बात जो भगवान की परम कृपा से मैं लिख सकता हूँ, वह यह है कि -
सभी को धन्यवाद !! मेरी हरेक साँस के साथ, और बिना साँस के भी समष्टि का निरंतर कल्याण हो रहा है। अपनी चेतना को हर समय भ्रूमध्य पर रखो। चेतना को वहीं पर रखते हुए संसार में अपने सारे कर्तव्यों का निर्वहन होने दो। हमारा सारा काम भगवान स्वयं कर रहे हैं, हम तो उनके एक उपकरण यानि निमित्त मात्र हैं। भगवान एक प्रवाह हैं, जिन्हें अपने माध्यम से प्रवाहित होने दो। कर्ताभाव सबसे बड़ी बाधा है। सारी आध्यात्मिक साधना भी भगवान स्वयं ही कर रहे हैं, हम नहीं।
रामनाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहिरऊ, जो चाहसि उजियार॥
ये कयामत का दिन कैसा होगा?
भगवान एक कल्पवृक्ष हैं, जिसके नीचे हम जैसा भी सोचते हैं, वैसा ही हो जाता है
बिना सत्यनिष्ठा और वैदिक धर्माचरण के कितने भी साधन कर लो, ब्रह्म लाभ (आत्म-साक्षात्कार) किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकता। अपने आराध्य देव का हर समय सर्वत्र सब में दर्शन करें। कहीं कुछ भी कमी हो तो उसे दूर करने के लिए अपने आराध्य देव से प्रार्थना करें। प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है। हमारा एकमात्र लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है, और कुछ भी नहीं। जो भी इसमें बाधक है उसका तत्क्षण त्याग कर दो।
धन्य हैं वे ब्रह्मस्वरूप भजनानन्दी, जो भगवान का अनन्य भाव से दिन-रात निरंतर भजन करते हैं। मैं उन्हें कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ। वे धन्य हैं। वे धन्य हैं। वे धन्य हैं।
वर्तमान हठयोग -- नाथ संप्रदाय की देन है। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्रों में कहीं भी हठयोग नहीं सिखाया है। आक्रामक रूप से इसे पतंजलि के नाम से प्रचारित करना असत्य और दुराग्रह है। पतंजलि के योगसूत्रों का सर्वश्रेष्ठ भाष्य - "व्यास भाष्य" है।